(समाज उत्थान में बाधक कारण और निदान)
भारत वर्ष की महानता में समस्त जातियों वर्गों का महत्पूर्ण योगदान रहा है । हमारा रैगर समाज भी अन्य समाजों की तुलना में त्याग बलिदान, देश सेवा, में कभी पीछे नहीं रहा समय आने पर अपनी बहादूरी, दानशीलता व विद्वता का परिचय दिया है ।
जिस-जिस समाज ने महापुरूषों का अनुसरण किया है, उस समाज ने अनवरत विकास किया है, विकट परिस्थितियों में हमारे समाज के रैगर सपुतों ने समाज के लिये देश के लिये, अवस्मरणीय कार्य किये है क्या वजह है कि हमारा समाज इस मशीनी युग में, गरीबी बेकारी तथा कुरीतियों के अन्धें जाल में जकड़ता जा रहा है । आज भी हमारा समाज पानी का वो रेला है जिसे समाज के बुद्धिजीवी जिधर ले जाना चाहे ले जा सकते है तथा समाज की गरिमा बनाने हेतु समाज उत्थान को अग्रसर हो तो हमारा समाज अन्य समाजों से बीस होगा, उन्नीसी नहीं ! परन्तु हमारा बुद्धिजीवी वर्ग प्रतिष्ठित वर्ग दिशाहीन हो गया है उसका ध्यान स्वयं अपनी ओर है इसके अलावा किसी ओर ध्यान नहीं जा रहा है इस जेट युग में वह अपना कद बढ़ाने की होड़ में वो यह भी भूल गया है कि वह जहां से निकला है उस समाज के प्रति उसका भी कुछ दायित्व बनता है ।
रैगर महासभा द्वारा विजूति अलंकरण समारोह तथा रैगर महासम्मेलन वर्ष 1986 विज्ञान भवन में भारत के तत्कालिन राष्ट्रपति महा महिम ज्ञानीजेल सिंहजी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में समाज को सम्बोधित करते हुए उदाहरण दिया था वो मेरे मानस पटल पर आज भी ज्यों का त्यो अंकित है – ”भीड़ भरी रेल के डिब्बे में स्टेशन से नया यात्री जब डिब्बे में प्रवेश हेतु चड़ने की कोशिश करते है अन्दर बैठे यात्री उसके डिब्बे में घुसने में बाधक बनते है परन्तु येन के प्रकारेण डिब्बे में चड़कर जब अपनी जगह बना लेता है तो वह भी अन्य यात्रियों का अनुकरण कर नव आगन्तुक यात्री को डिब्बे में घुसने व स्थान बनाने में बाधक बन जाता है ऐसे यात्रियों को अपना पूर्व संघर्ष याद रखते हुए औरों को सहारा देकर स्थान देना चाहिये ।”
इसी तरह हमारे प्रतिष्ठित वर्ग उच्च पद पर आसीन वर्ग को समाज के लोगों को यथा: स्थान देना चाहिये । मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिये शिक्षा हेतु प्रेरित करना चाहिये ऐसे वर्ग से अपील है कि वे स्थान न दे तो कृपया उसकी टांग पकड़कर तो न खींचे, समय परिवर्तन शील है ।
आज साधन सम्पन्न वर्ग के लिए समाज के लिये समय नहीं है गरीब वर्ग, मध्यम वर्ग समाज हित में कुछ करना चाहता है करता भी है येन केन प्रकरेण उसे दबादिया जाता है और तो और समाज द्राही करार कर दिया जाकर समाज से प्रथक कर दिया जाता है हर क्षेत्र में ऐसे उदाहरण प्राय: मिल जावेंगे ।
