बेरोजगारी का अर्थ है कार्य सक्षम होने के बावजूद एक व्यक्ति को उसकी आजीविका के लिए किसी रोज़गार का न मिलना| रोज़गार के अभाव में व्यक्ति मारा-मारा फिरता है| ऐसे में तमाम तरह के अवसाद उसे घेर लेते हैं, फिर तो न चाहते हुए भी कई बार वह ऐसा कदम उठा लेता है, जिनकी कानून इजाजत नहीं देता| राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन ने बेरोजगारी को इस प्रकार से परिभाषित किया है यह वह अवस्था है, जिसमें काम के आभाव में लोग बिना कार्य के रह जाते हैं| यह कार्ययत व्यक्ति नहीं है, किंतु रोजगार कार्यालयों, मध्यस्थों, मित्रों, संबंधियों आदि के माध्यम से या संभावित रोज़गारदाताओं का आवेदन देकर या वर्तमान परिस्थितियों और प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने की इच्छा प्रकट कर कार्य तलाशते है|
वर्ष 2011-12 के दौरान श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर 3.8% हैं| देश के विभिन्न राज्यों में गुजरात में बेरोजगारी दर सबसे कम 1% है, जबकि दिल्ली एवं महाराष्ट्र में 4.8% एवं 2.8% है| सार्वधिक बेरोज़गारी दर वाले राज्य केरल और पश्चिम बंगाल थे| इस सर्वे के अनुसार, देश की महिलाओं की अनुमानित बेरोज़गारी दर 7% थी| बेरोजगारी समस्या के कारणों को जानने से पहले इसकी स्थितियों को जान लेते हैं| दरअसल, बेरोज़गारी की स्थितियां होती हैं|
इस दृष्टिकोण से भारत में प्राय निम्न्लिखित प्रकार की बेरोजगारी देखी जाती है|
खुली बेरोजगारी इससे से तात्पर्य उस बेरोज़गारी से है, जिसमें व्यक्ति को कोई काम नहीं मिलता| यह सबसे गंभीर समस्या है, इसमें कुशल एवं अकुशल श्रमिक को बिना काम किए ही रहना पड़ता ह| गांव से शहरों की ओर लोगों का पलायन इसकी मुख्य वजह है|
शिक्षित बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी भी खुली बेरोज़गारी जैसी है, किंतु इसमें थोड़ा सा अंतर यह है कि व्यक्ति को उसकी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता| उदाहरण राजमिस्त्री को काम के आभाव में मजदूर का काम करना पड़े| भारत में यह एक गंभीर समस्या है|
घर्षणात्मक बेरोजगारी बाजार में आए उतार-चढ़ाव या मांग में परिवर्तन जैसे स्थितियों के कारण उत्पन्न बेरोज़गारी की अवस्थाएं घर्षणात्मक बेरोजगारी कहलाती है|
मौसमी बेरोजगारी यह मुख्य रुप से कृषि क्षेत्र में पाई जाती है, इसमें कृषि श्रमिक वर्ष के कुछ महीने कृषि कार्य में संग्लन होते हैं तथा शेष अवधि में बेकार पड़े रहते हैं| भारत में कृषि क्षेत्र में सामान्यत: 7-8 महीने ही काम चलता है, शेष महीनों में कृषि में लगे लोगों को बेरोज़गार रहना पड़ता है| ऐसी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी कहलाती है|
शहरी बेरोजगारी बड़े पैमाने पर शहरीकरण किए जाने के दौरान शहरों में बढ़ती जनसंख्या की तुलना में रोज़गार के अवसरों का विस्तार नहीं हो पाता है, वही गांव में रोज़गार नहीं मिलने के कारण भी लोग शहर की ओर पलायन करते हैं, परंतु शहरों में सभी को काम नहीं मिल पाता| ऐसी बेरोजगारी शहरी बेरोजगारी कहलाती है|
ग्रामीण बेरोजगारी गाँवो के लोग पहले आपस में ही कामों को बँटवारा कर लेते थे| कोई कृषि कार्य में संग्लन में रहता था, तो कोई गाँव के अन्य कार्य में संपन्न करता था| गाँवो से शहरों की और पलायन के कारण गाँवो की यह व्यवस्था समाप्त हो गई है, जिसमें गाँवो के अधिकतर लोग बेरोज़गार हो गए हैं|
संरचनात्मक बेरोजगारी औद्योगिक क्षेत्र में जब संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं, तो इसमें कुछ अल्प-दक्ष या अनावश्यक कर्मचारियों की छंटनी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी संरचनात्मक बेरोज़गारी कहलाती है| इसमें तीव्र प्रतियोगिता के कारण पुरानी तकनीक वाले उद्योग बंद होने लगते हैं तथा उनके स्थान नहीं मशीन ले लेती है| भारत में भी ऐसी बेरोजगारी पाई जाती है|
