एक समह हुआ करता था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था एवं उसमें दुध दही की नदियां बहा करती थी, यह सत्य है लेकिन अंग्रेजों ने भारत के राजा-महाराजओं की आपसी फूट का नाजायज फायदा उठाकर कई बहुमुल्य हीरे-जवाहरात, सोना-चांदी एवं अमूल्य साहित्य कब्जें में लेकर अपने देशों में लेकर चले गये । अंग्रेजी हकुमत ने भारत एवं भारतवासियों पर तरह-तरह के जुल्म ढाने लगी । अत्याचार चरम सीमा पर थे । तब देशभक्तों ने भारत को आजाद करने का दृढ़ संकल्प लिया और उसको क्रियान्वित करने में लग गये । महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक तरिके से विदेशी हकुमत के खिलाफ पूरे राष्ट्र में स्वतंत्रता संग्राम का आन्दोलन प्रभावित रूप से चलाने का प्रयास किया । दूसरी ओर गर्म दल ने हिंसा-तोड़फोड़ का रास्ता अपना कर अंग्रेजों को यह जता दिया की आजादी हर किमत पर हम लेकर रहेंगे । देश का हर बच्चा-बच्चा आजादी का दिवाना हो चुका था । इस आन्दोलन मे कई स्वतंत्रता सैनानियों को कठोर यातनाएं दे बेरहमी से जेल में ठूस दिया गया तो कईयों की आखों में गरम-गरम सलाखें डालकर जिन्दगी भर के लिए अन्धा कर दिया गया । तो कईयों को गोलियों से छन्नी कर दिया गया । इस प्रकार कई देशभक्तों ने स्वतंत्रता बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति प्रदान की ।
जन चेतना के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने समाचार पत्रों, सूचना पत्रों, नारों, भाषणों का सहारा लेकर देश को आजादी के लिए प्रेरित कर आजादी नई लहर को देश के कोने-कोने तक पहुँचा दिया । देश की आजादी के इस पावन यज्ञ में हर जाति वर्ग तथा धर्म के लोगों ने अपना योगदान दिया ओर इस योगदान में हमारी रैगर जाति भी पीछे नहीं रही ओर रैगर समाज के सपूत आजादी के लिए सब कुछ न्यौछावर करने तो तैयार थे ओर वे भारत को आजाद कराने के लिए तन-मन-धन से स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े । रैगर जाति के जवानों के दिल में देश के प्रति प्रेम बहुत गहरा है और प्रथम स्वाधीनता संग्राम से लेकर भारत के आजाद होने की ऐतिहासिक तिथि 15 अगस्त 1947 तक लगभग नौ दशक के लम्बे जन-संघर्ष में वह कभी भी पीछे नहीं रहा, उसने मुड़कर नहीं देखा कि उसके बाद में परिवार का क्या होगा ?
इस पावन यज्ञ में रैगर समाज के योगदान की और दृष्टि डाले तों रैगर समाज के जिन सपूतों ने सक्रिय होकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया सर्व श्रद्धेय श्री नवल प्रभाकर (दिल्ली), श्रद्धेय श्री कंवर सैन मौर्य (दिल्ली), श्रद्धेय डॉ. खूबराम जाजोरिया (दिल्ली), श्रद्धेय श्री चौधरी पद्म सिंह (दिल्ली), श्रद्धेय श्री सूर्यमल मौर्य (ब्यावर : जिला – अजमेर), श्रद्धेय श्री जयचन्द जी मोहिल (छोटीसादड़ी : जिला – प्रतापगढ़), श्रद्धेय श्री भूरालाल भगत आलोरिया (सांगानेर : जिला – जयपुर), श्रद्धेय श्री मानूराम जी बढारिया (मोही : जिला – उदयपुर), श्रद्धेय श्री कंवरलाल जैलिया (कोटा), श्रद्धेय श्री हजारी लाल पंवार धौलपुरिया (ब्यावर : जिला-अजमेर), श्रद्धेय श्री परसराम जी बाकोलिया (राजस्थान), श्रद्धेय श्री प्रभुदयाल रातावाल (दिल्ली), श्रद्धेय श्री गौतमसिंह शक्करवाल (दिल्ली), श्रद्धेय श्री आशाराम सेवलिया (दिल्ली), श्रद्धेय श्री शंभुदयाल गाडेगांवलिया (दिल्ली), श्रद्धेय श्री खुशहालचन्द मोहनपुरिया (दिल्ली), श्रद्धेय श्री दयाराम जलथुरिया (दिल्ली) आदि का नाम मुख्य रूप से उल्लेखनिय है । राष्ट्रीय आन्दोलनों में अग्रणी रहते हुए इन्होंने