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एक बार फिर वह मौसम आ गया है। मैं बात सर्दी के मौसम की नही, चुनावी मौसम की कर रहा हूँ । राजस्थान सरकार भी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी नीतियॉ जनता के लिए बना रही है । बेरोजगारो को नोकरी दी जा रही है, नोकरी वाले को पदोन्नती, सरकार कि लाखों नोकरीयॉ अदालतों, लालफिताशाही...
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श्रद्धासमन्वितैर्दत्तं पितृभ्यो नामगोत्रतः ।यदाहारास्तु ते जातास्तदाहारत्वमेति तत् । । ‘श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर उन्हें मिलता है’ । जब हम इस इतिहास के माध्‍यम से हमारे बुजुर्गों को याद कर रहे हैं, और उन्‍हें अपनी सच्‍ची...
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मनुष्य में अपने पूर्वजों का इतिहास जानने की जिज्ञासा हमेशा रही है । हजारो वर्षों से अपमानित, शोषित एंव उपेक्षित दलित वर्ग की अछूत जातियां अपने वजूद को जलाशती हुई अपनी जाति की उत्पति, मूल स्थान, गौत्र, वशं, साम्राज्य, व्यवसाय, महापुरूषों आदि की खोज में लगी हुई । इसें लिए प्राचीन धार्मिक ग्रन्‍थों, इतिहास, भाषा...
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आज हम एक ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु पर चर्चा करने जा रहे है, जिसका संस्था की सफलता और असफलता मे महत्वपूर्ण योगदान होता है, किसी भी संस्था का संचालन उसके पदाधिकारियों द्वारा किया जाता है, उनके द्वारा किये जाने वाले कार्य ही, संस्था की सफलता और असफलता को तय करते है, और साथ ही संस्था की...
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आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करने जा रहे है, जिस पर हमे गम्भीर रूप से मंथन करने की आवश्यकता है, आज हमारे बीच मे अनेक सामाजिक व गैर राजनैतिक संस्थाऐ व संगठन कार्यरत है, जो आज अपने मूल उदेश्यों व कार्यों को पूर्ण करने मे कहा तक सफल हुए है तथा इनके पदाधिकारी...
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हमारा समाज गाँव-गाँव और गली-गली मन्दिरों के निर्माण में लाखों रूपये व्‍यर्थ गवां रहा है । इन मन्दिरों में असामाजिक तत्‍व जुआ खेलते हैं, ताश खेलते हैं, शराब पीते हैं तथा बिड़िया फूंकते रहते हैं । कुछ गिने-चुने लोग ही सुबह शाम हाजरी देने जाते हैं । इन मन्दिरों से समाज को क्‍या फायदा हुआ...
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गुरू रैदास प्रारम्भ से ही क्रांतिकारी विचारधारा के थे उन्होने ब्राह्यणों के चारों वेदों का खण्डन किया, उन्होने ब्राह्यण धर्म के सभी रीति-रिवाज़ो यज्ञ, श्राद्ध, मंदिरों मे पूजा पाठ, आदि हर ब्राह्यणी कर्मकाण्‍ड का तर्क के साथ खण्डन किया । उन्होने दलित समाज को चेताया कि केवल दलित समाज के लोग ही असल मे भारत...
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एक गरीब आदमी कड़ी मेहनत, मजदुरी कर के पाई-पाई जमा करता है ताकि उसके बाल बच्चों का लालन-पालन अच्छे से अच्छा हो । ऐसी सोच हर मां-बाप की होती है । लेकिन कई बार हालात ऐसे खेडे़ हो जाते है कि करें भी तो क्या करें ? वह समाज की रिति-रिवाजों के समाने बेबस है...
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 1. वर्तमान समाज व्‍यवस्‍था गरीबों के शोषण की व्‍यवस्‍था :- वर्तमान समाज-व्‍यवस्‍था का ताना-बाना बनाने वाले सुविधाभोगी वर्ग ने इस तरह बनाया है जिसमें श्रमजीवी कर्मजीवी, मेहनतकश गरीब जन्‍म से मरण तक धार्मिक-कर्मकाण्‍डों, सामाजिक रिस्‍मों-रिवाज़ों, जन्‍म-परण-मरण के संस्‍कारों में अंधा होकर धर्म, पुण्‍य प्रतिष्‍ठा के झूंठे भुलावों में घाणी के बल की भांति चक्‍कर काटता रहे...
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आज सामाजिक संस्थाओं के चुनाव की बात करे, तो हमे सर्वप्रथम इस बिन्दु पर विचार करना होगा कि, हमारे सामाजिक नेतृत्व का चुनाव कैसे किया जाना चाहिये, चुनाव कि बात करे तो इसमे इस बात की अहम् भूमिका है, कि सामाजिक संस्थाऐ समाज कि सेवाओं के लिए बनी है यह कोई राजनैतिक मंच नही है।...
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