समाज सुधार हेतु सुझाव

हमारी जाति की पूर्व में स्थिति बहुत ही दयनीय थी । इसके लिये जहां स्‍वर्ण व जागीरदार लोग दोषी थे, वहीं हममें भी कई प्रकार की कमियां होती थी । किन्‍तु अब समय बदल गया है, समाज में शिक्षा का प्रसार भी काफी हो गया है । अन्‍य जातियों के लोग भी अपनी कुरीतियों तथा अन्‍य कमियों को दूरकर समाज में आवश्‍यक सुधार कर रहे है । अत: हमारे समाज में भी प्रगति हेतु आवश्‍यक सुधार कर रहे है । अत: हमारे समाज में भी प्रगति हेतु आवश्‍यक सुधार होने चाहिए । इस विषय में मैं (लेखक:स्‍व.रूपचन्‍द जलुथरिया) अपने समाज सुधार हेतु कुछ सुझाव प्रस्‍तुत कर रहा हुँ, जो निम्‍न प्रकार है :-

(क). शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार :-

1. अनिवार्य शिक्षा :- समाज में 14 वर्ष तक के सभी बालक-बालिकाओं को शिक्षा अनिवार्य रूप से दिलवाई जाये । सामाजिक उन्‍नति हेतु प्रत्‍येक को शिक्षित होना अति आवश्‍यक है ।

2. बालिका शिक्षा पर जोर देना :- जैसा कि कहा जाता है कि लड़के को शिक्षा दिलाना तो उसे स्‍वयम् को ही शिक्षित करना है किन्‍तु लड़की को शिक्षा दिलाना उसके सारे परिवार को शिक्षित करना है । शिक्षित लड़की अपनी भावी पी‍ढ़ि को शिक्षा तो दिलायेगी ही उन्‍हें पूर्णत: सुशिक्षित भी बनायेगी । अत: बालिका शिक्षा पर विशेष ध्‍यान चाहिए । जो साधन सम्‍पन्‍न है वे चाहे तो उच्‍च शिक्षा व मेडिकल इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा भी दिला सकते है । किन्‍तु उच्‍च शिक्षा दिलाते समय यह अवश्‍य विचार कर लें कि समाज में उनके योग्‍य वर तथा धर तलाशने में व रिश्‍ता करने में कुछ पेरशानियां होने लग गई है । अब अनेक जगह लड़कों की पढ़ाई का ग्राफ गिरने लग गया है, और अधिकतर पढ़े लिखे लड़के बेरोजगार भी होते है । जो रोजगार शुदा है तथा डॉक्‍टर इंजीनियर कुछ योग्‍य लड़कों को दूसरी जाति वाले उचकाकर ले जाते है ।

3. प्रौढ़ शिक्षा की ओर ध्‍यान देना :- हमारे समाज में शिक्षा का आंकड़ा बहुत कम होने के कारण जहां तक सम्‍भव हो शिक्षा में रूचि रखने वाले लोग अपने परिवार के प्रोढ़ों को भी अवश्‍य शिक्षित बनाये व अन्‍य लोगों को भी प्रेरित करें ।

4. शिक्षा में गुणात्‍मक सुधार :- हमारी जाति में शिक्षा का प्रचार-प्रसार तो ठिक ही हो रहा है । आज छोटे-छोटे गांवों में भी अनेक बी.ए., एम.ए. व अन्‍य डिग्री प्राप्‍त युवक मिल जायेंगे किन्‍तु उनमें वांछित योग्‍यता के अभाव में बेरोजगार होकर इधर-उधर मारे-मारे फिरते हैं । हमारे समाज में उच्‍च पदों पर बहुत ही कम व्‍यक्ति ही जाते हैं जो नगण्‍य से है । अत: शिक्षा में गुणात्‍मक सुधार की आवश्‍यकता है ताकि किसी भी प्रतियोंगिता में उत्तीर्ण होकर, उच्‍च पद पर नियुक्‍त होकर अपना व जाति का नाम रोशन कर सके ।