पुलिस के डंडे खाए, गिरफ्तारियां दी तथा जेल जाकर कठोर यातनाएं सही । एवं साथ ही राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए श्रद्धेय श्री लालूराम जलुथरिया, श्रद्धेय श्री महादेव नुवाल, श्रद्धेय श्री भैरूबक्स उजींणिया, श्रद्धेय श्री रघुथाथ जलुथरिया, श्रद्धेय श्री धन्नालाल कराड़िया (चांद पोल जयपुर) तथा श्रद्धेय श्री चेतन जी जाटोलिया (बाड़मेर) आदि ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान अपनी गिरफ्तारियां देकर मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज निभाया । वे राष्ट्रीय आन्दोलनों की मिटिंग में भाग लेते थे । पुलिस इन्हें गिरफ्तार कर दूर जंगलों में छोड़ आती थी । इन्होंने स्वदेशी अपनाओं के आन्दोलनों में शराब की दुकानों पर धरने दिए तथा विदेशी वस्तुओं की होली जलाई ।
राष्ट्रीय आन्दोलनों में छ: माह से अधिक की जेल काटने वाले चार रैगर देश भक्तों को सरकार ने ताम्र पत्रित स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया । ताम्र पत्रित स्वतंत्रता सेनानियों में श्रद्धेय श्री सूर्यमल मौर्य, श्रद्धेय श्री हजारीलाल पंवार (धौलपुरिया), श्रद्धेय श्री जयचन्द मोहिल, श्रद्धेय श्री मानूराम बढ़ारिया के नाम है । जिन रैगर बंधुओं ने देश की आजादी से पहले 10 साल तक कांग्रेस में रहकर देश की सेवा की उन्हे सरकार ने स्वतंत्रता सैनानी घोषित किया है । इन स्वतंत्रता सैनानियों में श्री खूबराम जाजोरिया, श्री नवल प्रभाकर (भू.पू. सांसद), श्री बींजराज उजिरपुरया, श्री नारायणदास मौर्य, श्री बोदुलाल उन्दरीवाल, श्री किशनलाल दौलिया, श्री चांदमल मौर्य तथा श्री कंवरलाल जेलिया है ।
प्रमुख घटनाएं :-
सन् 1938 के मेवाड़ प्रजा मंडल के सत्यागृह में भाग लेने एवं पुलिस द्वारा एक पत्र को सेन्सर करने के फलस्वरूप श्री जयचन्द मोहिल को 6 माह का कठोर कारावास व अनेक यातनाएं भोगनी पड़ी । तो दूसरी ओर श्री मानूराम जी उर्फ मनरूप जी रैगर को इसी प्रजा मण्डल आन्दोलन में भाग लेने के फलस्वरूप 4 माह 15 दिन तक नजरबन्द रखा गया ।
सन् 1942 के भारत छाड़ो आन्दोलन में श्री सूर्यमल जी मौर्य को अंग्रेजों के विरूद्ध नारे लगाने पर गिरफ्तार कर छ: माह की सख्त सजा दी गई इसी प्रकार आपत्तिजनक भाषणों के अपराध को लेकर श्री हजारीलाल जी पंवार को गिरफ्तार कर छ: माह का कठोर कारावास सहन करना पड़ा तो श्री जयचन्द जी मोहिल को इसी भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने एवं मेवाड़ सीमा पर अंग्रेजों के विरूद्ध प्रचार कार्य करने के फलस्वरूप लम्बे समय तक उदयपुर सेन्ट्रल जेल मे नजर बन्द रखा गया एवं श्री कंवरलाल जेलिया ने वर्धा मे सह भारत छोड़ों आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया ।
एक समय की घटना है जब श्री जयचन्द मोहिल प्रजा मण्डल प्रचार कार्य करने एवं पत्रों द्वारा आन्दोलन से संबंधित गुप्त सूचना मेवाड़ प्रजा मण्डल के संस्थापक श्री माणिक्यलाल जी वर्मा को भेजने पर एक पत्र पुलिस ने सेन्सर कर लिया इसी पत्र के आधार पर पुलिस ने श्री जयचन्द मोहिल को गिरफ्तार कर पुलिस हिरासत में इंस्पेक्टर श्री नरेन्द्र सिंह ने मोहिल जी को काफी बेरहमी से पीटा वह घटना मोहिल जी के शब्दों में इस प्रकार है ”इस पुलिस इंसपेक्टर ने शराब पीकर मुझे खुब पीटा घोड़े की पायगा से ले जा ओधां लटका कर मिर्च मिली घोड़े की लीद की धुनी दी सौर में कुलो घुटनों कोहनियों एवं कमर पर काफी डंडे मारे । इतने पर भी नरपिशाच को रहम नहीं आया एवं नशे में धुत गुस्से में आकर