अल्प-रोज़गार वाली बेरोजगारी ऐसे श्रमिक, जिनको कभी-कभी ही काम मिलता है, हमेशा नहीं, इस बेरोज़गारी के अंतर्गत आते हैं| बेरोज़गारी की इस श्रेणी के अंतर्गत श्रमिकों को भी सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम नहीं मिल पाता|
अदृश्य बेरोजगारी ऐसी बेरोजगारी प्राय: कृषि क्षेत्र में दिखाई पड़ती है| खेतों में कुछ ऐसे श्रमिक भी कार्य करते हैं, जिन्हे यदि काम से हटा दिया जाए तो, उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता| इस स्थिति में लोग कार्य करते तो दिखाई पड़ते हैं, पर वास्तव में देखा जाए तो वह बेरोज़गार ही होते हैं, क्योंकि उत्पादन में उनकी कोई भागीदारी नहीं होती | इसे प्रच्छन्न बेरोज़गारी भी कहा जाता है| प्रच्छन्न बेरोज़गारी की धारणा का उल्लेख सर्वप्रथम श्रीमती जॉन रॉबिंस ने किया है|
बेरोजगारी मापन की अवधारणा :-
सामान्य बेरोजगारी इसमें सामान्यत: है यह देखा जाता है कि लोग रोज़गार में होते हुए, बेरोज़गार हैं या श्रम शक्ति से बाहर हैं| इसमें लम्बी अवधि के आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, अतः यह दीर्घकालिक बेरोजगारी को दर्शाता है|
साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी इसके अंतर्गत सप्ताहभर अर्थात पिछले 7 दिनों की गतिविधियों का विश्लेषण कर बेरोज़गारी की माप प्रस्तुत की जाती है|
दैनिक स्थिति बेरोजगारी इसमें व्यक्ति की प्रतिदिन की गतिविधियों पर गोर करके बेरोजगारी की माप प्रस्तुत की जाती है|
उपयुक्त तीनो अवधारणाओं में दैनिक स्थिति, बेरोज़गारी की सर्वोत्तम में प्रस्तुत करती है| यदि कुल बेरोजगारों में युवाओं को देखा जाए, तो वर्ष 1993-94 से 2004-05 की अवधि में ग्रामीण तथा शहरी, दोनों क्षेत्रों में ही बेरोज़गारी दर में वृद्धि हुई है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्थिक समृद्धि में बाधक है|
हमारे देश में बेरोजगारी के कई कारण है| जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि इसका एक सबसे बड़ा एवं प्रमुख कारण है| बढ़ती जनसंख्या के जीवन-निर्वहन हेतु अधिक रोज़गार सृजन की आवश्यकता होती है, ऐसा न होने पर बेरोज़गारी में वृद्धि होना स्वभाविक है| भारत में व्यावहारिक के बजाए सैद्धांतिक शिक्षा पर जोर दिया जाता है, फलस्वरूप व्यक्ति के पास उच्च शिक्षा की उपाधि तो होती है, परंतु न तो वह किसी कार्य में दक्ष हो पाता है और न ही अपना कोई निजी व्यवसाय शुरू कर पाता है|
इस तरह, दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी बेरोज़गारी को बढ़ाने में काफी हद तक जिम्मेदार है| देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की यह पंक्तियां भी हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों को प्रमाणित करती है:- हमारे देश में हर साल 9 लाख पढ़े-लिखे लोग नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं, जबकि यह शतांश के लिए भी नौकरियाँ खाली नहीं| हमारे यहां स्नातक के स्थान पर वैज्ञानिकों और तकनीकों विशेषज्ञों की आवश्यकता है|
पहले अधिकतम ग्रामीण, कुटीर उद्योगों से अपनी आजीविका चलाते थे| ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग विरोधी नीतियों के कारण देश में इनका पतन होता चला गया| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी इसके उत्थान के लिए कुछ विशेष प्रयास नहीं किए गए, जिसके दुष्परिणामस्वरूप गाँवो की अर्थव्यवस्था चेन्न भिन्न हो गयी और ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि हुई| औद्योगिकरण के मंद प्रक्रिया के कारण भी तेजी से बढ़ती जनसंख्या के लिए रोजगार उपलब्ध करवाना संभव नहीं हो सका| हमारे देश प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है, किंतु पूंजी एवं तकनीक के अभाव में हम इनका समुचित उपयोग नहीं कर पाते| भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है, किंतु कृषि के पिछड़ेपन के कारण इस क्षेत्र के लोगों को सालों भर रोजगार नहीं मिल पाता है|
