बचपन जो एक गीली मिट्टी के घडे के समान होता है इसे जिस रूप में ढाला जाए वो उस रूप में ढल जाता है । जिस उम्र में बच्चे खेलने – कूदते है अगर उस उमर में उनका विवाह करा दिया जाये तो उनका जीवन खराब हो जाता है ! तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । अभी हाल ही में आई यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है । रिपोर्ट के अनुसार देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है । रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही माँ बन जाती हैं । यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज़ व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं ।
बाल विवाह को रोकने के लिए सर्वप्रथम 1928 में शारदा एक्ट बनाया गया व इसे 1929 में पारित किया गया । अंग्रेजों के समय बने शारदा एक्ट के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़कियों का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती है । इस एक्ट में आज तक तीन संशोधन किए गए है । शारदा एक्ट महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध नाटक ‘शारदा विवाह’ से प्रेरित होकर बनाया गया । राजस्थान में बीकानेर रियासत के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह ने इसे लागु करने के लिए सर्वप्रथम प्रयास किए थे । इसके पश्चात सन् 1978 में संसद द्वारा बाल विवाह निवारण कानून में संशोधन कर इसे पारित किया गया । जिसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए कम से कम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल निर्धारित किया गया । बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 की धारा 9 एवं 10 के तहत् बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास एवं एक लाख रूपए जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है । तीव्र आर्थिक विकास, बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है । क्या बिडम्बना है कि जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन हों, वहाँ बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते बालिकाएं अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती हैं । बाल विवाह न केवल बालिकाओं की सेहत के लिहाज़ से, बल्कि उनके व्यक्तिगत विकास के लिहाज़ से भी खतरनाक है । शिक्षा जो कि उनके भविष्य का उज्ज्वल द्वार माना जाता है, हमेशा के लिए बंद भी हो जाता है । शिक्षा से वंचित रहने के कारण वह अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पातीं ।
बाल विवाह के कारण कम उम्र में सेक्स की शुरुआत एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होने की प्रबल सम्भावना होती है, जिनमें एच.आई.वी (एड्स) एवं ऑब्स्टेट्रिक फिस्चुला शामिल हैं । कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते, अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं । कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर ग़रीबी का कारण बनता है । बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं ग़रीबी के भंवरजाल में फंसा देता है । जब वे शारीरिक रूप से परिपक्व न हों, उस स्थिति में कम उम्र में लड़कियों का विवाह कराने से मातृत्व सम्बन्धी एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती हैं । और फिर कच्ची उम्र में गर्भ धारण के चलते उनकी जान को भी खतरा बना रहता है । बाल-विवाहित से पति-पत्नी स्वस्थ एवं दीर्घायु सन्तान को जन्म नहीं दे पाते । कच्ची उम्र में माँ बनने वाली ये बालिकाएं न तो परिवार नियोजन के प्रति सजग होती हैं और न ही नवजात शिशुओं के उचित पालन पोषण में दक्ष । और यदि विवाह के पश्चात् पति कि मौत हो जाए तो उसे उम्र भर विधवा का जीवन जिना के लिए छोड़ दिया जाता है । जो उसके लिए नर्क से कम नही बाल विधवा समाज और परिवार के लिए सही नही होती है । कुल मिलाकर बाल विवाह का दुष्परिणाम व्यक्ति, परिवार को ही नहीं बल्कि समाज और देश को भी भोगना पड़ता है । जनसंख्या में वृद्धि होती है जिससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है । दरअसल यह कुप्रथा गरीब तथा निरक्षर तबके में जारी है । पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इस लिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी । वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं । कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है और फिर वह बड़ा होकर बचपन किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्नी से तलाक ले लेता है । क्योंकि विवाह के पश्चात् माँ – बाप कन्या को शिक्षा से वंचित कर देते है और उस कन्या के लिए जीवन नर्क के समान हो जाता है । जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है । वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है । लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता । बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । सो समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए जागरूक करना होगा ।
लेखक : ब्रजेश हंजावलिया – मन्दसौर (म.प्र.)