क्षत्रिय होने का प्रमाण

इतिहास, बही भाटों की पोथियों, रैगरों के संस्‍कारों, रैगरों की धार्मिक आस्‍था, रैगरों के रीति रिवाज आदि दृष्टियों से रैगरों का क्षत्रिय होना निम्‍नानुसार प्रमाणित होता है-

1. गंगा को पृथ्‍वी पर राजा भागीरथ ने अवतरित किया था । राजा भागिरथ सूर्यवंशी क्षत्रिय थे । रैगरों का भागीरथ वंशीय होने का अकाट्य प्रमाण यह है कि रैगर गंगा को अपनी इष्‍ट देवी मानते है । भारत के किसी भी कोने में चले जाएं जहां रैगरों का मोहल्‍ला होगा वहाँ पर गंगा माता का मंदिर अवश्‍य देखने को मिलेगा । रैगर जाति के अलावा अन्‍य किसी भी जाति में यह विशेषता नहीं मिलेगी । प्रत्‍यक्ष को प्रमाण की आवश्‍यकता ही नहीं है ।

2. रैगरों में विवाह के समय जनेऊ पहिनने की प्रथा है । राजपूतों (क्षत्रियों) में भी विवाह के समय जनेऊ पहनी जा‍ती है । रैगरों और राजपूतों के अलावा किसी भी जाति में यह प्रथा नहीं है ।

3. रैगर और राजपूत अपनी भौजाई को मां के समान समझते हैं । विवाह संस्‍कार में बरात जब रवाना होती है तब रैगरों तथा राजपूतों में दुलहे को मां का स्‍तनपान कराने की प्रथा है । यदि मां जीवित नहीं है तो भौजाई का स्‍तनपान कराया जाता है । इससे स्‍पष्‍ट है कि इन दोनों जातियों में भौजाई को मां का दर्जा दिया गया है । अन्‍य जातियों में भाई की मृत्‍यु के बाद भौजाई को पत्‍नी बनाकर रखली जा‍ती है ।

4. रिश्‍ता (सगाई) करने में जितने गोत्र क्षत्रिय (राजपूत) टालते है उतने ही गौत्र रैगर भी टालते हैं । (दादा, दादी, नाना, नानी का गोत्र टालते है)

5. रैगरों तथा राजपूतों में सामूहिक विवाह की प्रथा नहीं थीं । एक घर में एक समय में एक ही मण्‍डप (चंवरी) बनता था । आज भी अन्‍य जातियों की तुलना में रैगरों तथा राजपूतों में सामूहिक विवाह कम होते हैं ।

6. रैगर जाति में सात फेरों से विवाह करने की प्रथा है । राजपूत जाति में भी सात फेरों से विवाह करते हैं । रैगरों में भी राजपूतों की तरह चार फेरों में दुलहन आगे रहती है तथा बाद के तीन फेरों में दुल्‍हा आगे रहता है ।

7. राजपुतों में विवाह ब्राह्मण करवाता है । रैगर जाति में भी विवाह गौड़ ब्राह्मण करवाते है । अनुसुचित जातियों में एक मात्र रैगर जाति ही ऐसी जाति है जिसमें गौड़ ब्राह्मण जाकर विवाह करवाते हैं जबकि अन्‍य किसी अनुसुचित जाति के विवाह में ब्राह्मण नहीं जाते हैं ।

8. राजपूतों के चारण भाट की तरह रैगरों के बही भाट भी तथाकथित स्‍वर्ण जाति के हैं जो वर्तमान में रैगरों के घरों का बना हुआ खाना नहीं खाते हैं । रैगर जाति के अलावा तमाम अन्‍य अनुसुचित जातियों के भाट स्‍वयं भी अनुसुचित जाति के ही होते हैं जो अपने यजमानों के घरों का बना हुआ खाना भी खाते हैं । रैगरों के भाट कहते भी हैं कि यदि रैगर शुरू से ही निम्‍न कर्म करने वाली जाति होती तो हम रैगरों का कभी नहीं मांगते । उनकी पोथियों से भी प्रमाणित है कि प्रारम्‍भ में इस जाति के कर्म उच्‍च थे जो कालान्‍तर में किन्‍ही परिस्थितियों के कारण निम्‍न कर्म अपना लिये ।

9. बही भाटों की पोथियों में रैगर झूझारों का गौरवशाली विस्‍तृत वर्णन देखने से प्रमाणिक रूप से कहा जा सकता है कि रैगर क्षत्रियों की तरह ही वीर और बहादुर कौम रही है । क्षत्रियों की तरह रैगर आज भी जीवन में आत्‍म स्‍वाभिमान को सर्वोच्‍च स्‍थान देता है ।

10. पुराने जमाने जब यातायात के साधन नहीं थे उस समय रैगर भी राजपूतों की तरह घोड़ा-घोड़ी पालते थे । राजपूत और रैगर सूबर (प्रसव) घोड़ी पर नहीं चढ़ते थे और आज भी इस धर्म का पालन करते हैं ।

11 .पं. ज्‍वालाप्रसाद कृत ‘जाति भास्‍कर’ में रैगरों को ऐतिहासिक आधार पर संगरवंशी क्षत्रिय प्रमाणित किया है ।

12. रमेशचन्‍द्र गुणार्थी ने अपनी पुस्‍तक ‘राजस्‍थानी जातियों की खोज’ में रैगर जाति को इतिहास के तथ्‍यों के आधार पर सगरवंशी क्षत्रिय प्रमाणित किया है ।

13. श्री ओमदत्‍त शर्मा गौड़ ने अपनी पुस्‍तक ‘लुणिया जाति निर्णय’ में रैगर जाति को क्षत्रिय जाति का एक भेद (शाखा) मानते हुए सूर्यवंशी प्रमाणित किया है ।

14. आज भी रैगरों के संस्‍कार क्षत्रियों के समान है ।

इन तमाम तथ्‍यों के आधार पर प्रमाणिक रूप से कहा जा सकता है कि रैगर क्षत्रिय हैं । जाति व्‍यवस्‍था मनुष्‍य की मानसिक संकीर्णता की परिचालक है। लाकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में सभी जातियाँ समान हैं। इसलिए भारत में आज क्षत्रिय को भी रैगर के घर वोट मांगने जाना पड़ता है । वर्तमान समय में अनुसुचित जातियों के मत ही निर्णयक मत हैं। इसलिए रैगर अनुसुचित जातियों की सुविधाओं से वंचित होकर क्षत्रियों का सामाजिक दर्जा लेना नहीं चाहते हैं। रैगर जाति अन्‍य अनुसुचित जातियों के साथ रह कर ही अपना सर्वांगिण विकास करना चाह‍ती है।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति)

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