समाज शब्द ‘सभ्य मानव जगत’ का सूक्ष्म स्वरूप एवं सार है । सभ्य का प्रथम अक्षर ‘स’ मानव का प्रथम अक्षर ‘मा’ जगत का प्रथम अक्षर ‘ज’ इन तीनों प्रथम अक्षरों के सम्मिश्रण से समाज शब्द की उत्पत्ति हुई, जो सभ्य मानव जगत का प्रतिनिधित्व एवं प्रतीकात्मक शब्द है । यह समाज की परिभाषा है । बन्धु ही समाज का सच्चा निर्माता, सतम्भ एवं अभिन्न अंग है । बन्धु, समाज का सूक्ष्म स्वरूप और समाज, बन्धु का विशाल स्वरूप है । अत: बन्धु और समाज एक-दूसरे के पूरक तथा विशेष महात्वाकांक्षी है ।
समाज अच्छा हो तो चरित्र अच्छा होता है ! हमें सामाजिक होना चाहिए ! समाज ने हमे बहुत कुछ दिया ! ऐसी बहुत सी बाते बातें हम प्रायः सुनते ही रहते हैं । हम ऐसा क्यों नहीं सुनते हैं की ‘हमने समाज को कुछ दिया या हमने दूषित समाज को अच्छा किया ? इसका कहीं न कहीं कारण यह है की हम समाज की परिभाषा ही नहीं जानते, हमें अछे और बुरे समाज का ज्ञान ही नहीं है । हम यह जानते हैं की समाज कुछ होता है लेकिन हम यह नहीं जानते की यह हमारे जीवन, हमारे चरित्र और फिर हमारे देश पर कैसे और क्या प्रभाव डालता है । वैसे तो हमने और आपने बहुत सी परिभाषाएं पढ़ी होंगी जैसे – “Society is the manner or condition in which the member of community live together for their mutual benifit” पर क्या हम किसी भी परिभाषा पर मनन करते हैं ? और अगर करते हैं तो क्या हम उसे अपने जीवन में उतारते हैं ? हम अक्सर इसे दूसरों पर थोप देते हैं, और कहते हैं कि क्या ये सिर्फ मेरी जिम्मेदारी है ? या मैं अकेले क्या कर लूँगा, और या मैं ही अकेले क्यों करूँ ? जबकि एक अकेले भी बहुत कुछ कर सकता है । दलाई लामा जी के शब्दों में — “I truly believe that individuals can make a difference in society. Since periods of changes such as the present one come so rarely in human history, it is up to each of us make the best use of our time to help create a happier world” हम अपने अनुआइयों को कहेते हैं कि अछे समाज में रहें और और बुरे समाज से दूर रहें, पर अच्छा समाज और बुरा क्या होता है ये बताना भी तो हमारा कर्त्तव्य होता है ।
हम सब पहले एक मनुष्य हैं फिर बाद मे और कुछ, हमे अपने समाज के अन्य लोगों के लिए भी कुछ सोचे, उनके लिए कुछ अवश्य करें, नही तो हम मनुष्य कहलाने के हक दार नही है । एक समाज का निर्माण मनुष्यों से होता है । अगर मनुष्यों का चरित्र, व्यवहार, रहन-सहन का स्तर ऊंचा होगा तो हम उस समाज को एक अच्छा और सशक्त समाज कह सकते हैं । प्रत्येक समाज का एक अपना परिचय अवश्य होता है । जैसा समाज होगा उसका वैसा ही उसका परिचय होने के साथ-साथ उस समाज के व्यक्ति का व्यवहार करने का तरिका होगा । यह एक अलग बात है कि हर समाज मे कुछ अच्छे और कुछ बुरे लोग होते हैं । यह तो हमारे ऊपर निभर करता है कि हम उनमे से क्या है और अपने लिए वैसा ही परिवेश और लोग को अपने लिए चुनते हैं ।
कितने मतलबी है न हम इंसान ? किसी की परेशानी किसी के दुःख से हमे क्या लेना देना । हमको मतलब है तो सिर्फ अपने आप से और कभी-कभी अपने परिवार से भी… पर आज हम अवश्य यह नहीं कह सकते की हमको अपने परिवार की भी उतनी ही चिंता है जितनी अपनी । क्यों ? क्यूंकि हम खुद ही नहीं जानते हम क्या कर रहे हैं क्यों कर रहे हैं किसके लिए कर रहे हैं … जिस समाज में हम रह रहे है उस समाज में और भी लोग है जो अलग-अलग स्थिति में रह रहे है । पर हम यकीनन यह कह सकते हैं कि भाई जो हम कर रहे हैं अपने लिए कर रहे हैं और इन लोगों का कहना तो यह है पहले हम अपने लिए तो कर ले, अपने परिवार के लिए तो कर ले फिर दूसरे के लिए सोच लेंगे । यह कह कर सब कन्नी काट जाते है “चलों पीछा छुटा, पता नहीं लोगों को हमसे क्या परेशानी है । लगता है सब हमसे जलते है, हमारा सुकून लोगों को गवारा नहीं लगता ।”
