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नरवर काण्ड

नरवर काण्‍ड (किशनगढ़)

अखिल भारतीय रैगर महासभा ने समय-समय पर जहाँ भी रैगर बंधुओं पर मुसीबतें आई उनकों अविलम्‍ब सहायता पहुंचाने का भरसक प्रयत्‍न किया गय । जयपुर महासम्‍मेलन के पश्‍चात् सुधारवादी कार्यों की लहर एक गाँव से दूसरे गाँव को दौड़ रही थी । स्‍वर्ण हिन्‍दू नहीं चाहते थे कि रैगर तथा कथित हरिजन कुत्सित कार्यों को छोड़ उन्‍हीं के समान जीवन व्‍यापन कर सके । नरवर में भी स्‍वर्णों की तरफ से नाना प्रकार की यातनाए दी जा रही थी । यहाँ तक कि रैगर बंधुओं पर सामूहिक आक्रमण भी हुए जिसे बहुतों सांघातिक चोटें भी पहुँची । रैगर जाति के पशुधान, चल एंव अचल सम्‍पत्ति को भी विनष्‍ट करना प्रारम्‍भ कर दिया था । इन परिस्थितियों की सूचना स्‍थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा महासभा को दी गई । महासभा ने सूचना पाते ही 29-11-1949 को एक शिष्‍टमण्‍डल घटना स्‍थल पर इस विकट स्थिति को सुलझाने के लिए रवाना किया जिसमें सर्व श्री सर्यमल मौर्य, पं. घीसूलाल, श्री छोगालाल कँवरिया, श्री नारायण जी आलोरिया, श्री बिहारी लाल जागृत, श्री सोहनलाल सवांसिया घटनास्‍थल पर पहुँचे, वस्‍तु स्थिति से अवगत हुए । पुलिस अधिकारियों की सहायता से वहां के रैगरों को बंधन मुक्‍त कराया क्‍योंकि स्‍वर्णों ने रैगरों की बस्‍ती पर घेरा डाल दिया था । इस प्रकार दोनों दलों में समझौता करा दिया एवं रैगर अपने सुधार वादी पथ पर अग्रसर होते रहे ।

(साभार – रैगर कौन और क्‍या ?)

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