राजस्थान में अछूतों की स्थिति – राजस्थान राज्य के समाज में विभिन्न वर्गों और जातियों के लोग निवास करते थे। अन्य प्रान्तों की अपेक्षा राजस्थान में छुआछूत की प्रथा अधिक थी। राजस्थान को पूर्व में राजपूताना कहा जाता था। राजस्थान राज्यों की रियासतों के शासक निन्म वर्ग के लोगों के साथ भेदभावपूर्म व्यवहार करते थे। शूद्र जाति के लोगों का गाँव में सभी स्थानों पर घूमने-फिरने और बैठने की स्वतंत्रता नहीं थी। रात्रि के समय शूद्र जाति के लोग घूम-फिर नहीं सकते थे तथा जब भी ये लोग आते थे, तब अपने साथ ढोल बजाते हुए चलते थे, ताकि उच्च वर्ग के लोग सावधान होकर उनसे दूर रहने की व्यवस्था कर सकें। वे इनकी छायो को भी अशुभ मानते थे। इस प्रकार शूद्र वर्ग या निम्न वर्ग के लोगों की दशा बहुत दयनीय थी। वे न तो मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर आ-जा सकते थे। इस वर्ग के लोग कुंठित जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके बेगार ली जाती थी और उसके बदले में प्राप्त राशि से उन्हें अपना जीवन यापन करना पड़ता था।
राजस्थान में छुआछूत उन्मूलन हेतु प्रयास – राजस्थान में बहुसंख्यक निम्नवर्ग के लोग निवास कर रहे हैं। लोग छुआछूत की भावना के कारण कुंठित जीवन जी रहे हैं। राजस्थान की सरकार ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति को समाज में समानता का दर्जा दिलवाने के लिए अनेक उल्लेखनीय प्रयास किये। सरकार ने ऐसे नियमों का निर्माण किया है, जनसे भेद-भाव समूल रुप से नष्ट हो सके और पिछड़ी जातियों को समानता का अधिकार प्राप्त हो सके। इसके परिणामस्वरुप आज निम्न जाति के लोग जैसे हरिजन, चमार, रैगर, बलाई एवं कोली आदि को काफी लाभ प्राप्त हुआ है। इस वर्ग के लोग स्वतंत्र जीवन जी रहे हैं और राजकीय सेवाओं में उच्च पद पर कार्यरत हैं। राजस्थान सरकार ने अछूतोद्धार आन्दोलन का खुलकर समर्थन किया है। साथ ही निम्न जातियों के लोगों में भी सामाजिक चेतना का विकास हुआ। जिसके कारण इस जाति के लोगों ने अन्य वर्गों से अपने अधिकारों की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना प्रारम्भ कर दिया। छुआछूत निष्कासन में निम्न बिन्दुओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
(१) सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता दी गयी। अनुसूचित जाति तथा जनजाति के छात्र-छात्राओं को शिक्षण शुल्क में छूट दी गयी। यही नहीं उनके लिए कपड़ा, भोजन एवं पाठ्य पुस्तकें नि:शुल्क प्रदान की जाने लगी। गरीब छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जाती थी, ताकि वे शिक्षा प्राप्त कर अपनी योग्यानुसार नौकरियाँ प्राप्त करने में सफल हो सकें।
(२) नि:शुल्क आवासीय सुविधाएँ प्रदान की गयीं।
(३) अनुसूचित जाति एवं जनजाति को शोषण से मुक्त करवाना और राजनीतिक सत्ता में भागीदारी देना जरुरी था ताकि उन्हें भी उच्च वर्ग के समान अधिकार प्राप्त हो सके। इसके लिए सरकार ने –
(i) मनुष्य के बेगार, बंधक मजदूरी प्रथा एवं खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध लगा दिया।
(ii) इन जातियों के लिए लोक सभा एवं विधान सबा में स्थान आरक्षित किए गए।
(iii) प्रशासनिक सेवाओं में अनु.जा. एवं अनु.जजा. के लिए कोटा सुरक्षित रखा गया, ताकि अपने समूह के व्यापक हितों की रक्षा में स्वयं इन वर्गों के सदस्य प्रशासक बनकर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।
(iv) आर्थिक तथा भूमि सुधार के अन्तर्गत अनु.जा. एवं अनु.जजा. के लोगों के खेतों को किसी को हस्तान्तरित करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके अतिरिक्त उनकी जमीन की बिक्री, उपहार एवं वसीयत के द्वारा किसी गैर जनजाति व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं की जा सकती थी।
(v) अनु.जा. एवं अनु.जजा. की कृषि योग्य भूमि पर यदि कोई व्यक्ति अतिक्रमण करता है तो, मामूली सुनवाई के बाद ही अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति के तुरन्त बेदखल किया जा सकता है।
(४) राजस्थान भू-लगान कानून १९५६ के अनुसार यह प्रावधान किया गया है कि निम्न जाति के लोगों के आवास हेतु उन्हें मुफ्त भूमि उपलब्ध कराई जाएगी।
(५) राजस्थान भू-लगान (कृषि भूमि आबंटन) कानून में यह प्रावधान किया गया है कि, निम्न वर्ग के जिन लोगों के पास कृषि योग्य भूमि नहीं है, उन्हें कृषि भूमि उपलब्ध कराई जायेगी।
(६) राजस्थान मण्डल इनके लिए मकान सुरक्षित रखता है। इनकी पदोन्नति के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई है।
निष्कर्ष – वस्तुत: वर्तमान में राजस्तान में छुआछूत की भावनाएँ प्राय: समाप्त हो रही है। छुआछूत को बढ़ावा देने वालों को कानून द्वारा कठोर दण्ड की व्यवस्था दी गई है। परिणामस्वरुप आज समाज में सभी वर्गों को समान रुप से जीवन यापन करने, रोजगार प्राप्त करने तथा अपने जीवन स्तर को विकसित रुप प्रदान करने में समानता, स्वतंत्रता के अवसर प्राप्त है। राजस्थान सरकार आज भी अछूत माने जाने वाली जातियों के लिए विकास समितियों का गठन कर उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलवाने के लिए अथक प्रयास कर रही है।
लेखक: राहुल तोन्गारिया