जिस स्थान पर जल रहता है, हंस वही रहते हैं । हंस उस स्थान को तुरंत ही छोड़ देते हैं जहां पानी नहीं होता है। हमें हंसों के समान स्वभाव वाला नहीं होना चाहिए ।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी भी अपने मित्रों और रिश्तेदारों का साथ नहीं छोडऩा चाहिए । जिस प्रकार हंस सूखे तालाब को तुरंत छोड़ देते हैं, इंसान का स्वभाव वैसा नहीं होना चाहिए । यदि तालाब में पानी न हो तो हंस उस स्थान को भी तुरंत छोड़ देते हैं जहां वे वर्षों से रह रहे हैं । बारिश से तालाब में जल भरने के बाद हंस वापस उस स्थान पर आ जाते हैं, हमें इस प्रकार का स्वभाव नहीं रखना चाहिए । हमें मित्रों और रिश्तेदारों का सुख-दुख, हर परिस्थिति में साथ देना चाहिए । एक बार जिससे संबंध बनाए उससे हमेशा निभाना चाहिए । हंस के समान स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए ।
आज जिस तरह से हमारे समाज में बदलाव हो रहे हैं ऐसे हालात में अच्छे और बुरे में पहचान करना बहुत ही कठिन कार्य हो गया है हमारे इस आधुनिक समाज में पढ़ाई-लिखाई को बहुत महत्व दिया जा रहा है मगर पढ़े-लिखे लोग ही अच्छे लोग हों यह जरूरी नहीं है । बहुत अफसोस की बात है कि हमें जो पढ़ाया जा रहा है वह व्यावहारिक नहीं है और यह किताबी पढ़ाई हमें आदमी से मशीन बना रही है व हमें एक दूसरे के सुख-दुख से दूर करती जा रही है । हम सभ्य और विकसित होने का दावा तो करते हैं मगर किसी के दुख या परेशानी में शामिल होने के लिये हमारे पास समय नहीं है । हमारे समाज में आज सीधे-सादे और अच्छे लोगों की कोई इज्जत नही होती है और उन्हें परेशान किया जाता है जबकि भ्रष्ट और दुराचारी लोगों का सम्मान किया जाता है । आज के इस आधुनिक समाज में सादगी और सदाचारी की जगह बनावटी और भ्रष्टाचारी लोगों का का राज है जो जनता के सामने तो सदाचार और नैतिकता की बातें करते हैं मगर पीठ पीछे दुराचार और अनैतिक बातों में लगे रहते हैं । हम आज जिस आधुनिक समाज में रह रहे हैं वह हमें अपने अधिकारों के बारे में तो हमें बताता है मगर हमें अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक नहीं करता जैसे कि हमारे पूर्वजों ने जो पेड़ लगाये थे उन पेड़ों से हमें शुद्ध और ताजी हवा मिलती है मीठे फल मिलते हैं और ठंडी छांव मिलती है । हम लोग अपने पूर्वजों के लगाये हुये पेड़ तो अपनी जरूरतों के लिये काट देते हैं मगर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये पेड़ नहीं लगाते जिसकी वजह से आने वाली पीढि़यों को शुद्ध और ताजी हवा मीठे फल और ठंडी छांव कैसे मिल पायेगी इसके बारे में हम नहीं सोचते । आज हमें जरूरत है ऐसी पढ़ाई की जो हमें अपने अधिकारों के बारे में तो पढ़ाये ही और साथ ही हमे अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक भी बनाये जिससे हम पढ़ें-लिखें और साथ में एक अच्छे इंसान भी बन सकें ।
