प्रत्येक जाति का अपना एक इतिहास होता है । रैगर जाति का भी इतिहास रहा है । यदि रैगर जाति के इतिहास को आंकने का प्रयास किया जाये तो विदित होता है कि यह जाति गौरवशाली, क्षत्रिय परम्पराओं का निर्वहन करने वाली तथा जमींदारी कार्यों के प्रति समर्पित रही होगी । मध्यकाल में जब एक राज्य दूसरे राज्य पर अपनी शक्ति तथा सीमा विस्तार हेतु युद्धरत रहा करते थे तब विजेता अपनी स्वयं के अहम को तुष्ट करने हेतु ना केवल अविजेताओं पर अमानवीय कृत्यों को अंजाम देते थे, बल्कि हारने वाले राज्य के व्यक्तियों के मानवीय मूल्यों व उनकी संस्कृति को नष्ट करने का भरसक प्रयास करते थे । जिसके तहत उनकी बहु-बेटियों को बेइज्जत करने से लेकर हारने वाले राज्य के पुरूषों को ऐसे नीच कर्म करने को मजबूर करते थे ताकि वे दुबारा विजेताओं की ओर आँख भी नहीं उठा सके । समाज के पूर्व इतिहासकारों व चिन्तकों ने भी रैगर जाति व वंशावली को क्षत्रियों से जुड़ा हुआ बताया है । ऐसी परिस्थितियॉं वर्तमान समाज की किसी भी अनुसूचित जाति वर्ग की रही होंगी इसलिए अन्य अनुसूचित जातियॉ भी स्वयं को क्षत्रिय वंश से जोड़ती हैं । ऐसा लगता है कि रैगर जाति भी विजेताओं के अहम का शिकार होकर घृणित कार्य की ओर धकेल दी गई और रैगर, रेघड़ तथा रंघड़ शब्द का नाम थोप दिया गया और इसी का परिणाम रहा है कि अनुसूचित जाति संवर्ग में भी रैगर जाति द्वारा चर्म कर्म को अपनाने की वजह से इस जाति की अस्मिता को निम्न स्तर पर ला पटका । हमारे पूर्वज बेगार-प्रथा का वर्षों तक शिकार रहे । अदना सा अदना जमींदार भी हमारी जाति को बेगारी के लायक समझता रहा, शोषण करता रहा । यह लम्बे समय तक शोषित रहने का ही परिणाम रहा है कि हम समाज के स्तर पर दीन-हीन, अछूत तथा अत्यन्त कंगाली के स्तर पर शताब्दियों तक जीवन-यापन करते रहे ।
भारत के स्वतंत्र होने पर बाबा साहेब अम्बेड़कर के अथक प्रयासों तथा संविधान में आरक्षण का प्रावधान करने से आज रैगर जाति में आर्थिक व सामाजिक स्तर पर बदलाव स्पष्ट देखा जा सकता है । आज शिक्षा के अवसर से हमारी विचारशक्ति को बल मिला है जो कभी कुंठित कर दी गई थी । बल्कि यों कहे तो विचारशक्ति को मृत-प्रायः ही कर दिया गया था । आज हम सामाजिक क्षेत्र में अनेक बदलाव के साक्षी है । ग्रामों मे अभी भी शिक्षा का स्तर निम्नतम होने से सामाजिक स्तर पर घोर रूढ़िवादिता, छूआछूत तथा अस्पृश्यता व्याप्त है । रैगर जाति के प्रति अभी समाज के उच्च वर्गों में घृणा का भाव विद्यमान है । लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षित प्रगति करने से उक्त वर्जनाओं का हास हो रहा है । यह स्थिति गांवों की तुलना में कस्बों तथा शहरों में अधिक सुखकर है कि आज शहरों में आपका आंकलन शिक्षा तथा आर्थिक स्तर से होने लगा है । इसका आशय यह बिल्कुल नहीं है कि हमने वह प्रगति अर्जित कर ली है जिसके कि हम हकदार हैं । अभी मंजिल बहुत दूर है, अभी तो हम केवल प्रगति के मामले में घुटनों के बल चलना सीखने लगे हैं ।
मेरा मानना है कि रैगर समाज की अब तक की प्रगति संतोषजनक नहीं कही जा सकती । अभी रैगर समाज के स्तर पर ही अंतर बढ़ता जा रहा है । कुछ व्यक्ति व परिवार विकास के उच्च स्तर पर पहुँचने लगे है जबकि समाज का अभी भी बहुत बड़ा तबका अत्यन्त शौचनीय स्थिति में जीवन-यापन कर रहा है । उन तक प्रगति की रोशनी भी नहीं पहुँची है । इस सामाजिक अंतर की वजह से समाज साधन सम्पन्न तथा साधनहीन से परिणित होता जा रहा है । इस अंतर को पाटने का कार्य अत्यन्त दुष्कर तथा दुरूह है । कारण स्पष्ट है, क्योंकि जो विकास के मामले में समाज में उच्च स्तर पर पहुँच रहे हैं वे समाज के नीचे के स्तर से दूरीयॉ बढ़ाने में लगे हुए है । बल्कि कई बार तो हैरानी होती है कि तथाकथित प्रगतिशील या विकसित रैगर कहे जाने वाले व्यक्ति रैगर जाति