स्वामी ज्ञान स्वरूपजी महाराज की एक घटना जो मैंने अपनी आँखों से देखा और कानों से सुना, मुझे आज भी याद है । हुआ यों कि एक दिन मेरा मुम्बई जाना हुआ । वहाँ मैं एक भाई को मिलने गया, उसी घर में स्वामी जी के दर्शन हो गये । उन्हें प्रणाम कर वहीं उनके पास बैठ गया । थोडी देर बाद में कॉलोनी से एक स्वामी जी को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करने आया । स्वामी जी ने उसे बेठने का इशारा किया । प्रथम गृह स्वामी से बात समाप्त कर स्वामी जी ने आगन्तुक भक्त से उसका परिचय जाना । स्वामी जी ने उससे प्रशन किया – ”क्या तुम्हारे घर में शराब और मांस का उपयोग होता है ?” उसने कहा -”हॉ स्वामी जी !” इस पर स्वामी जी ने तुरन्त ही कहा – ” भले आदमी ! जिस घर में शराब और मांस का उपयोग होता हो, उस घर में संत केसे भोजन लेंगे ?” आगन्तुक बहुत शर्मिन्दा होते हुए विनम्र शब्दों में कहा – ”स्वामी जी ! आज तक जो भूल हो गई, उसके लिए क्षमा चाहता हूँ । परन्तु आज से ही मैं इन वस्तुओं का त्याग करने की प्रतिज्ञा लेता हूँ ।” स्वामी जी ने उसे बताया कि – ”चार दिन तक प्रसाद की व्यवस्था हो चुकी है अत: तुम चार दिन बाद मिलना ।” आगन्तुक – जो आज्ञा स्वामी जी ! कह कर चला गया । स्वामी जी ने एक भक्त, जो वहीं बैठा था, इस बात की निगरानी रखने का इशारा कर दिया कि – ”देखना भाई ! उस आगन्तुक के घर में इन वस्तुओं के त्याग की रिपोर्ट मिलने के बाद ही स्वामी जी ने उसके घर भोजन ग्रहण करने की स्वीकृती दी ।
कहने का तात्पर्य यह है कि संत-महात्मा, समाज को जिस दिशा में राह बतायेंगे समाज उसी दिशा में चलेगा । स्वामी जी के दो शब्दों से उसने सही राह पकड़ली ।
स्वामी जी के इस छोटे से दृष्टांत से मुझे एक प्रेरणा मिली कि भटके हुए लोगों को केसे सही राह दिखाई जाए । उसका एक वचन ओर पढ़ा –
धर्म विचारो सज्जनों, बनो धर्म के दास ।
सच्चे मन से सभी जन, त्योगो मदिरा मास ।।
स्वामी जी के इस उपदेश पर मैंने व्यसन-मुक्ति के चित्र बनवाये, जो इस प्रदर्शनी के आधार स्तंभ है । स्वामी जी के वचनों की प्रेरणा और चित्रों के दिग्दर्शनों से अनेक लोग व्यसनों से मुक्त होकर लाभान्वित हुए है तथा हो रहे हैं ।
एक दूसरा उदाहरण भिनाय में एक सत्संग के दोरान देखने को मिला । एक कबीर पंथी संत ने भक्तों को बीड़ी-सिगरेट पीना बन्द करने की प्रार्थना की और कहा कि मैं तो भजन तभी सुनाउंगा जब आप लोग बीड़ी-सिगरेट पीना बन्द कर देंगे । इसका प्रभाव यह हुआ कि – सत्संग के पंडाल में आधे लोगों ने बीड़ी-सिगरेट पीना बन्द कर दिया और आधे लोगों में से बीड़ी-सिगरेट का धुआ उड़ता दिखाई दे रहा था ।
तब उन्होने व्यसन-मुक्ति की प्रदर्शनी जो उसी पंडाल में एक तरफ पर्दे पर लगी हुई थी उस तरु इशारा करते हुए कहा कि -”देखो ! इस भार्इ ने कितनी मेहनत करके, ज्ञान के उपदेशों को चित्रों में उतारा है । देखो और समझो ! शायद आपके गुरू ने इतना छोटा सा ज्ञान, व्यसन-मुक्ति का आपकों नहीं दिया है, इसलिए आप लोग भजन-स्थल पर धुंआ निकाल रहे हैं । संत के इतना कहते-कहते सभी लोगों ने बीड़ी-सिगरेट बन्द कर दी । सन्त ने अपना भजन खुशी-खुशी सुनाया ! इसे कहते है ज्ञान देना एवं ज्ञान का पालन कराना । सबका भला हो ! यही संत वचन है ! ।
भव्वतु सव्व मंगल !!!
लेखक : आसूलाल कुर्ड़िया – ब्यावर, राजस्थान