गुरु का जीवन में महत्व

प्रस्तावना: गुरु-शिष्य परंपरा सदियों से हमारे देश में चली आ रही है। गुरु शिष्य परम्परा के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रुप में दूसरों को शिक्षा देता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। अब हम गुरु शब्द का अर्थ जानेंगे।

‘गु’ शब्द का अर्थ होता है अंधकार( अज्ञान) और  ‘रू’ शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान, इस प्रकार अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रहा रूप प्रकाश है, वह गुरु होता है। और गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है यह सर्वविदित है।

गुरु का हमारे जीवन में महत्व 

गुरु के महत्व के बारे में संत श्री तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है

” गुरु बिन भवनिधि तरही न कोई;
जो बिरंचि संकर सम होई “

अर्थात

भले ही कोई ब्रह्मा, विष्णु, महेश, के समान क्यों ना हो पर वह गुरु के बिना भवसागर पार नहीं कर सकता है जब से धरती बनी है तब से ही गुरु का महत्व इस धरती पर है। वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, गीता, गुरु ग्रंथ, आदि में महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है गुरु शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है। संक्षेप में कहे तो शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार है। जो हमेशा से ही बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव रहित व्यवहार से बच्चों को सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है। समाज में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है क्योंकि उन्हीं बच्चों से समाज का निर्माण होता है। और शिक्षक उन्हें समाज में एक अच्छा इंसान बनाने की जिम्मेदारी लेता है माता-पिता के बाद शिक्षक ही होता है जो बच्चों को एक सही रूप में ढालने की नींव रखता है।

शिक्षक दिवस मनाने का दिन: शिक्षक दिवस देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर 5 सितंबर 1962, से शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिन सभी स्कूल संस्थानों में बच्चे और युवा किसी उत्सव के रूप में शिक्षक दिवस मनाते है। आज के दिन बच्चे शिक्षक का रूप धारण करके शिक्षक की भूमिका अदा करते हैं।

‘एक शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर होता है ‘ऐसा माना जाता है एक बार सर्वपल्ली राधा कृष्णन के कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनका जन्म दिवस मनाने की इकक्षा ज़ाहिर कि इसके जवाब में डॉक्टर राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से बनाने की बजाय इसे टीचर्स डे के रूप में मनाया जाए तो मुझे बहुत गर्व होगा। इसके बाद से ही पूरे भारत में 5 सितंबर का दिन टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है इस दिन इस महान शिक्षाविद को हम सब याद करते हैं और सभी शिक्षकों का सम्मान पूर्वक धन्यवाद अदा करते हैं जो हमें सदैव हमारे अच्छे बुरे कार्यों की समझ देता है ऐसे शिक्षक को शत-शत नमन है।

शिक्षक दिवस की महत्ता

(1) शिक्षक दिवस विद्यालय के विद्यार्थियों को शिक्षक के प्रति एक सम्मानित भाव पैदा कराता है क्योंकि शिक्षक विद्यार्थी के चरित्र का निर्माण करते हुए उन्हें एक आदर्श नागरिक के आकार में डालने की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

(2) शिक्षक छात्रों को अपनी स्वयं के बच्चों की तरह बड़े ही सावधानी प्यार और गंभीरता से शिक्षित करते हैं जिससे छात्रों में अपनत्व की भावना जागृत होती है।

(3) बच्चे समाज का भविष्य होते है।  और शिक्षक उन्हें निखारने में मदद करते हैं .बिना शिक्षक के कोई भी छात्र अकाउंटेंट ,डॉक्टर, पायलट ,इंजीनियर, वकील, या किसी भी क्षेत्र में नहीं जा सकता है शिक्षक छात्र का भविष्य निर्माणकर्ता होता है।

(4) सभी बच्चों के माता-पिता बच्चों की उसकी जरूरतों को पूरा करने में सहायता करते हैं। परंतु शिक्षक उनके अंदर आत्मविश्वास बढ़ाने में और उनका भविष्य निखारने का कार्य करता है बिना गुरु ज्ञान नहीं है यह कहावत ही नहीं एक सच्चाई भी है।

शिक्षक दिवस कहां-कहां मनाया जाता है?

सभी देशों में शिक्षक दिवस का दिन अलग-अलग है। दुनिया के ऐसे 21 देश है जो शिक्षक दिवस बड़ी धूमधाम से मनाते हैं जिनमें कुछ के नाम इस प्रकार है जैसे बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया, चाइना, जर्मनी, ग्रीस, मलेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका , UK , उ.एस .ए, ईरान, इन देशो के अपने-अपने दिन शिक्षक दिवस मनाने के लिए निर्धार्रित किये गये है। परंतु 5 अक्टूबर को ‘वर्ल्ड टीचर्स टीचर्स डे’ के रूप में मनाया जाता है इसके अलावा 28 फरवरी को दुनिया के 11 देश टीचर्स डे मनाते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते है, कि शिक्षक चाहे किसी भी देश जाति या धर्म का हो जब वो किसी को शिक्षा देते है तो वो किसी भी छात्र के साथ कोई भेदभाव नहीं करते अर्थात गुरु किसी भी रुप में हो गुरु, गुरु ही होता है चाहे वह किसी भी देश का हो।

