[vc_row type=”in_container” full_screen_row_position=”middle” scene_position=”center” text_color=”dark” text_align=”left” overlay_strength=”0.3″][vc_column column_padding=”no-extra-padding” column_padding_position=”all” background_color_opacity=”1″ background_hover_color_opacity=”1″ column_shadow=”none” width=”1/1″ tablet_text_alignment=”default” phone_text_alignment=”default” column_border_width=”none” column_border_style=”solid”][vc_text_separator title=” समाज की आस्था के प्रतीक” css=”.vc_custom_1538653445594{margin-top: 20px !important;margin-bottom: 20px !important;}”][vc_column_text]
भारत एक ऐसा देश है जहां धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है । भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म एवं आस्था का यहां की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । समाज को इसी धर्म और आस्था ने एक जूट बनाकर रखा है इस लिए भारत में आस्था का एक विशेष महत्व है । भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है – हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिक्ख धर्म । भारतीयों का एक विशाल बहुमत स्वयं को किसी न किसी आस्था से संबंधित अवश्य बताता है एवम् उसी आस्था से प्रेरणा लेकर आज तक चलता आया है ।
इसी प्रकार रैगर समाज भी विशेष रूप से गंगा माता, बाबा रामदेव जी (रूणिचा वाले) एवम् संत रविदास में असिम आस्था एवम् विश्वास रखते गंगा माता एवम् बाबा रामदेव के मंदिर समाज के हर गांव-गांव एवम् शहर-शहर में आपकों देखने को मिल जायेंगे जहाँ रैगर बन्धु अधिक संख्या में निवास करते है वहाँ पर रैगरों के मोहल्लों, बस्तीयों में आपको गंगा माई और बाबा रामदेव जी के मन्दिर अवश्य देखने को मिलेंगे ।
गंगा माई रैगर समाज की इष्टदेवी है । हमारे समाज में गंगा-माता की बहुत मान्यता है यहाँ तक कि हमारे रैगर समाज को ‘जात-गंगा’ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । किसी बुजुर्ग पुरूष अथवा महिला के देहावसान के बाद उसके वंशज हरिद्वार जाकर गंगा-माता के अन्दर उसके अवशेष (फूल) प्रवाहित करना अपना कर्तव्य मानते है। समाज के बंधु इस कार्य को बहुत ही आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करते हैं ।
रैगर प्रारम्भ से ही गंगा माता के उपासक रहे हैं । गंगा के अलावा किसी भी देवी को इष्ट नहीं मानते हैं जेसा कि गंगा की सौगंध लेने के बाद रैगर उसे प्राण-प्रण से निभाते है । गंगा माता को रैगर आपनी कुल देवी के समान मानते है एवं पूजते है क्योंकि हम सगरवंशी है जैसा कि आपने रैगर समाज के इतिहास में पढ़ा होगा कि- राजा सगर के दो रानियाँ थी । छोटी रानी से साठ हजार पुत्रों ने जन्म लिया जो कपिल मुनि के कोप से पाताल लोक में भस्म हो गए । केशनी के पुत्र असमंजस ने अपनी तपस्या से कपिल मुनि को प्रसन्न करके उनके उद्धार के बारे में पुछा तो मुनि ने बताया कि स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाने से ही इनका उद्धार हो सकता है । असमंजस ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या प्रारम्भ की । उसके पश्चात् उसके पुत्र अंशुमान् फिर दिलीप तथा भागीरथ ने तपस्या की । भागीरथ की कठोर तपस्या से ब्रह्मा अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे गंगा को पृथ्वी पर लाने का वरदान दे दिया । मगर इस तरह लाने से प्रलय हो सकता था । इसलिए भागीरथ ने शिवजी से प्रार्थना की । शिवजी ने भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा को कैलाश पर्वत पर अपने सिर पर धारण किया । इस तरह भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने साठ हजार पूर्वजों को मोक्ष दिलाई । इस तरह रैगर जाति का जो सम्बंध सगर वंश से गंगा की आस्था के आधार पर बैठता है । संत रविदास जी भी गंगा माता में अपनी पूर्ण आस्था के साथ पूजते और मानते थे । बाबा रामदेव जी को में भी रैगर समाज बहुत आस्था रखता है एवम् उन्हें मानता है । संत रविदास में भी रैगर समाज की अपार आस्था हैं इनके नाम से समाज के बहुत सी धार्मिक एवम् सांस्कृतिक संस्थानों के नाम है । संत रविदास ने दलित जाति को ऊपर उठाने के लिए प्रयास करा इसलिए भी हमारी रविदास जी में असिम आस्था है इन्हें की भी समाज में पूजा की जाती है । सम्पूर्ण हिन्दू समाज जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवताओं में विश्वास रखता है उसी प्रकार हम भी इन सभी हिन्दू देवताओं के अलावा गंगा माता, संत रविदास एवं बाबा रामदेव में आस्था रखते है ।
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