को छुपाने में ही अपनी अस्मिता के बचाव का साधन मानने लगे हैं, उन्हें डर है कि हम रैगर के रूप में नहीं पहचान लिये जावें । बल्कि अब तो रैगर जाति के अधिकारियों, कर्मचारियों, राजनीतिज्ञों तथा समाज के संपन्न व्यक्तियों द्वारा किसी अघोषित नियम के अंतर्गत गोत्रों का ही स्वरूप बिगाडने में लग गये हैं । ऐसी स्थिति में रैगर जाति की कौन पहचान करायेगा ? जब जाति की पहचान ही धूमिल व विस्मृत हो जायेगी तो हम किस जाति के विकास की बात करेंगे । वर्तमान समय में जाति को छुपाने का नही बल्कि जाति को दिखाने का है । जाति की पहचान कराने का है । इसलिए अब जाति की पहचान बनाने की बात की जानी चाहिए । जाति की पहचान से ही जाति में संगठन पैदा होगा । लोग जाति की पहचान कर एक दूसरे से जुड़ेंगे । आपसी भातृत्व भाव बढ़ेगा । आज कई जातियॉ जाति की पहचान के बल पर ही राजनैतिक क्षेत्र में बहुत प्रभावी हो गई है । जाति के बल पर ही राजनैतिक संस्थाओं, संगठनों तथा सरकार में अपनी बात मनवाने का, अपने हित में नीतियॉं बनवाने का तथा अपने पक्ष में निर्णय कराने का दम रखती हैं । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हमारी रैगर जाति, लगता है कि नेतृत्वविहीन हो गई है । कुशल नेतृत्व दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा है अथवा यो कहें कि हमें किसी का नेतृत्व स्वीकार नहीं है । मतभेदों की खाई चौड़ी होती होती जा रही है । मतभेदों की वजह से समाज के विकास के मापदण्ड तय करने में कठिनाईयॉं आ रही हैं । हम समाज के लक्ष्यों को स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं । समाज की दिशा में भटकाव आना आरंभ हो गया है । यह भटकाव हमारी सामाजिक अस्मिता को काफी नुकसान पहुँचा रहा है और आज हम राजनैतिक स्तर पर पिछड़ते जा रहे हैं ।
आज हमें न केवल जहॉं हम निवास करते हैं उन जाति बन्धुओं से रूबरू होने का है, बल्कि अब तो प्रदेश स्तर पर तथा देश के स्तर पर आपसी पहचान बनाने तथा बढ़ाने का समय है । ग्लोबल युग में जब दूरीयॉ सिमटती जा रही हैं तो हमें भी चाहिये कि हम किसी बैनर तले या तथाकथित संस्थाओं के बैनर के नीचे लामबन्द नहीं हो बल्कि जो समाज की दिशा व दशा को सुधारने की चिंता रखते हैं या जिनमें परिवर्तन लाने का जज्बा है, ऐसे तत्व एकजुट होकर एक ऐसा सांझा मंच तैयार करें जो अपने अहम की तुष्टि के लिए नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन व रैगर जाति के विकास की बात करे । आज ऐसी सार्थक सोच रखने वाले रैगर बन्धुओं को आगे आने की अत्यन्त आवश्यकता है ।
आज मुझे कहते हुए पीड़ा होती है कि हमारी जाति का कोई स्पष्ट एजेण्ड़ा नहीं है । आज हम महासभाओं के चुनावों तथा उसके परिणामों में उलझ कर रह गये हैं । आज हमारी पंचायतें, सभाऍ तथा महासभाऍ व्यक्तिवादी अहम का शिकार हो गई है । समाज क्या चाहता है ? आज इसकी किसी को परवाह नहीं है । बल्कि यह देखने में आ रहा है कि समाज में जो व्यक्ति सार्थक सोच रखते हैं, उनकों हासिए पर धकेला जा रहा है। इन पंचायतों, सभाओं तथा महासभाओं का एजेण्ड़ा ऊपर से थोपा जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत को भुलाये जा रहे हैं । यही कारण है कि रैगर समाज में जिस परिवर्तन, विकास तथा रैगर जाति की अस्मिता की पहचान कराने की समय की मांग है वह पीछे छूटती जा रही है । अभी भी समय है कि हम समाज में जाति की भावी दिशा तथा दशा दोनों पर घोर मंथन करें । समाज को कोई विचार दें जो कि सामाजिक बदलाव को स्पष्ट चिन्ह्ति कर सके । सामाजिक स्तर पर रैगर जाति की अस्मिता के संवर्द्धन में सहायक हो सके जिससे प्रदेश तथा देश स्तर पर रैगर समाज का एजेण्ड़ा तैयार हो सके ।
लेखक
राम निवास मोरलिया, I. A. S. : रजिस्ट्रार
कोटा विश्वविद्यालय, कोटा
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