स्वामी श्री गुसाँई बाबा सन्त पीताम्बर जी महाराज
सन्त पीताम्बर दास जी महाराज का जन्म विक्रम सम्वत् 1695 (सन् 1938) तदानुसार जेठ वदि 3 तीज शनिवार को महन्त श्री चूहाराम जी गुसाँईवाल के यहाँ माता होलीबाई के गर्भ से ग्राम फागी – जयपुर में हुआ था । सन्त पीताम्बर दास जी का बचपन का नाम ‘पीता’ था तथा सन्यास लेने के बाद सन्त पीताम्बर दास – ‘गुसाँई बाबा’ के नाम से लोक प्रसिद्ध हुए ।
आप का भ्रमण युवा अवस्था से ही साधु-महात्माओं के संसर्ग में तीव्र गति से अध्यात्मवाद के जटिल प्रश्नों का हल करने तथा समाज सुधारक कार्य समाधि पर्यन्त चलता रहा । आपने समाज सुधारक कार्यों में अकथनीय परिश्रम करके युवा अवस्था में ही अपनी साधना शक्ति एवं उत्तम चरित्र के कारण बहुत से चमत्कारी परचे दिए थे । जिनकी आज भी राजस्थान के प्रत्येक गाँव में चर्चा की जाती है । शोषित तथा पीड़ित वर्ग की आर्थिक दशा सुधारने में ‘गुसांई बाबा’ ने पर्याप्त योगदान दिया और समाज को मानव सेवा का सत्य उपदेश देकर एक नई धार्मिक दिशा दिखाई जिस का संचालन ‘गुसांई साहित्य स्मारक निधि’ (संस्था) देश में आज भी कर रही है । अब समय आ गया था जब की इन्हें प्राप्त अनुभवों के आधार पर सत्य की खोज करके सत्यो उपदेश द्वारा ईश्वरीय ज्ञान का बोध कराना एवं भगवद् भक्ति का प्रचार करना अति आवश्यक था ।
भ्रमण के दौरान अछूतों की दयनीय सामाजिक और आर्थिक स्थिति देखकर उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा । उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर अछूतों, गरीबों, दीन-दुखियों तथा असहाय लोगों की सेवा करने का संकल्प लिया । वे सन्यासी बन गए । सन्यास लेने के बाद वे संत पीताम्बर गौसांई बाबा के नाम से विख्यात हुए । आपने जिस समाज में जन्म लिया था वह समाज सामाजिक शिक्षा अर्थिक स्थिति एवं शैक्षणिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था समाज में अनेक कुप्रथाओं ने घर कर लिया था, जिधर नजर डालते थे उधर अन्धकार ही अन्धकार दिखाई पड़ता था । समाज में गरीबी और अन्ध-विश्वास का प्रवेश था समाज की ऐसी दुखित परिस्थिति को देखकर स्वामी जी का कोमल हृदय व्याकुल हो उठा और उन्होंने संकल्प किया की समाज के सुधार कार्यों में अपनी सम्पूर्ण शक्ति का प्रयोग करूंगा । उन्होंने ज्यादातर कार्य रैगर समाज सुधार के किए । उन्होंने सामाजिक बुराइयों-मृत्युभोज, बालविवाह, अनमेल विवाह, मांस-मदिरा सेवन तथा गलत रीति-रिवाजों को त्यागने पर जोर दिया । गांव-गांव और घर-घर जाकर लोगों को बुराइयाँ छोड़ने के लिए प्ररित किया । प्रचार के लिए भजन व उपदेशों का सहारा लिया । रैगरों को समझाया कि वे अपनी सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं । सामाजिक बुराइयों और गलत आदतों को छोड़े बिना सुधार सम्भव नहीं है । उन्होंने रैगर सामज के सुधार का आन्दोलन चलाया । जहाँ जाते मादक पदार्थों के सेवन, फिजूलखर्ची तथा गलत परम्पराओं का घोर विरोध करते थे । उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ वातावरण बनाया । उनमें जबरदस्त्आध्यात्मिक शक्ति थी ।
मुगलशासन काल में समाज की यह हालत थी कि अगर कोई व्यक्ति समाज सुधार की बात कहता वह भी विष के समान लगती थी । ऐसे समय में ‘गंसाई बाबा ने धैर्य से काम लिया, ओर अपने धार्मिक प्रचार तथा भक्ति चमत्कारों से जन समुदाय को प्रभावित किया । जिससे मानव समाज के अन्तकरण में स्वामी जी के प्रति एक स्थाई जगह कर ली ।