5. प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को प्रोत्‍साहित करना :- समाज के प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को सामाजिक संगठन तथा व्‍यक्तिगत स्‍तर पर प्रोत्‍साहन हेतु छात्रवृति, पठन सामग्री व अन्‍य आवश्‍यक सामान में सहायता करें, उन्‍हें समारोह में पारितोष्‍क व मेडल दिये जाये । इससे अन्‍य छात्र-छात्रायें भी उनके जैसा बनने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे ।

6. चारित्रिक शिष्‍टाचार की शिक्षा भी देना :- आज कल नये वातावरण, सिनेमा व टेलीविजन के कारण कुछ युवा वर्ग के पाँव फिसलने लग गये है और वे पढ़ाई लिखाई बन्‍द कर, दूर भागकर चोरी छुपे शादी विवाह रचा लेते हैं, कुछ कुसंगत के कारण चोरी, हत्‍या, बलात्‍कार व अन्‍य कई प्रकार के अनैतिक व जघन्‍य अपराधिक कार्य करने लग जाते है । अत: हर माता-पिता को चाहिये कि लड़के-लड़कियों के चरित्र व कार्यों पर पूर्ण्‍ निगाह रखें । उन्‍हें शिष्‍टाचार का पूरा-पूरा ज्ञान दें व बोलचाल तथा व्‍यवहार का भी ज्ञान दे ।

(ख). सामाजिक कुरीतियों पर अंकुश लगाना :- 

आज के बदलते हुये परिवेश में हर समाज अपनी प्रचीन सामाजिक कुरीतियों को शनै: शनै: समाप्‍त कर रहे हैं और आवश्‍यकतानुसार संशोधन भी कर रहे है । हमें भी हमारे समाज में व्‍याप्‍त निम्‍नलिखित कुरीतियों में सुधार करना व अंकुश लगाना चाहिए । हमारे पंच-पंचायत तथा सामाजिक संगठन इस ओर कठोर कदम उठाये –

1. मृत्‍युभोज, गंगा भोज व कोंली आदि विशाल भोज पर अंकुश लगाना :- यद्यपि दौसा व जयपुर सम्‍मेलन के समय से ही समाज सुधारक इन्‍हें कम तथा बन्‍द करने में लगे हुये है । अब इमें काफी सुधार व कमी तो हुई है फिर भी अनेक क्षेत्रों में अब भी भोज विशाल रुप में हो रहे है ऐसा भी देखा जा रहा है कि कई लोग तो अपने देवाल रिश्‍तेदारों के बल पर ही ऐसे विशाल भोज का आयोजन करते देखे गये है जो निन्‍दनीय है । इन्‍हें जहां तक हो बन्‍द किया जाना चाहिए अन्‍यथा दस्‍तूरी तौर पर बहुत ही कम मात्रा में ही किया जाय तथा देवाल भी होड़ में न पड़कर निश्चित व कम राशि ही दें ।

2. सगाई,विवाह में फिजूल खर्चें पर अंकुश लगाना :- आज कल सगाई की लेन-देन भी दो-तीन तथा कहीं-कहीं तो चार-चार स्‍टेज पर भी होने लग गई जिनमें कई तो शादी जैसी तैयारी व खर्चा करने लग गये और कुछ तो दो-तीन लाख तक भी खर्च करते देखे जा रहे है । इसे सीमित किया जाये व दस्‍तूर भी एक ही स्‍तर पर हो ।

इसी प्रकार शादी में भी बारातियों की संख्‍या बहुत अधिक होने लग गई है और कई जगह तो दोनों ओर की संख्‍या दो-तीन व चार-पॉच हजार तक होने लग गई है । इसे भी कम किया जाय । बरात का खाना एक टाईम का ही हो तथा शादी भी दिन की ही रखनी चाहिए हो सके तो विवाह भी सामूहिक विवाहों में ही करना चाहिये ।