शिक्षित वर्ग का ध्यानाकर्षण समाज उत्थान हेतु आवश्यक है जहां परिवार, समाज, देश हित की बात आती है सर्वप्रथम देश हित फिर, समाज हित इसके पश्चात् परिवार हित की बात सोचना चाहिए, परन्तु यह कोई नहीं सोचता । अरे हम से तो वे अनपढ़ अच्छे थे जब समाज की स्थिति दयनीय थी तब भी रैगर सपुतों ने अपनी विरता-कोशल-दानशीलता से राजा महाराजाओं के दिल जीतकर कई ऐतिहासिक मांगे राजा महाराजाश्री से अपने लिये नहीं वरन, अपने समाज के लिये मनवाई थी । सोयला निवासी रैगर सपुत नानक जी जाटोलिया की उदारता दान पुण्य व देश भक्ति स्वयं अपने में एक मिसाल है । जिन्होंने तत्कालीन जोधपुर महाराजा अजीत सिंह को देश से मुगलों के साम्राज्य समाप्त करने हेतु सौने की मोहरे व अस्सी हजार रूपये उस जमाने में देश की रक्षा हेतु दान देकर अपने लिये नहीं वरन समाज के लिये वर मांगे । जो अधिकार सिर्फ राजा महाराजाओं तथा ठाकुरों को ही प्राप्त थे, वे रैगर समाज को प्रदान करवाकर समाज की प्रतिष्ठा स्थापित की जो उनकी विद्वता का परिचालक है ।
वे इस प्रकार है-
1. रैगर जाति में औरतों को सोने-चाँदी के जेवर पहिनने की छूट दी जाय ।
2. रैगरों को विवाह में तुर्रा-किलंगी लगाने की छूट दी जाय ।
3. रैगर जाति में शक्कर का प्रयोग करने की छूट दी जाय ।
4. रैगर जाति में मरने पर बैकुण्ठी निकालने की छूट प्रमुख है ।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी रैगर समाज की अन्य समाजों से कम भूमिका नहीं रही मेवाड़-मालवा क्षेत्र के नगर छोटी-सादड़ी निवासी स्वर्गीय जयचन्द जी मोहिल जिन्होंने सम्पूर्ण मेवाड़ व मालवा के रैगर समाज का प्रतिनिधित्व स्वयं अकेले ने किया श्री सूरजमल जी मोर्य निवासी ब्यावर जिला अजमेर, श्री भूरालाल जी भगत जिला जयपुर तथा हैदराबाद सिंध (पाकिस्तान) निवासी श्री परसरामजी बकोलिया प्रमुख है । तथा कई ताम्रपत्र सैनानी स्वतंत्रता सैनानी इसी रैगर समाज में हुये है । ऐसे देश भक्त, दानी, त्यागी तथा समाज सुधारक जिस समाज में रहे हो उस जाति को शिक्षा के प्रसार हो जाने के बाद जंग लग गया है तथा वह समाज हित में सोचना भूल गया है ।
जबकि आज परिस्थितियां बढ़ी अनुकूल है हमारे समाज में अनेक आई.ए.एस., आई.पी.एस., न्यायाधीश, इंजीनियर, डाक्टर, वकील तथा विभिन्न विभागों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होते हुए समाज की स्थिति दयनीय होती जा रही है । क्या ? विचार करेने की बात है । आज परिवार की परिभाषा ही संकुचित हो चुकी है । पहले संयुक्त परिवार होते रहे जिसमें माता-पिता प्रमुख रूप से होते थे भाई-बहिन रिश्ते दार होते थे आज मियां-बीवी व बच्चों का परिवार कहलाया जाता है निश्चित ही उसके पास ओरों की तरफ ध्यान देने का विकल्प कहा बचता है ।
समस्त बुद्धिजीवी, प्रतिष्ठित साधन सम्पन्न वर्ग तथा कर्मचारी वर्ग को समाज हित में सोचना परम आवश्यक है । आप बाहर रहकर कितना ही समाज को छुपालें घर आकर उसी समाज में रहना है तो क्यों नहीं उस समाज की ओर कुछ ध्यान दे तथा समाज उत्थान में योगदान देकर समाज की गरिमा बनाये ।
इस परिपेक्ष में यह भी कहना चाहूंगा कि बहुत कुछ हमारी कमजोरिया भी है हम हमारे देवी-देवताओं, संत-महात्माओं, बुजुर्गों तथा माता-पिता का मान सम्मान करना भूल गये है । जिस समाज में विद्वता की महापुरूषों की वीरों के शौर्य को नकारा जाता है उस समाज की गरिमा भी विलीन हो जाती है ।
