यह मन्दिर जयपुर जिले के कुंडला क्षेत्र में मैड कस्बे से करीब 5 किलोमीटर पर बलेसर, श्यामपुर, पालड़ी तथा मैड गाँवों के बीच में बाण गंगा नदी के तट पर बनाया गया है । यह स्थान स्थानीय रातावालों के पूर्वज पीथा बाबा का बलिदान स्थल बताया जाता है । आरम्भ में देहली में बसे रातावाल परिवार वालों ने यहाँ मन्दिर व धर्मशाला बनवाने की योजना बनाई फिर आस-पास के रातावालों से सहयोग लिया और पीथा दादा के नाम से ही ट्रस्ट का गठन किया गया । जिसके अध्यक्ष देहली सरकार में मंत्री रहे श्री सुरेन्द्रपाल रातावाल तथा प्रधानमंत्री श्री पंकज मनु बनाये गये । इसके पश्चात् कार्य का विस्तार कर विस्तृत निर्माण हेतु मैड के दो चान्दोलिया बन्धुओं ने भी अपने खेत की कुछ जमीन दान स्वरूप दी ।
इस मन्दिर का मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा समारोह 16 अप्रैल, 2000 को सम्पन्न हुआ । इसमें दिल्ली, पंजाब, हरियाणा तथा जयपुर व राजस्थान के विभिन्न भागों के हजारों लोग सम्मिलित हुए थे । इसमें दिल्ली की महापौर श्रीमती मीरां कंवरिया राजस्थान के यातायात मंत्री माननीय छोगाराम जी बोकोलिया, संस्थान क पदाधिकारी तथा दिल्ली व अन्य स्थानों के समाज के विशिष्ट प्रतिनिधि आये थे ।
आरम्भ में यहाँ 101 जोड़ों द्वारा सिर पर श्रीफल युक्त कलश लेकर शोभा यात्रा निकाली गई इसके पश्चात् मुख्य मन्दिर प्रांगण में पूजा अर्चना हेतु स्त्री व पुरूषों के जोड़े बैठाये गये । फिर मन्त्रोचार के साथ हवन किया गया और पूर्णाहुति के पश्चात् शुभ घड़ी में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई । मुख्य द्वार के पास ही चित्र प्रदर्शनी लगाई गई थी जिसका उद्घाटन श्रीमती मीरां कंवरिया ने किया और भवन व मूर्तियों का अवलोकन किया । उनके साथ ही जन समूह भी मन्दिर के अहाते में बनी हुई विभिन्न मूर्तियों व अन्य निर्माण देखे । इसके पश्चात् एक ओर बने पंडाल में विशेष समारोह का आयोजन हुआ ।
इस समारोह की अध्यक्षता ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री सुरेन्द्र पाल रातावाल न की तथा छोगाराम जी बोकोलिया मीरां कंवरिया विशिष्ट अतिथि के रूप में थे । इसमें ट्रस्ट के पदाधिकारीयों ने आये हुए अतिथियों का सम्मना किया और मन्दिर निर्माण के बारे में आवश्यक जानकारी जन समूह को दी । कुछ लोगों ने अपने विचार भी प्रकट किये । संस्थान की ओर से सभी लोगों को भोजन की व्यवस्था थी । अत: सभी ने भोजन किया ।
मन्दिर में श्री पीथा जी की चरण पादुका तथा आदि देवशंकर भगवान व उनके परिवार की मूर्तियाँ है । यह मन्दिर बहुत बड़े मैदान में बनाया गया है । इसमें अनेक कमरे व बरामदे है जहाँ यात्रीगण सुविधा पूर्वक ठहर सकते है । यहाँ नल व विद्युत व्यवस्था भी अच्छी है । विद्युत हेतु दो जनरेटर लगे हुए है और पानी के लिए बोरिंग भी है ।
इस मन्दिर में विशेष बात यह है कि यहाँ तमिलनाड़ से सिमेन्ट व मसाले से मूर्तियाँ बनान वाले कारीगर बुलाये गये जो भवन के बरामदों तथा दीवारों में बनाये गये विशेष स्थानों पर विभिन्न स्थानों पर विभिन्न देवी-देवताओं जैसे- विष्णु जी, शीव जी, गणेश जी, पार्वती जी, हुनमान जी, भैरव जी, रामदेव जी, गंगा माता जी व शंकर जी के नांदिया आदि की रंगीन मूर्तियाँ बनवाई गई है जो बहुत ही चित्ताकर्षक है इसके अतिरिक्त करौली पत्थर की घड़ी हुई जालियाँ भी अनेक स्थानों पर लगाई गई है । मन्दिर के आस-पास का प्राकृतिक दृश्य भी बहुत ही मनोहर है । जब लोग बाबा भर्तृहरि के दर्शन करने जावेंगे तो मार्ग में यहाँ बने इस मन्दिर में तथा कुछ फासले पर इधर ही सायवाड़ त्रिवेणी के मन्दिर में भी बरबस ही दर्शनार्थ अवश्य जावेंगे ।
(साभार- स्व.श्री रूपचन्द जलुथरिया कृत ‘रैगर जाति का इतिहास’)
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