सत्तरहवीं सदी भारतीय इतिहास की वह सीमा है जहां राजनैतिक जीवन के साथ-साथ हिन्दु समाज ऊंच-नीच, छूत-अछूत के भेद-भोवों में उलझा हुआ था । ऐसे कठिन समय में स्वामी जी गांव-गांव में भ्रमण करके ऊंच-नीच के भेदभावों को भाई चारे में बदलने तथा क्षत्रिय नियमों का पालन करने के लिए समाज में निरन्तर प्रचार करते रहे ।
विक्रम सम्वत् 1725 (सन् 1968) के आस-पास की बात है कि एक समय गुसांइ बाबा अपने छोटे भाई भूधर के साथ निवाई ग्राम की यात्रा पर जा रहे थे । जब निवाई ग्राम के नजदीक पहुंचे तो क्या देखते हैं कि इस गांव के ठाकुर साहब के एक मृत बालक को लिए कुछ व्यक्ति शमशान भूमि की ओर जा रहे हैं । इस ठाकुर के केवल यही एक लड़का था । लड़के के वियोग में सारा गांव शोक में डुबा हुआ था, ऐसी दुखित घटना को देखकर स्वामी जी के छोटे भाई भूधर से कहा कि हे भाई तुम ठाकुर साहिब से कहो कि वह इस बालक को जलावें नहीं और इस लड़के को एक बार मुझे देखने की अनुमति प्रदान करे । ठाकुर साहिब ने बालक को देखने की आज्ञा दे दी और गुसांई बाबा ने बात की । बात के कुछ ही क्षणों में ईश्वर भक्ति और अपनी साधना शक्ति के प्रताप से उस मरे हुए बालक को पुन: सर जीवतकर के ठाकुर साहब के अधीन कर दिया ।
परन्तु मृत्य बालक को जीवित देखकर गाँव के कुछ व्यक्तियों ने स्वामी जी पर भूत विद्या अर्थात ताँत्रिक होने का आरोप लगाकर जयपुर के बन्दीगृह में कैद करवा दिया परन्तु ‘जिसको रोख साईयां, मार सके न कोई ।।’ वाली कहावत सच हो गई । अत: उस परबृह्म परमेश्वर की असमी कृपा से तीन बार बन्दीगृह में स्वामी जी को बन्द किया गया और तीनों ही बार अपने आप ताले टूट कर जमीन पर गिर पड़े । इस अद्भूत भक्ति चमत्कार को देखकर जयपुर नरेश ने (सम्वत् 1725 में) संत पीताम्बर गौसांई बाबा की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर फागी में ढाई बीघा जमीन रैगरों को इनायत कर दी ओर इस जमीन पर आज ग्राम फागी में ‘संत पीताम्बर दास समाधि स्थल है । अत: इसी धार्मिक ऐतिहासिक स्थान पर बनी हुई गुसांई बाब की समाधि, कुआँ तथा रैगर धर्मशाला आदि स्मृतियां प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में आज भी वहां पर मौजूद है ।
समाधि :- गसांई बाबा, सन्त पिताम्बर दास जी महाराज ने विक्रम सम्वत् 1775 (सन् 1698) तदनुसार भादवा शुदि 15 पूर्णमाशी को ग्राम फागी (जयपुर) में जीवत समाधि लेकर अन्तरध्यान हो गये । उनकी समाधी स्थल पर फागी के रैगरों ने एक धर्मशाला का निर्माण करवाया और कुऑ खुदवाया है । गौसांई बाबा संत पीताम्बर महाराज की समाधी आज रैगरों का तीर्थ स्थल बन गया है जहाँ प्रतिवर्ष हजारों रैगर दर्शनार्थ जाते हैं । सामाधी पर श्रद्धा से फूल चढाते हैं और मन्नत मांगते है । उनके नाम पर भक्तों ने दिल्ली में ‘गौसांई साहित्य स्मारक निधि’ की स्थापना की है । यह संस्थान महाराज के संदेशों को प्रचारिता-प्रसारित करने में लगा हुआ है । दिल्ली निवासी श्री जीवनराम गौसांई एवं अन्य भक्त पीताम्बर महाराज के विचारों और उपदेशों को सुगम साहित्य के माध्यम से आम लोगों तक पहुँचाने में क्रियाशील हैं ।
मार्ग संकेत :- समाधि पर पहुचने के लिए जयपुर से रेल तथा बस आदि दोनों मार्गों से जा सकते हैं । रैगर समाज का यह प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक ग्राम फागी (जयपुर) में डिग्गी-मालपुरा मार्ग पर स्थित है ।
(साभार – पुस्तक : रैगर समाज के पूर्व पूरूष)
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