यह हमारा समाज है कि जो हमारे लिए आगे बढने के लिए उत्प्रेरक का काम करता है । अगर समाज का डर न हो तो इंसान इंसान नहीं रह सकता । हम तो खुद कैसे भी अपना जीवन बिता लेंगे । फिर जिंदगी के दरिया में कहीं न कहीं किनारे पर लग कर अपना जीवन व्यतीत कर ही लेंगे । अब क्योंकि हम इस समाज के महत्वपूर्ण अंश है, इसलिए हम हर पल समाज के आगोश में रहते है । समाज की बंदिशों का डर रहता है कि हम किसी भी काम को करने से पहले बहुत बार सोचने को मजबूर हो जाते है । अगर हमारी वजह से कोई गलत काम हो गया, तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेगे, फिर हमारे माता-पिता व हमारा परिवार समाज से कट भी सकता है और यही छोटी-छोटी बातें हमको कुछ सकारात्मक व सार्थक करने के लिए प्रेरित करती है । निम्न व मध्यम वर्गीय परिवारों की तरक्की के रास्ते समाज ही दिखाता है । जबकि उच्च वर्गीय परिवारों को समाज की कोई परवाह नहीं होती है, उनको लगता है कि वह समाज से ऊपर है । यह अलग बात है कि अपवाद हर जगह पर हो सकते हैं । बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक के लंबे सफर में सबसे बेशकीमती युवावस्था का समय हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है, और इसी पडाव पर हमको बचपन की सुनहरों यादों के साथ सपनों को साकार करने प्रयास करना चाहिए, ताकि हम वृद्धावस्था में अपने समाज में गर्व से कह सके कि देखो और समझो हमने जिंदगी के दरिया में मजबूत व दृढ इच्छा-शक्ति के बल पर तैर कर अपने लिए वह मुकाम हासिल किए है, जो कामयाबी के शिखर बन गए । अगर हमने युवावस्था में समाज की परवाह नहीं की, तो ऐसा हो सकता है कि वृद्धावस्था में समाज हमारा साथ छोड दे और हम अकेले रह जाए, जिंदगी के आखिरी मोड पर । इसलिए जरूरी हो जाता है कि हमको अपना कल को संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए ।
हमारा समाज तो हम सब के लिए एक अच्छी और साफ़-सुथरी जिन्दगी जीने का मुख्य आधार है, अगर हम समाज को दरकिनार करेंगे तो हमारा जीवन एक नरक की तरह बन जाता है, निजी जीवन जीने के लिए आज कल पैसा ही सब कुछ है, पर समाज में भी रहना जरुरी है, जीवन में आदमी महान कब होता है जब इज्जत-मान-मर्यादा हर आदमी का अपना परिवार होता है, इसके लिए समाज बहुत जरुरी है, अपने कल संवारने के लिए आज समाज को सम्मान देकर और उससे प्रेरणा लेते हुए आगे बढने की कोशिश की जाए ।
हमें अपने समाज से बुराई को हटाना होगा । जब तक हम समाज में व्याप्त बुराई को हटाने में कोई सहयोग नहीं करते हैं तब तक हम उन्नति नही कर सकते । कितने लोग सोचते व कहते हैं कि एक हमारे चाहने से क्या होगा ………. पूरा दुनियाँ ऐसी हैं तो क्या एक सिर्फ हमारे सुधरने से दुनियाँ सुधर जायेगी ………… इस तरह से लोग कई बात कहते हैं । पर हमें सोचना व समझना चाहिए कि हम और आप जैसे व्यक्तियों से ही यह समाज बना है । तब फिर हमारे व आपके सुधरने से यह समाज क्यों न सुधरेगा ? याद रखें हमारे-आपके सहयोग से ही इस समाज की उन्नति संभव है । और हमारे-आपके सहयोग से ही समाज से रूढीवादी कुरीतियां समाप्त हो सकती है । अन्यथा समाज की रूढीवादी कुरीतियां हमें ही कुचल देगी । समाज सुधार सुशिक्षितों का अनिवार्य धर्म-कत्र्तव्य है । अतः हम सभी से यह आह्वान करना चाहते है कि अपने में सुधार लाते हुए समाज को सुधारने में अपना योगदान दें । यही हमारी नववर्ष की खुशी होगी । हम बदलेंगे युग बदलेगा । हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ॥
समाज के समन्दर की मैं एक बूँद हूँ, और मेरा प्रयास वैचारिक परमाणुओं को संग्रहित कर सागर की निर्मलता को बनाए रखना ।
लेखक : ब्रजेश हंजावलिया – मन्दसौर (म.प्र.)