महासभा के विधान में किए जा रहे संशोधनों की व्यवहारिकता

अखिल भारतीय रैगर महासभा के विधान में संशोधन किए जा रहे हैं । ये संशोधन प्रमुख रूप से महासभा के सदस्‍यों तथा पदाधिकारियों के पदों की संख्‍या बढ़ाये जाने से सम्‍बन्धित है । विधान में प्रान्‍तों एवं जिलों के आधार पर प्रतिनिधियों की संख्‍या 1290 निर्धारित की गई थी । पूरे भारत में रैगरों की आबादी लगभग 50 लाख है ।

जनसंख्‍या की दृष्टि से प्रतिनिधियों की ‘संख्‍या कम’ है महसूस किया जा रहा था । इसलिए लोगों की मांग भी कि सदस्‍य संख्‍या बढ़ार्इ जाय । इसी बात को ध्‍यान में रखकर महासभा ने सदस्‍य संख्‍या बढ़ाने के लिए दिनांक 12.01.2012 को श्री के.एल. कमल की अध्‍यक्षता में नौ सदस्‍यों की एक कमेटी का गठन किया था । इस कमेटी ने प्रतिनिधि सदस्‍यों की आयु सीमा 25 वर्ष निर्धारित करते हुए संख्‍या असीमित करने की सिफारिश की । अखिल भारतीय रैगर महासभा की दिनांक 07.10.2012 को आयोजित कार्यकारिणी की मीटिंग में सदस्‍यता शुल्‍क 1100/- ग्‍यारह सौ रूपये निर्धारित करते हुए सदस्‍यता खुली कर दी गई । अब कोई भी व्‍यक्ति ग्‍यारह सौ रूपये की रसीद कटवा कर महासभा की सदस्‍ता ले सकता है । कार्यकारिणी की मीटिंग में सदस्‍यों ने सुझाव दिए थे । सदस्‍यता शुल्‍क और आयु सीमा पर किसी आपत्ति नहीं है । मगर खुली और असीमित सदस्‍य संख्‍या रखे जाने से कई व्‍यवहारिक समस्‍याएं उत्‍पन्‍न होगी । इससे क्षेत्रीय सन्‍तुलन निश्चित रूप से बिगड़ेगा । पहले प्रान्‍तों और जिलों की अनुमानित जनसंख्‍या के आधार पर सदस्‍यों की संख्‍या निर्धारित की गई थी । यह क्षेत्रीय प्रतिनिधित्‍व के संतुलन की दृष्टि से बहुत सही थी । अब खुली सदस्‍यता के कारण कई जिलों में जनसंख्‍या के अनुपात में सदस्‍य या तो इतने कम बनेंगे कि उनका प्रतिनिधित्‍व नगण्‍य हो जाएगा या कई जिलों की सदस्‍य संख्‍या इतनी अधिक हो जाएगी कि जनसंख्‍या के अनुपात से कई गुना अधिक सदस्‍य बना दिए जाएंगे । वे प्रान्‍त या जिले जहां लोग जागरूक और सम्‍पन्‍न है वे क्षेत्रीय संतुलन को निश्चित रूप से बिगाड़ेंगे । 15 दिसम्‍बर की बीकानेर महासम्‍मेलन में श्री सुरेन्‍द्र पाल रातावाल ने इस तरफ महासभा का ध्‍यान भी खींचा था । उनका यह सुझाव भी बहुत व्‍यवहारिक है कि पहले जो सदस्‍य संख्‍या 1290 थी दो या तीन गुना कर दिया जाए मगर क्षेत्रीयता का आधार वही रखा जाय । यदि सदस्‍य संख्‍या तीन गुना भी कर दी जाय तो भी चार हजार तक संख्‍या निश्चित करना उचित और सही रहेगा । असीमित सदस्‍यता का प्रावधान करेन से निष्‍पक्ष चुनाव करवाना भी मुश्किल होगा । चुनाव एक जगह और एक दिन में करवाना भी संभव नहीं हो पाएगा । मतगणना में भी कम से कम दो दिन का समय लगेगा । प्रत्‍याशियों के आलावा मतदान स्‍थल पर दो दिन कोई नहीं रूकेगा । इस तरह अ‍सीमित सदस्‍यता का फारमूला अन्‍तत: फेल होगा । अब भी रैगर महासभा इस पर पुनर्विचार कर सकती है ।

एक यह भी विचारणीय पहलू है कि सदस्‍य बनाते समय ग्रामीण क्षेत्रों का ध्‍यान नहीं रखा गया तो महासभा शहरी लोगों की संख्‍या बनकर रह जाएगी । ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्‍व नगण्‍य या समाप्‍त हो जाएगी । आज भी रैगर समाज की 50 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है । उसका प्रतिनिधित्‍व समाप्‍त करना आत्‍मघाती कदम होगा । इसके लिए यह तय कर दिया जाए कि कम से कम 25 प्रतिशत सदस्‍य ग्रामीण क्षेत्रों के होंगे । यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी जिले का कोई बड़ा गाँव छूटे नहीं ।

