पवित्र गंगा रैगरों की इष्ट है । गंगा में इनकी प्रगाढ़ आस्था है । इस जाति के अनेकों लोग पुण्य तीर्थ हरिद्वार में प्रतिदिन दान, पुण्य, स्नान, तीर्थ, व्रत तथा अपने परिजनों की अस्थियाँ विसर्जित करने के लिए भारत के कोने-कोने से आते रहते हैं । लाखों लोगों के आने जाने का क्रम बना रहता है । समाज के साधु संतों तथा जिम्मेदार लोगों ने यह सहसूस किया कि बड़ी तादाद में समाज के लोग प्रतिदिन हरिद्वार आते हैं मगर ठहरने की समुचित व्यवस्था नहीं है । रैगर यात्रियों को ठहरने की भारी परेशानी होती है । हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थान पर ठहरने की व्यवस्था बहुत महंगी है और एक गरीब रैगर के लिए इतना खर्च उठा पाना भारी समस्या है । रैगर जाति के लोगों के दिमाग में यह विचार आया कि इस कठिनाई का एक ही समाधान है कि अन्य जातियों और समाजों की तरह रैगर जाति की भी एक धर्मशाला हो जिसमें गरीब से गरीब रैगर भी ठहर कर सुविधा का उपभोग कर सके । मगर यह काम इतना बड़ा था कि किसी एक रैगर द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता था । अधिक से अधिक लोगों के सहयोग से ही पूरा हो सकता था । इसके साथ ही इस काम को जब तक समाज के साधु महात्मा हाथ में नहीं लेते तब तक पूरा नहीं हो सकता था । इसलिए स्वर्गीय ज्ञानस्वरूपजी महाराज तथा स्वामी केवलानन्दजी से आशीर्वाद लकर स्वामी गोपालरामजी महाराज तथा स्वामी रामानन्दजी महाराज ने यह काम आपने हाथों में लिया । इन्होंने समाज के सम्पन्न लोंगो, समाज के राजनेताओं, समाज के उन लोगों का जो ऊंचे पदों पर बैठे हैं तथा कानून के जानकार लोगों का पूरा सहयोग लिया । समाज के सभी लोगों के दान और सहयोग से ही यह काम पूरा हो सकता था । इस काम में ठक्कर बापा कॉलोनी मुम्बई ने पहले चन्दा दिया । दानदाताओं की उदारता से अल्पकाल में ही डेढ़ लाख रूपये इकट्ठे हो गये । काम को देखते हुए यह राशि बहुत कम थी । इसलिए 1981 में हरिद्वार में एक भूखण्ड 4020 वर्ग फुट का खरीदा जा सका । रैगर धर्मशाला ट्रस्ट का निर्माण किया गया । ट्रस्ट ने विचार किया कि अच्छे मौके पर बना बनाया भवन किल जाय तो निर्माण सम्बंधी सभी कठिनाइयों से मुक्ति पाई जा सकती है तथा रैगर बंधुओं को आवास की सुविधा भी शीघ्र मिल सकती है । लोगों की दूरदर्शिता से हरिद्वार में अच्छे मौके पर एक बना बनाया भव्य भवन खरीद लिया गया । समाज की यह लाखों की सम्पत्ति है । इस भवन में 22 कमरे, स्नान घर, शौचालय आदि सुविधाएँ उपलब्ध है । इस भवन में नूतन उपकरण, रंग रोगान, पंखे आदि लगाकर सुसज्जित किया जाकर अधिक आकर्षक बनाया गया है । दानदाताओं में व्यक्तिगत रूप से सबसे अधिक धन सेठ श्री रामरखजी धोलखेड़िया निवासी बीकानेर ने दिया । इसलिए इस धर्मशाला का उद्घाटन रविवार 19 जून, 1983 को सेठ श्री रामरखजी धोलखेड़िया द्वारा करवाया गया । यह धर्मशाला रैगर जाति का गौरव है । इस काम को सफल बनाने में श्री लालारामजी कुरड़िया-मुम्बई, श्री चिरंजीलाल बाकोलिया, श्री कल्याणदासजी पीपलीवाल, श्री किशनलालजी कुरड़िया-दिल्ली ने विशेष भूमिका निभाई है । सभी दानदाताओं के सहयोग से ही यह कार्य पूर्ण हुआ है । इसलिए इस काम में परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जिस किसी का भी सहयोग रहा है वे निश्चित रूप से धन्यवाद के पात्र हैं । आने वाली पीढ़ियाँ समाज की इस महती धरोहर को निहारती रहेगी और सराहना करती रहेगी ।
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(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति’)
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