विचार करे आज की राजनीति में रैगर समाज को महत्वपूर्ण पद पर स्थान नहीं है जबकि हिन्दुस्तान का हर आठवा व्यक्ति रैगर है ।
इसके तथ में जाए तो इसमें सौ फिसदी कमी हमारी है हम अपना स्वयं का कद बढ़ाने के प्रयास में औरों की टांग पकड़कर गिराने में माहिर हो चुके है । कोई आज की राजनीति में घुसपैठ कर लेता है तो हमारे समाज का दुसरा वर्ग उसे गिराने के प्रयास में जुट जाता है तथा सफल होता जाता है तो स्वत: गरिमा लुप्त हो रही है । हममें सहनशीलता की भी कमी है कि अगर सहकुशल घुसपैठ भी कर लेता है तो समाज व नीचे तबके को भूल जाता है । परिणाम स्वरूप प्राकृतिक प्रकोप से वह स्वत: ही चिरस्थाई रहकर धराशाही हो जाता है जिससे समाज का नाम ही राजनीति से मिटता जा रहा है ।
विचार करें जिस समाज का राजा-महाराजाओं के समय स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलनों में योगदान रहा हो नाम रहा हो उस समाज का वर्तमान राजनीतिक पतन होता जा रहा है । जबकि वर्तमान समाज हित में राजनैतिक घुसपैठ आवश्यक है, इसके लिये समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो वह कहावत चरितार्थ होगी ‘अब पछतावे क्या करे जब चिड़िया चुग गई खेत ।’
मानव कमजोरियों का पुतला है समाज के हर व्यक्ति में कुछ अवगुण निश्चित रूप से होते ही है । मेरी अपील है कि, उसकी कमजोरियों और कमियों की ओर एक अवगुण की ओर ध्यान न देकर उसकी अच्छाई को ग्रहण करें ।
समस्त बुद्धिजीवी वर्ग तथा प्रतिष्ठित वर्ग की आज समाज को आवश्यकता है, रैगर समाज के लिये युक्ति ठीक नहीं कि हम सुधरेंगे जग सुधरेगा । समाज में आज भी अस्सी फीसदी अशिक्षित वर्ग है तथा उन्हें यह भी भान नहीं है कि वह जो कर रहा है या करने जा रहा है वह ठीक है या बुरा । अत: उसे यह भान करना आवश्यक है । उन्हे शिक्षा की ओर अग्रसर करना है ।
महापुरूषों ने कहा कि अपनी आय का 25 फिसदी उनके लिये व्यय करो जहां तुमने जन्म लिया, बड़े हुए । देश-समाज व गुरू संत महात्मा 25 फिसदी अपने माता-पिता पर 25 फिसदी बच्चों पर परन्तु आज की स्थिति यह है कि शत: प्रतिशत स्वयं और बच्चों पर खर्च किया जा रहा है तो बेलेन्स तो बिगड़ेगा ही संत कबीर ने कहा है पूत कपूत तो क्यों धन संचय । यह युक्ति चरितार्य होगी तो आने वाली पीढ़ी स्वत: आपकी सेवा करगी । चूंकि बालक वही करता है जो उसे शिक्षा दी जाती है या बड़े बुड़ों से सिखता है ।
समस्त शिक्षित वर्ग, प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी वर्ग से करबद्ध निवेदन है कि समाज उत्थान की ओर ध्यान देकर समाज का गौरव बढ़ाने समाज में शिक्षा के प्रसार हेतु आपके मार्गदर्शन सहयोग की अपेक्षा है कृपया तन-मन-धन-लगन से समाज उत्थान हेतु अग्रसर हो, अन्यथा एक कवि ने कहा है कि-
छेड़ने पर मौन की वाचाल हो जाता है दोस्त ।
टूटने पर आइना भी काल हो जाता है ।
मत करो ज्यादा हनन आदमी के मान का ।
जल के कोयला भी लाल हो जाता है दोस्त ।
लेखक : स्वर्गीय लक्ष्मीदेव जेलिया
श्री बाबाराम देवजी मंदिर, नया बाजार, मल्हारगढ़, जिला मन्दसौर (म.प्र.)