3 दहेज व अन्‍य लेन देन भी सीमित हो :- अब लोग देखा-देखी अपनी आर्थिक दशा से अधिक भी लेन-देन व दहेज या सामान देने लग गये है उनका यह दृष्टिकोण भी होता है कि लड़के वाले खुश रहेंगें तो लड़की को ठीक रखेंगे । इस विषय में दोनों पक्षों को ही सोचना चाहिये । दहेज व लेन-देन की मात्रा सीमित रखें और व्‍यर्थ की नई लाग न लगायें ।

यह सामाजिक कुरीरियों तथा सगाई-विवाह, दहेज, बारात व जामणा, पहरावणी पर यदि कोई व्‍यक्तिगत अंकुश लगावें तो वह कारगर नहीं होता इन्‍हें तो पंचायत व समाज संगठन व्‍दारा ही समाप्‍त कर अंकुश लगाया जा सकता है क्‍योंकि पहले कुछ लोगों ने ऐसा किया था इन सुधारवादी लोगों की लड़कियों की लोगों ने कम लेन-देन के कारण सम्‍बन्‍ध ही तोड़ दिये थे ।

(ग). जन स्‍वास्‍थ्‍य सुधार कार्यों पर ध्‍यान देना :-

हमें हमारे खान-पान व स्‍वास्‍थ्‍य पर भी ध्‍यान देना चाहिए तथा वासनाओं पर अंकुश लगाना चाहिए इसके लिए निम्‍न उपाय किये जाये –

1. नशा बन्‍दी पर जोर देना :- हमारे समाज में व्‍यक्तिगत और सामूहिक स्‍तर पर शराब का बहुत प्रचलन है हमारे समाज में जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक के सभी कार्यों में सामूहिक रूप से शराब का प्रयोग अवश्‍यम्‍भावी होता आया है । इससे एक ओर जहां धन की हानि तथा स्‍वास्‍थ्‍य में गरावट होती है वहीं अधिक पी लेने से कई जगह तो उधम, लड़ाई, झगड़ा व गाली-गलौच करके सामाजिक कार्य की दुर्गति ही कर देते है ।

अत: सभी प्रकार के सामाजिक कार्यों में सामूहिक रूप से शराब का प्रयोग करना तो बिल्‍कुल बन्‍द ही कर देना चाहिए तथा करने वालों को पंचायत व संगठन द्वारा दंडित कर देना चाहिए । इसके अतिरिक्‍त अन्‍य नशीली वस्‍तुयें जैसे भांग व गांजा गुटके आदि के सेवत भी बन्‍द कर दें ।

2. अंध विश्‍वासों को नहीं मानना :- अनेक लोग बीमारी तथा अन्‍य आपदाओं के समय अंध विश्‍वासियों के चक्‍कर में पड़ जाते है और स्‍याणे, भोपा, जोगी, मौलवी, झाडू-फूंक करने वाले ओझा तथा देवी-देवताओं के झूंठे चक्‍कर में पड़कर रूपये पैसे की बरबादी भी कर देते है व स्‍वास्‍थ्‍य में भी हानि करा लेते है । कई लोग तो जान भी गवां देते है । कई जगह तो लोग सामाजिक कार्यों में भी अंध विश्‍वासों में पड़कर बर्बाद हो जाते है । हमें ऐसे झूंठे व्‍यक्तियों से बचना चाहिये और बीमारी आदि में उचित निदान करवाना चाहिये ।

3. जनसंख्‍या पर नियंत्रण :- हमारे देश की जनसंख्‍या प्रतिवर्ष करोड़ों में बढ़ती जा रही है । पहले लोग कहते थे बहु परिवार सुखी, पर अब तो वह दु:खी होता है । आज अधिक सन्‍तात होने से उनका पोषण व सगाई ब्‍याह में ही गृहस्‍थी पूरी तरह दु:खी व परेशान हो जाता है । और उसकी उम्र ही पूरी हो जाती है । वह उन्‍हें भली प्रकार से न तो शिक्षित बना सकता है और न पूर्ण विकास ही । अत: सीमित परिवार रखने से सन्‍तान का पूर्ण विकास होगा व आप भी सुखी रहेंगे । आप परिवार नियोजन कर देश के विकास में भी सहयोगी होंगे ।