विधान में किए जा रहे दूसरे संशोधन में पदाधिकारियों की संख्‍या बढ़ाई जा रही है । इसमें गौर करने की बात यह है कि पदों की संख्‍या बढ़ाने की किसी ने मांग नहीं की है । पदों की संख्‍या बढ़ाए जाने का कोई ओचित्‍य नहीं है । महासभा पदाधिकारियों की फौज़ बढ़ाने की बजाय काम करने पर ध्‍यान दे तो समाज का ज्‍यादा भला हो सकता है । पदों को बढ़ाकर भी हर क्षेत्र को प्रतिनिधित्‍व नहीं दिया जा सकता है । यह तो मतदाताओं पर निर्भर करता है कि वह किसे मत दे और चुने । उपाध्‍यक्षों की संख्‍या 6 से बढ़ाकर 10, महामंत्री तथा मंत्री 4-4 से बढ़ाकर 8-8, प्रचार मंत्री 2 से बढ़ाकर 6 किए जा रहे हैं । संगठन मंत्री के 6 नये पद तथा उप कोषाध्‍यक्ष का 1 पद सृजित किया जा रहा है । कार्यकारिणी की सदस्‍य संख्‍या 31 से बढ़ाकर 51 की जा रही है । इब इसके व्‍यवहारिक पक्ष पर विचार कर लें । पद बढ़ाए जाने के बाद अध्‍यक्ष से लेकर कार्यकारिणी के सदस्‍यों तक कुल पदों की संख्‍या 86 होती है । पहले यह संख्‍या 51 थी । यदि चुनाव में एक पर कम से कम दो प्रत्‍याक्षी खड़े होते हैं तो 86 पदों के लिए 172 प्रत्‍याशी होंगे । मतदाता 172 प्रत्‍याशियों में से अपनी पसंद के प्रत्‍याशी कैसे तलाशेगा । अलग-अलग पदों के लिए 172 प्रत्‍याशियों के नाम पढ़ना और किसे वोट देना है तय करने में उसे 8 से 10 मिनट का समय लगेगा । हजारों मतदाताओं को मतदान के लिए कितने दिन लगेंगे । यह आप ही हिसाब लगा लें । फिर मतदान स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष कराने की बात करना बेमानी है । दिसम्‍बर 2011 में महासभा के चुनाव हुए थे, उसमें कुल 51 पदों के लिए प्रत्‍याशियों की संख्‍या 79 थी । इतने प्रत्‍याशीयों के लिए मतदान करने के लिए प्रत्‍याश्यिों की मांग पर चुनाव अधिकारी को यह निर्णय लेना पड़ा कि मतदाता मतदान के समय पेनल की लिस्‍ट अपने साथ ले जा सकता है और उसे देख कर मत दे सकता है । आप ही सोचिये क्‍या इसे हम निष्‍पक्ष मतदान कह सकते हैं । यदि ऐसे ही चुनाव करवाना है तो मतदान करवाने की जरूरत ही नहीं है । मतदाताओं से पेनल पर निशान लगवाकर चुनाव अधिकारी सीधे ही अपने पास लेलें । जब 79 प्रत्‍याशियों का ह निष्‍पक्ष चुनाव नहीं करवा सकते तो 172 प्रत्‍याशियों का चुनाव स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष कराने के लिए कैसे आश्‍वस्‍त होंगे । इसलिए पदों की संख्‍या बिना सोचे समझे बढ़ाई गई तो पूरी चुनाव व्‍यवस्‍था ही गड़बड़ा जाएगी और चुनाव का उद्देश्‍य ही विफल हो जाएगा । समय रहते अब भी महासभा पदों की संख्‍या बढ़ाने के मुद्दे पर पुनर्विचार कर सकती है । इस पर महासभा अपनी प्रतिष्‍ठा का सवाल नहीं बनाए तो अच्‍छा है ।

इन सबके अलावा यह भी विचारणीय बिन्‍दू है कि असीमित सदस्‍य संख्‍या और पदों की संख्‍या अनावश्‍यक रूप से बढ़ाने पर चुनाव खर्च बहुत अधिक आएगा । महासभा तय करे कि वह चुनाव एक जगह पर कराएगी या संभाग स्‍तर पर या जिला स्‍तर पर कराएगी ।

हिसाब लगाएं कि उसका कुल खर्चा कितने लाख आएगा । क्‍या महासभा इतना खर्चा वहन कर पाएगी । इन सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता है । समाज के लोगों की आवाज़ सनुकर उस पर विचार करने की आवश्‍यकता है । समाज के लागों की आवाज़ और विचार महासभा को सुनना चाहिए और मानना चाहिए । संस्‍था समाज के लिए है, समाज संस्‍था के लिए नहीं है । समाज ही सर्वोपरि है ।

लेखक
चन्‍दनमल नवल, जौधपुर
(लेखक : रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति)