‘ रैगर मीत ! आ जाना ।’ 

         जब सांझ ढले, जब दीप जले।
रैगर ! मन के सहचर आ जाना।
नन्हा तारा जब गगन पले।
जब तम रजनी के प्राण छले।
तब दुखी समाज को राह दिखाने।
गुरु ज्ञान रवि किरण बन आ जाना।
युवकों से छिन जब बल बहे।
और सामाजिकता मंद-मंद चले।
गुरु लक्ष्य सीख प्राण वायु बन जाना।
जब सांझ ढले, जब दीप जले।
रैगर मन कदम थामे, संभल जाना।
अपना तन-मन आंदोलित कर।
नव-निर्माण का शंखनाद कर देना।

लेखक

हरीश सुवासिया

एम. ए. [हिंदी] बी. एड. (दलित लेखक,संपादक)

देवली कला जिला- पाली मो॰ 09784403104