1931 की जनगणना के बाद 2011 की जनगणना में जाति के आधार पर भी जनगणना करने का मानस भारत सरकार ने बना लिया है । वसुधैव कुटुंबकम एवं 21 वी सदीं के भारत में जाति की बात करना कुछ लोगों की नजर में पुरानी विचारों वाला है। किन्तु ये लोग ही जाति के विकास एवं विलुप्तिकरण में बाधक रहे है, क्योकि यदि सभी जाति के लोग एक समान हो जाएगें तो अपने आप को उच्च या कुलीन कहने वालों का वजूद समाप्त हो जाएगा । ऐसे लोगों ने शिवजी एवं हनुमानजी को भी नहीं बख्शा है । स्वार्थवश या दबाव में कुछ लोग क्षणिक रुप से सभी जाति के एक या समान होने की बाते करते हो या जाति में क्या रखा है, जैसी चिकनी-चुपडी बातें कर भ्रमित करते हों, किन्तु जब समाजिक त्यौहार हो, सर्व जातिय विवाह कार्यक्रम हो, 108 या 1008 कुंडीय यज्ञ करने की बात हो स्कूल में दोहपहर का खाना बनाने वाले की बात हो, या चुनाव में अन्य जाति के लोगों की जगह नामांकन पर्चा भरने की बात हो, सार्वजनिक मंदिर में पुजारी रखने की बात हो या व्यवस्था कमेटी बनाने की बात हो, विवाह संबंधों की बात हो, शमशान भूमि स्थल की बात हो, सरकारी नौकरी/संगठनों में पद स्थापना की बात हो तो सभी तथाकथित अच्छे विचार विलुप्त होकर जाति प्रथम स्थान ग्रहण करती है । इसी सत्य तथ्य को स्वीकारते हुए कुछ विचार रैगर जाति बंधुओं को अवगत कराने का प्रयास है ।
रैगर समाज में, भारत में राष्ट्रीय , राज्य, क्षेत्रीय, परगना, पट्टी, धर्मशाला, मंदिर, युवा, प्रगतिशील, विकास इत्यादि स्तरों पर, विभिन्न जातिय संगठन बने हुए है, कुछ पंजीकृत है और कुछ अपंजीकृत है । जब जातिय संख्या की बात आती है तो विभिन्न संगठन काल्पनिक रुप से या अनुमान या की 1931 जनगणना को आधार मानकर रैगर समाज की कुल जनसंख्या का बयान अपनी रिपोर्ट या प्रतिवेदनों में केन्द्र सरकार को, राज्य सरकार को, विभिन्न मंत्रालयों एवं अन्य संगठनों को बयान करते है । हर संगठन का जाति आकंडा अलग-अलग होता है, क्यों हमारी जाति अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है । जिससे प्रतिवेदन का मूल अस्तिव ही नकारात्मक रुप में हो जाता है ।
भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में पहले कर्म के आधार पर पहचान थी किन्तु कालांतर में जाति जन्म के आधार पर हो गई इसका किसी भी धार्मिक, सांस्कृतिक, पौराणिक पुस्तकों में उल्लैख नहीं है । हिन्दु धर्म जिससे सनातन धर्म, वैष्णव धर्म को चार वर्णो एवं उसके उपरांत लगभग 6000 जातियों में विभाजित कर दिया एवं उनके आंतरिक नियम कठोर बना दिये है, जिससे कि वो कभी एकजूट न हो सकें । रैगर जाति की स्थिति जातियों में भी विचित्र है, क्यों इस जाति को क्षेत्रवार अलग-अलग नाम से पुकारा या जाना जाता है जैसे रैगर, जटिया, सिंधी जटिया, बोला , लश्करिया, रांगीया इत्यादि । जो रैगर अपने मूल स्थान से पलायन कर गये है, वे देश काल देखकर मारवाडी या उस क्षैत्र की अन्य जाति मे शामिल होकर अपनी पहचान बना ली है । भारत में प्रजातांत्रिक शासन है एवं चुने हुए प्रतिनिधि ही सरकार बनाते है एवं चलाते है । जिस समाज के अधिक लोग चुने जाते है, उस समाज के लोगों का राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, प्रशासनिक, व्यापारिक, शैक्षणिक एवं अन्य क्षैत्रों में स्वतः विकास होता है, क्योंकि नवयुवक उन्ही में से अपना रोल मॉडल चुन कर आगे बढने का प्रयास करते है । इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव अधिक होता है क्योंकि उस क्षैत्र विशेष में व्यक्ति विशेष उसके प्रभाव से प्रताडनात्मक कृत्यो की कमी हो जाती है, जो व्यक्ति के सशक्तिकरण में सहायक होती है ।
अखिल भारतीय रैगर महासभा के दिवंगत विशिष्ट महानुभावों ने रैगर समाज के बिखराव को समझकर एवं एकता का महत्व जानकर प्रस्ताव पास कर रैगर बंधुओं से अपील की थी भविष्य में सभी लोग जातिगत जनगणना के समय अपने को रैगर नाम से ही संबोधित करें, करवायें, लिखवायें, जिसमें रैगरों की वास्तविक संख्या ज्ञात हो सकेगा । रैगर महासभा की अपील के दूरगामी तथ्यों को रैगर समाज के लोग पहचान नहीं कर सके, ऐसा अवसर नहीं आया । रैगर समाज के विभिन्न संगठनों ने भी संपूर्ण भारत की रैगर जनगणना का प्रयास नहीं किया, अतः हम लोग अनुमान में ही जीतें रहे है या जी रहें है । आज कम्प्युटर युग में अनुमान का कोई वजूद नहीं है । कुछ लोगों में यह भ्रांति फेला दी गई है कि तुम्हारी जाति पहले दूसरे नाम से सरकारी रिकार्ड में, नाम के आगे या जाति प्रमाण पत्र में अंकित हो गई है अतः यदि अब रैगर जाति लिखोगे तो कई तरह की समस्याओं से आपका पाला पड सकता है । जहॉ तक अनुसूचित जाति की लिस्ट में उल्लेखित है अतः किसी भी तरह की प्रशासनिक समस्या आने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता । इस जनगणना में रैगर जाति लिखवाने से किसी भी तरह की डर की भावनाए काल्पनिक भय के अलावा कुछ नहीं है । जनगणना में जाति का नाम रैगर लिखने से लोगों के मूल रिकार्ड जैसे राजस्व, स्कूल, बिजली, बैंक, शेयर रिकार्ड में कोई प्रभाव नहीं होगा । अतः किसी भी तरह की भ्रांति या दुष्प्रचार से बचे एवं कुप्रचार करने वालों को भी निरुत्साहित करें ।
अखिल भारतीय स्तर के संगठनों या क्षैत्रीय सक्षम संगठनों से अपील है कि अखिल भारतीय स्तर पर रैगर समाज की जनगणना अपने स्तर पर भी करवाए केवल सरकार पर ही निर्भर न रहे, इससे हमारी वास्तविक जनसंख्या का एक अतिरिक्त प्रमाण हमारे पास उपलब्ध होगा ।
सम्माननीय सजातीय रैगर भाईयों एवं बहिनों आप से यह सादर अपील है कि वर्ष 2011 की होने वाली जातिगत जनगणना जो 2012 में होने जा रही है उसमें रैगर जाति ही लिखवाए, इसी तरह मतदाता सूची में भी रैगर नाम ही लिखवाए ।
इसी अपेक्षा के साथ सभी को सादर नमस्कार !
लेखक : सी.एम. चान्दौलिया (जयपुर)