बेरोज़गारी के कई दुष्परिणाम होते हैं | बेरोजगारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती है| बेरोजगारी के कारण मानसिक अशांति की स्थिति में लोगों की चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध की ओर प्रवाहित होने की पूरी संभावना रहती है| अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोज़गारी ही है| कई बार तो बेरोज़गारी की भयावह स्थिति से तंग आकर आत्महत्या भी करते हैं| युवाओं की बेरोजगारी का लाभ उठाकर एक और जहां स्वार्थी राजनेता इनका दुरुपयोग करते हैं, वहीं दूसरी और धनी वर्ग व्यक्ति भी इनका शोषण करने से नहीं चूकते| ऐसी स्थिति में देश का राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण अत्यंत दूषित होता है|
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर, शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार करते हुए व्यावसायिक एवं व्यवहारिक शिक्षा पर जोर देकर, कुटीर उद्योग को बढ़ावा देकर एवं औद्योगिकरण द्वारा रोज़गार के अवसर सृजित कर हम बेरोज़गारी की समस्या का काफी हद तक समाधान कर सकते हैं| महात्मा गांधी ने भी कहा था:- भारत जैसे विकासशील देश लघु एवं कुटीर उद्योग की अनदेखी कर विकास नहीं कर सकता|
ग्रामीण क्षेत्र के लिए अनेक रोज़गार मुख्य योजनाएं चलाए जाने के बावजूद बेरोजगारी की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं हो रहा है| ऐसे स्थिति के कई कारण है| कभी-कभी योजनाओं को तैयार करने की दोषपूर्ण प्रक्रिया के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाता या ग्रामीणों के अनुकूल नहीं हो पाने के कारण भी कई बार यह योजनाएं कारगर साबित नहीं हो पाती|
प्रशासनिक खामियों के कारण भी योजनाएँ या तो ठीक ढंग से क्रियान्वित नहीं होती या ये इतनी देर से प्रारंभ होती हैं कि उनका पूरा-पूरा लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाता| इसके अतिरिक्त भ्रष्ट शासनतंत्र के कारण जनता तक पहुंचने से पहले ही योजनाओं के लिए निर्धारित राशि में से दो-तिहाई तक बिचौलिया खा जाते हैं| फलत: योजनाएं या तो कागज तक सीमित रह जाते हैं या फिर वे पूर्णत: निर्थक साबित होती हैं|
बेरोजगारी एक अभिशाप है| इसके कारण देश की आर्थिक वृद्धि बाधित होती है| समाज में अपराध एवं हिंसा में वृद्धि होती है और सबसे बुरी बात तो यह है कि बेरोज़गार व्यक्ति को अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहते हुए अपने घर ही नहीं बाहर के लोगों द्वारा भी मानसिक रुप से प्रताड़ित होना पड़ता है| बेरोजगारी की समस्या का समाधान केवल सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं होता हो सकता, क्योंकि सच्चाई यही है कि सार्वजनिक ही नहीं निजी क्षेत्र के उद्यमों की सहायता से भी हर व्यक्ति को रोज़गार देने किसी भी देश की सरकार के लिए संभव नहीं है|
बेरोजगारी की समस्या का समाधान तभी संभव है, जब व्यावहारिक एवं व्यवसायिक रोजगारोंन्मुखी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर लोगों को स्वरोज़गार अथवा निजी उद्योग एवं व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए प्रेरित किया जाए| आज देश की जनता को अपने पूर्व राष्ट्रपति श्री वराहगिरी वेंकटगिरि कि कही बात:- “प्रत्येक घर कुटीर उद्योग है और हम भूमि के प्रत्येक एकड़ एक चरागाह” से शिक्षा लेकर बेरोज़गारी रूपी दैत्य का नाश कर देना चाहिए|
Note :- Unemployment Essay in Hindi अगर आपको बेरोजगारी की समस्या पर निबंध अच्छा लगा हो को तो इस निबंध को अवश्य शेयर करे ताकि और लोगो तक भी बेरोजगारी की समस्या की इनफार्मेशन मिले सके |