4. बाल विवाह पर रोक लगाना :- बाल-विवाह करना सन्‍तान के विकास में अवरोध पैदा करना मूर्खता पूर्ण कार्य है । जब लड़के-लड़की युवा हो जायें तथा घर गृहस्‍थी का भार संभालने योग्‍य हो जायें तभी उनका विवाह करना चाहिये । इससे उनका भावी जीवन भी सुखी होगा । कम आयु में विवाह करने से जल्‍दी ही सन्‍तान उत्‍पन्‍न होगी जिससे माता-पिता व सन्‍तान भी अस्‍वस्‍थ्‍य व अशक्‍त ही रहेंगे ।

(छ). आर्थिक विकास पर जोर देना :- 

हमारे पुश्‍तैनी धन्‍धे तो लगभग छूट ही गये, न किसी के पास कृषि करने हेतु जमीन है, और जमीन है तो पानी भी नहीं है । लड़कों के पढ़ लिख जाने से वे मेहनत मजदूरी भी नहीं कर सकते । और नौकरियां मिलता भी लगभग समाप्‍त सा हो गया । जिससे बेरोजगारी की समस्‍या अधिक उग्र हो रही है । अत: रोजगार व आर्थिक विकास हेतु निम्‍न सुझाव प्रस्‍तुत है-

1. समाज में रोजगार के नये-नये आयाम स्‍थापित किये जायें :- आज कल रोजगार के नये-नये आयाम चालू हो रहे है और कम्‍प्‍यूटर युग आ गया है । अत: हमें भी हमारे युवाओं को इस ओर प्रेरित करना चाहिये । पुरानी परिपाठी को छोड़कर इस ओर विशष ध्‍यान दे, विशेष कर कम्‍प्‍यूटर सीखने पर ।

2. रोजगार सम्‍बंधी विशेष ट्रेनिंग लेना :- जो युवक शिक्षा में कमजोर हो तो उन्‍हें उच्‍च शिक्षा यानी बी.ए., एम.ए. न कराकर सैकेण्‍डरी के बाद ही किसी भी धंधे की ट्रेनिंग में भिजवा देना चाहिये । जैसे आई.टी.आई. में ही बिजली रेडियो, टी.वी. मै‍केनिक, टाईपिंग, दर्जी व खाती का काम आदि सिखाये ।

3. कृषि व उद्योग को प्रोत्‍साहन देना :- कृषि व कुटीर उद्योग कार्यों मे भी विशेष रूचि लेकर काम करना चाहिये तथा उद्योग विभाग, सहकारी विभाग व बैंक आदि से ऋण व अनुदान प्राप्‍त कर व्‍यवसाय को बढ़ाना चाहिये । इसके अतिरिक्‍त डेयरी उद्योग पर भी ध्‍यान देकर सहभागी बने । इन कार्यों से परिवार के सभी लोगों को रोजगार मिल जाता है ।

हमारे पारस्‍परिक भेदभाव भुलाकर संगठन को सुदृढ़ बनाएं तथा संगठन रूपी छोटे-छोटे नालों को जोड़कर माहन सुरसरी प्रवाहित करें व उनकी युवा व महिला शाखायें भी खोली जाये, तथा जिला तहसील परगना आदि प्रत्‍येक क्षेत्र में शाखायें खोली जाये ।

(च). समाज की महान विभूतियों को याद किया जाये :- 

हमारे समाज में अनेक महान पुरूष हुये है, जैसे- स्‍वामी ज्ञानस्‍परूप जी महाराज, स्‍वामी आत्‍माराम जी लक्ष्‍य अनेक महान त्‍यागी व समाज सुधारक हुये है । इसी प्रकार अपने अड़ोस-पड़ोस में गांव व शहर में भी ऐसी विभूतियां हुई है । उनको उनके जन्‍म व निर्वाण दिवस पर तथा अन्‍य सामाजिक समारोह में याद किया जाय और उनका उचित सम्‍मान किया जाय तथा वर्तमान पीढ़ि के समक्ष उनके कार्यों का बखान किया जाये । जिससे लोगों में समाज सेवा के प्रति जागरूकता बढ़ेगी ।

