शहरा में रहबा वाला, मैरा रैगर बीराओं । मिटती जा री छै, आपणी पहचाण बचाओ ।।
सब बाता, आपां नकल पराई कर रहया छा । खुद की अच्छी भली पहचाण, खत्म कर रहया छा ।।
क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।
आपणां तो सब रिती-रिवाज़ बुरा लागै छीं । दूसरा का कैसा भी छीं, चोखा लागै छीं ।।
ढकै कोणी जो बदन, वो कोर्इं को पहणावों । अंग्रेजी फैशन, दे रहयो छै छलावों ।।
आपां खुद ही खुद सै दगा कर रहया छां । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
कमाई करबा ही आपां परदेस जावां । पर आपां नै यो हक कोणी, की आपणी, संस्कृति भुलावां ।।
पैसा पीछा, इतणा अंधा हो जावां । की आपणी औलाद नै, आपणी संस्कृति कोणी दे पावां ।।
छोटा बड़ा रो आदर सत्कार मत भूलों । Hello/Hi सीखों, पर राम-राम तो मत भूलों ।।
होड़ करबा सै, कोर्इं कोणी होणो । भूल अपणी पहचाण, और कोर्इं खोणो ?
अपणा महान् रैगर संस्कारां नै पहचाणो । अपणा रिती-रिवाज़ पै थे गर्व माणो ।।
पराया नै आपणौ और आपणा नै भुला रहया छां । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
मेरी प्यारी रैगरी भाषा को मामलो । अगर समझां तो इज्जत और आण को मामलो ।।
थे सौगंध खाण न बोलो, बात अपना मन री । आपणी रैगरी भाषा जैसी मिठास कठे मिल सी ।।
थे कुछ तो सोचो, अतरी कडवाहट तो मत घोलो । कम सै कम आपस मैं तो अंग्रेजी मत बोलो ।।
क्यू बैठा छी आपां रैगरी नै छोड़ । अपणी माँ नै, आपां माँ कौणी बोलांगा तो बोलेगो कौण ?
माँ बटा मै फासलो क्यूं कर रहया छा । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
अगर जानै कौणी दूसरी पीढी कुछ भी, ऊपै कोई बस कौणी । माँ-बाप को फर्ज़ छै आपणी औलाद नै बताओ ।।
कोई बताओ ?
बताओ, आपां कुण छी और कठे सै आया । कोई छी आपणा रीति-रिवाज़ और कुण का छी जाया ?
जो बन्या फिरै छी जैन्टल मैन । बतओ वानै क्यूं आत्मा राम ‘लक्ष्य’ गाँव-गाँव घुम्या ।।
कार्इं छै समाज को आदर्श, कुण छी र्इष्ट आपणा । क्यूं छै गंगा आपणी ‘माई’, कुण छी कुल देव आपणा ?
छै मतलब आपणा रिती-रिवाज़ा को कार्इं घर का पितरां, राम पीर, भैरु जी और मालासी नै मनाबा को कार्इं ?
ना बता कै आपां बुरो कर रहया छा । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
अगर पहली पीढ़ी दूसरी नै बतावै । जद ही आपणी संस्कृति, आपणी पहचान जिन्दी रहै पावै ।।
जो माँ-बाप ही आपणा मै मग्न रहैवा । तो बच्चां नै कार्इं कहैवा ?
जो आपां ही टेढा रास्ता पै जाएगा । तो भाई, जैसी कोख बच्चां भी वैसा ही आएंगा ।।
आपां या कार्इं कर रहया छा । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
जो राखांगां आपणा बच्चां नै रैगरी से काट कै । तो डुल जाएंगा वो आपणी जड़ां से हट के ।।
भाई, रैगर जात दुनिया का नक्सा से मिट जावेगी । आपणा पूर्वज, धर्म गुरू ज्ञानस्वरूप जी दिया छा जो शिक्षा वा किताबा मा ही सिमट जावेगी ।।
थानै सौगंध छै थे कुछ तो तरस खाजो । आबा वाली पीढ़ी का दोषी मत कहलाजो ।।
नहीं तो, तीसरी पीढ़ी तक आपणी कहानी खत्म हो जावेगी । आपणी रैगर संस्कृति ई नया जुग मै खो जावेगी ।।
मुकेश सकरवाल, आपां या बुरो कर रहया छा । क्यू आपां आपणी परम्परा और संस्कृति णै खो रहया छा ।।
मुकेश सकरवाल
(Liverpool, United Kingdom)