इंस्पेक्टर ने राष भरे शब्दों में यह कहा कि ‘साला नीच जाति का होकर अंग्रेजी हकुमत से लोहा लेना चाहता है इसका फल पा’ और मेरी दोनों आंखों में गरम सलाखे दाग दी । मैं बेहोश हो गया, 4 दिन डाक्टरी उपचार के बाद जब मुझे होश आया तो पुलिस ने छोटी सादड़ी कोर्ट में मेरा चालान कर दिया कोर्ट ने 6 माह की सख्त कैद की सजा सुना दी दूसरे दिन पुलिस घेरे में मुझे उदयपुर गिराही जेल में भेज दिया वहां साकंल से बांध दिवाल के पास खड़ा रखा गया । मेवाड़ राज्य में गिराही जेल काफी खतरनाक समझे जाने वाले कैदियों के लिए होती थी ।”
एक समय की घटना है जब श्री सूर्यमल मौर्य ब्यावर के बाजार में अपनी जेब में तिरंगा झण्डा छुपाकर हाथ में लाठी लेकर चल पड़े । वहां इनके 12 दूसरे साथी भी मिल गए । इन्होंने बाजार में जाकर अफवाह फैलाई कि कॉलेज में हड़ताल हो गई है । यह अफवाह सुनकर बाजार में तैनात पुलिस कॉलेज की तरफ चली गई । मौका पाकर मौर्यजी और उनके साथियों ने जेबों से झण्डे निकालकर हाथों में ली हुई लाठियों पर लगाए और सारे बाजार में अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते हुए जुलूस निकाला । परिणाम यह हुआ कि मौर्य जी सहित 13 व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए । मजिस्ट्रेट ने 6 माह की सख्त कैद की सजा सुनाई । इन्हें अजमेर सेन्ट्रल जेल में रखा गया । जेल में चना और जौ मिलाकर कैदियों से पिसवाया जाता था । मौर्य जी एक महिने तक घट्टी पिसते रहे । फिर गांधीजी ने अंग्रेजों पर दबाव डालकर आदेश जारी करवाया कि कैदियों से घट्टी नहीं पिसवाई जायेगी और सूत कतवाया जायेगा । 20 तोला रूई रोजाना कातने के लिए दी जाती थी ।
स्वतंत्रता सेनानियों के अथक प्रयासों से आखिर का देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ । इस तरह राष्ट्रीय आन्दोलन में रैगर जाति की भी महत्ती भूमिका रही है । वे देश की आजादी में अपना त्याग और बलिदान करने में किसी से पीछे नहीं रहे हैं । इन सूरमाओं के त्याग का वास्तव में कोई मूल्य नहीं हो सकता और मूल्य आंकना भी हमारी नादानी होगी । देश भक्तों की एवं रैगर समाज की इन महानतम विभूतियों द्वारा किए गए इन बलिदानों पर समाज के प्रत्येक व्यक्तिय गौरवान्वित एवं श्रद्धावनत होना चाहिए । यहां केवल कुछ ही रैगर देशभक्तों के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये उत्सर्गों का वर्णन किया गया है समाज के ऐसे और भी व्यक्तियों ने इस प्रकार की कुर्बानी दी है । यह इन महानुभावों की कुर्बानीयों का ही परिणाम है कि आज आप और हम स्वतंत्र होकर स्वतंत्रता का जीवन बसर कर रहे हैं ।
कुर्बानियां रंग लाती है और कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है । यदि समाज के सुधार के लिए उसके उत्थान के लिए इसी प्रकार की कुर्बानी देने को अगर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग व आज का युवा वर्ग आगे आने को तैयार हो तो चन्द दिनों में समाज की तस्वीर बदल सकती है अगर रैगर बंधुओं की कुर्बानी से अंग्रेजी हकुमत बदल सकती है तो उसे समाज बदलने में देरी नहीं लगेगी । जरूरत है कदम से कदम मिलाकर एक जुटता के साथ सही रास्ते पर आगे बढने की । आज के समय की आवश्यकता है समाज सुधार की, उसमें फैली हुई कुरीतियों को दूर करने की एवं अच्छी शिक्षा प्राप्त कर प्रगति के के रास्ते पर चलने की । आर्इये आप और हम इन्ही आजादी के दिवानों की तरह समाज को बदलने का दृढ़ संकल्प लें और समाज सुधार में जुट जाए ।
लेखक : ब्रजेश हंजावलिया – मन्दसौर (म.प्र.)