(छ). महिलाओं के साथ समानता व न्‍यायोचित व्‍यवहार करना :- 

महिलाओं के साथ अत्‍याचार न कर समान व न्‍यायोचित व्‍यवहार करे । उनके अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा करें तथा सामाजिक संगठनों में भी उन्‍हें सम्मिलित करे । वास्‍तव में नारी सम्‍मान व श्रद्धा की पात्र है, वह पुत्री बनकर आती है तथा पत्‍नी, माँ व दादी बन कर पुरूष वर्ग की सहृदय व पूर्ण तन्‍मयता से सेवा करती है । किसी ने कहा है कि :-

नारी नर की खान है, नारी नर की शान ।
नारी से नर ऊपजै, ध्रुव प्रहलाद समान ।।

अत: महिलाओं का उचित सम्‍मान करें और उन्‍हें समान व न्‍यायोंचित अधिकार प्रदान करें । उनके उचित कार्यों में बाधक न बने ।

(ज). राजनीति व सत्ता में भागीदार होना :- 

हमारे समाज की राजनीति व सत्ता में भागीदारी बहुत ही कम है । इस कमी के कारण हमारे अनेक आवश्‍यक कार्य भी नहीं होते और हम मुंह ताकते ही रह जाते है । अत: अधिक से अधिक लोगों को राजनीति में भी जाना चाहिये । आप अपनी पसन्‍द की किसी भी पार्टी में सम्मिलित होकर कार्य करें । यदि आप ठोस कार्यकर्त्ता होंगे तो पार्टी आपको चुनाव में टिकिट भी देगी । वैसे मात्र चुनाव में समय टिकिट मांगने पर कोई नहीं देता । चुनाव के समय वैसे ही टिकिट मांगते व एक दूसरे की टांग खींचने कारण हमारी शक्ति क्षीण ही होती है । हमारी जाति के कई योग्‍य व्‍यक्ति चुनाव के समय ही पार्टियों से टिकिट मांगते हैं, जिन्‍हें नहीं मिलता । ऐसे लोग पहले से ही किसी भी पार्टी में जाकर सक्रिय कार्य करें तभी टिकिट व सफलता मिलेगी ।

हमें ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक सभी क्षेत्रों के चुनावों में अधिक से अधिक भाग लेना चाहिए एवम् समाज संगठन के माध्‍यम से एक पद के लिए मिलकर एक ही उम्‍मीदवार खड़ा करना चाहिये ताकि वोटों का बंटवारा न होने से हमारे उम्‍मीदवार की जीत सुनिश्चित हो जाये । प्राय: पंचायत चुनावों में यह देखा गया है कि एक सीट के लिए कई जाति बन्‍धु खडे हो जाने से हमारी 75% आबादी होने पर भी हमारे उम्‍मीदवार हार जाते है । हमारे कार्यकर्त्ताओं व राजनेताओं को इस ओर विशेष ध्‍यान देना चाहिये ।

अत: समाज के सभी युवा व प्रौढ़ बुद्धिजीवियों से मेरा यही आग्रह है कि वर्तमान परिवेश में समाज संगठन के महत्त्व को समझें और संगठित होकर समाज सुधार सम्‍बंधित सभी बातों पर पुरजोर ध्‍यान दें । समाज में व्‍याप्‍त बुराईयों को दूर करें व प्रगतिशील बातों की ओर ध्‍यान देकर समाज उत्‍थान हेतु उन्‍हें क्रियान्वित करें तभी हमारे समाज की उन्‍नति सम्‍भव है । धन्‍यवाद !

(साभार- स्‍व. श्री रूपचन्‍द जलुथरिया कृत ‘रैगर जाति का इतिहास’)

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