आलस्य मनुष्य का शत्रु है । मनुष्य स्वभाव में आलस्य का भाव स्वाभाविक रूप से रहता है । कर्तव्य कर्मो से जी चुराने का नाम आलस्य है । आलस्य ऐसा दोष है जिससे मनुष्य अपने वर्तमान और भविष्य दोनों को नष्ट कर देता है । आलस्य के कारण ही मनुष्य उन्नति के साधनों को खो देता है । अपने भाग्य को दोष देकर कर्तव्य का पालन न करना आलस्य है । प्राय: मनुष्य आलस्य को विश्राम समझने की भूल करता है ।
संत कबीर दास जी ने कहा भी है कि –
‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में प्रलय हो जायेगी बहुरि करेगा कब ।’
हर मनुष्य सोचता है कि अपना काम तो वह कभी भी कर सकता है पर ऐसा सोचते हुए उसका समय निकलता जाता है । चतुर मनुष्य इस बात को जानते हैं इसलिये ही वह विकास के पथ पर चलते हैं । अक्सर लोग अपनी असफलता और निराशा को लेकर भाग्य को कोसते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि विकास का समय हर आदमी के पास आता है और जो अपने ज्ञान और विवेक से उसका लाभ उठाते हैं उनकी पीढ़ियों का भी भविष्य सुधर जाता है । संसार में सफल और प्रभावशाली व्यक्त्तिव का स्वामी, उद्योगपति, तथा प्रतिष्ठाप्राप्त लोगों की संख्या आम लोगों से कम होती है इसका कारण यह है कि सभी लोग समय का महत्व नहीं समझते और आलस्य के भाव से ग्रसित रहते हैं ।
कुछ छात्र प्रात:काल उठने में आलस्य करते है । जिससे विद्योपार्जन में निर्बल रहते है । प्रात:कालीन स्वस्थ शक्तिप्रद वायु तथा सूर्योदय की तमाम प्राणतत्व प्रदायिनी किरणों के लाभ से भी वंचित रहते है । जिस ऊषाकाल में अचेतन प्रकृति जागती जैसी दिखती है, उस समय मनुष्य सोता रहे तो यह उसकी भूल है । संसार के बड़े-बड़े वैज्ञानिक यथार्थदर्शी बुद्धिमान एवं ज्ञानियों तथा कर्मयोगियों को देखकर यह समझा जा सकता है कि ये सब आलस्य त्यागकर ऊंचाई पर पहुंचे है । जिस तरह से लोहे को उसका जंग खा डालता है उसी तरह से आलस्य शरीर के लिए हानिप्रद है । महान, बुद्धिमान और सौभाग्यशाली वह है जो विद्याग्रहण में आलस्य न करे, बड़ों के अथवा दीनदुखियों के स्वागत सम्मान में आलस्य न करें । अच्छे कार्यो की प्रतिज्ञा करें और उसे पूरा करने में आलस्य न करें । अपनी दैनिक, शारीरिक, मानसिक क्रियाएं पूरी करने में आलस्य न करें । आलस्य मनुष्य के लिए बहुत ही कष्टदायी है । मुख्य बात तो यह है कि आलस्य को त्यागने में बिल्कुल ही आलस्य न करें ।
जीवन में निरंतर सक्रिय रहने से मनुष्य के चेहरे और मन में स्फूर्ति बनी रहती है और बड़ी आयु होने पर भी उसका अहसास नहीं होता । आलस्य मनुष्य का एक बड़ा शत्रु माना जाता है इसलिये उससे मुक्ति पाना ही श्रेयस्कर है । कोई काम सामने आने पर उसको तुरंत प्रारंभ कर देना चाहिये यही जीवन में सफलता का मूलमंत्र है । समय-समय पर हमें आत्ममंथन भी करना चाहिए कि हम कितना समय सार्थक कामों में कितना निरर्थक व्यतीत करते हैं । यह मनुष्य स्वभाव भी है कि व्यसन तथा नकारात्मक कार्य उसे आकर्षित करते हैं और सकारात्मक काम करने की सोचने में भी आलस्य करता है । इस आदत से बचना चाहिए । दिनभर स्फूर्तिवान रहने के लिए सुबह की शुरूआत योगा से करनी चाहिए। योगासन से पूरा दिन हम ऊर्जावान बने रहते हैं।
अल्सस्य कुतो वोद्या
अल्सस्य कुतो वोद्या कुतो वित्तं कुतो यशः ।
आलसी मानव को विद्या, धन, यश कहाँ से प्राप्त हो ?
अलक्ष्मीराविशत्येनं
अलक्ष्मीराविशत्येनं शयानमलसं नरम् ।
सदैव (सोते रहनेवाले) आलसी को दरिद्रता अपना निवास्थान बनाती है ।
निरीहो नाऽश्नुते
निरीहो नाऽश्नुते महत् ।
आलसी मानव महान वस्तु को प्राप्त नहीं कर सकता ।
सुखं दुःखान्त
सुखं दुःखान्तमालस्यम् ।
आलस एक एसा सुख है जिसका परिणाम दुःख है ।
आलस्योपहता
आलस्योपहता विद्या ।
आलस से विद्या नष्ट होती है ।
आलस्यं मित्रवद्
आलस्यं मित्रवद् रिपुः ।
आलस मित्र जैसा सुखद लगता है लेकिन वह शत्रु है ।
आलस्यंहि मनुष्याणां
आलस्यंहि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः ।
आलस मानव के शरीर में रहनेवाला बडा शत्रु है ।