उपसंहार
इस प्रकार शिक्षक दिवस हमारे देश के अलावा पूरी दुनिया में बहुत महत्व रखता है। और यह परंपरा हजारों साल, गुरु शिष्य के रूप में चली आ रही है और ए यूही फलती-फूलती और आगे बढ़ती रहें। और हर छात्र अपने शिक्षक को इस प्रकार मान सम्मान देता रहे,

गुरुब्रह्ममा गुरुविष्णुः गुरु देवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परम ब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः ”

हर छात्र के लिए गुरु उसके लिए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश की तरह रहे और ऐसे गुरु को वो सर्वदा नमन करते रहे। संक्षेप मे कहे तो शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार जो हमेशा से ही बिना किसी स्वार्थ और भेदभाव रहित व्यवहार से बच्चों को सही गलत और अच्छे बुरे का ज्ञान कराता है समाज में शिक्षक की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है। गुरु हमारे दुर्गुणों को हटाता है। गुरु के बिना हमारा जीवन अंधकारमय होता है। अँधेरे में जैसे हम कोई चीज टटोलते हैं,नहीं मिलती है वैसे गुरु के बिना टटोलने वाली जिन्दगी बन जाती है जहाँ कुछ भी मिलने वाला नहीं है। जिस व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं मिला उसके जीवन में दुःख ही दुःख रहा। वह एक सहजयुक्त जीवन नहीं जी सका। गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। हमें जीवन जीने का सहीं रास्ता बताता है जिस रास्ते पर चलकर जीवन को संवारा जा सकता है। एक नई ऊँचाई को छुआ जा सकता है इसलिये गुरू हमारे लिये किसी मूल्यवान वस्तु से कम नहीं। माता पिता तो हर किसी को होते हैं लेकिन गुरू का होना जीवन का मार्ग बदलने की तरह होता है।  गुरु इस संसार का सबसे शक्तिशाली अंग होता है। कोई चीज सीखने के लिये बिना गुरू का अध्ययन नहीं किया जा सकता है। अलग-अलग चीजें सीखने के लिये अलग-अलग गुण के गुरूओं की जरूरत होती है। सिलाई सीखने के लिये सिलाई गुरू का होना जरूरी है। ड्राईवर बनने के लिये ड्राईवर गुरू की जरूरत होती है। डॉक्टर बनने के लिये डॉक्टर गुरू के पास जाना ही पड़ेगा तभी हम इन कला पर विजय प्राप्त कर सकते हैं अन्यथा जिन्दगी भर हाथ पाँव चलाते रहिये बिना गुरू के किसी कला को नहीं सीखा जा सकता है। गुरू मिलने मात्र से नहीं होता है। गुरू के प्रति हृदय से श्रध्दा होनी चाहिये जब हृदय से श्रध्दा होगी तो आप उस कार्य की समस्त बारीकियाँ सीख सकते हैं | गुरू पूर्णरूपेण आपको पारंगत कर देगा। गुरु बहुत ही सीधा सादा होता है। गुरु भले ही लंगड़ा लूला या गरीब है लेकिन गुरु गुरु होता है। वह अपने शिष्य के प्रति कपट व्यवहार नहीं करता है। वह अपने शिष्य को पारंगत कर देना चाहता है। अपने शिष्य को बढ़ते हुये देखना चाहता है। अपने शिष्य का काँट छाँट करता है। उसके प्रत्येक कमी को निकालता है। उसे ठोंक ठोंककर कुम्हार के घड़े की तरह सुंदर बनाता है। अपने शिष्य को संपूर्ण बनाने में समस्त ज्ञान उसके सामने उड़ेल देता है। यही तो सच्चे गुरू का गुणधर्म होता है। कपटी गुरू का गुण किसी काम का नहीं होता है। वह पूरा ज्ञान अपने शिष्य को नहीं देता है। वह ज्ञान न उसके लिये ही लाभदायक होता है न दूसरे के ही जीवन को संवार सकता है। गुरू चुनते समय हमें सच्चे गुरू की तलाश करनी चाहिये। कपटी गुरू से हम सच्चे हुनर को नहीं प्राप्त कर सकते हैं। गुरु को भी कपटी नहीं होना चाहिये यदि शिष्य पूरी तरह से समर्पित रहता है तो उसे सहज होकर जो विद्या ज्ञान लेना चाहता है। उसे देने में पूर्ण तल्लीन हो जाना चाहिये तभी गुरू शिष्य की परंपरा को जिन्दा रखता जा सकता है। गूरू शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस शुध्द परंपरा का पालन करने वाला ही सच्चा गुरू व शिष्य कहलायेगा, तभी जीवन सार्थक हो सकता है, तभी जीवन एक गौरवशाली बन सकता है। गूरू को अपनी मर्यादा पालन करते रहना चाहिये और शिष्य गुरू के प्रति समर्पित होकर शिक्षा लेता है तो वह एक महान लक्ष्य को हासिल कर लेता है। कोई बाधायें उन्हें नहीं रोक सकती है।