निर्भय वीर सिपाही अविचल, समाज संगठन लहराई ।
समस्त रैगर जाति के ओर छोर में पावन ज्योति लक्ष्य जगाई ।।
रैगर चेतना का था तुमने भरा सभी में अविरल उत्साह ।
समाज में फैले दुष्चक्रो को दूर किया सह उत्साह ।।
तुम ऐसे थे लोह पुरूष, स्वयं कौशल से किया निमार्ण ।
भरां सभी में प्राण विसर्जन, रैगर उत्थान को मन में ठाण ।।
अंतिम क्षण भी अंत स्थल में, छाया केवल रैगर सम्मान ।
आजीवन पूरे बल से था सींचा, प्यारा रैगर महासभा महान ।।
श्रद्धा के ये भाव पुरूष, श्रद्धा पूरित भाव उल्लास ।
तुम महान हो रैगर गौरव, शक्ति प्रेरणा के नव प्रयास ।।
लेखक
श्री रामचन्द्र खोरवाल
दिल्ली