ऐ वीर रैगर सुन भारत के मूल निवासी ।
सिन्धु सभ्यता के जनक, संख्या में है बीस । ।
छल-कपट से लूटा लूटेरों ने तेरा राज सिहासन ।
कभी दास तो कभी लाचार गुलाम बनाया ।
तेरे गले में हांडी, कमर पर झाडू बंधवाया । ।
कब तक ढोयेगा ये गुलामी और लाचारी ।
पहचान कौन है जुल्मी अन्यायी अत्याचारी । ।
सो लिया तू बहूत हुये वर्ष चार हजार ।
अब उठ जरा लगा दे आजादी की ललकार । ।
क्योंकि तुम हो सूर्यवंशी, वीर पुत्रों की संतान ।
गुलामी से मरना अच्छा है, ये हे गुरूओं का आव्हान । ।
शेरों बगावत करो ये बाबा की है ललकार ।
तेरी बगावत से होगा तू आजाद और मनुवादी होगा लाचार । ।
लेखक
अम्बा लाल सेरसीया
बोरखेड़ी, चित्तौड़गढ़