हमारी उम्मीदेँ खतम हो जाती जहाँ से ।
रिश्तों में दूरिया बढ़ जाती वहाँ से ।
रैगर समाज एकता के लिए, हमें एक मंच पर आना होगा ।
किसी को भी नहीं कह सकते, हमेशा के लिए अलविदा ।
सामाजिकता की यह नहीं संविदा ।
रैगर बंधु ! कुछ ऐसा कर जाए ।
समाज शिक्षित, संगठित बन जाए ।
मुलाकात के समय हाथ मिलाओ ।
लौटते वक्त अपना हाथ हिलाओ ।
पहली बार अपनों से जुड़ने के लिए ।
दुबारा कभी ना बिछड़ने के लिए ।
आओ पल-भर सबको अपना संग दो ।
कोई ना रहे पराया, मन रैगर रंग दो ।
लेखक
हरीश सुवासिया
एम. ए. [हिंदी] बी. एड. (दलित लेखक,संपादक)
देवली कला जिला- पाली मो॰ 0978440310