समाज में दो तरह का बुद्धिजीवी वर्ग है, एक तो वो जो पढ़ लिखकर डिग्रिया हासिल कर ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठ गया जिसे बुद्धिजीवी वर्ग मान लिया गया। दुसरा वह जो पढ़ा लिखा है या नहीं चाहे डिग्री या पदधारी है या नहीं है लेकिन हर बात को तर्क की कसौटी पदर उतारता है तथा खरी उतारने पर ही उसे समाज हीत में मानते है। वह मार्ग दर्शन करता है, रचनात्मक कार्य भी करता है। लेकिन पलड़ा बुद्धिजीवी वर्ग का ही भारी रहता है क्याकि समाज में उन लोगों को मान्यता होती है वो कुछ भी करे उनको कहने वाला कोई नहीं होता है अगर हम कम पढ़े लिखे लोगों उनके द्वारा किये गये कार्यों का वर्णन करे तो लोग मानने को तैयार नहीं होते ओर कहते हैं कि वे लोग ऐसा थोड़ी कर सकते?
आज सम्पूर्ण रैगर समाज के हर शहर , गांव, मोहल्ला तथा ढ़ाणी के लोगों में यह आक्रोश है कि किसी भी तरह रैगर समाज का राजनैतिक स्तर ऊपर उठे तथा समाज विकास के मार्ग पर आगे बढे, लेकिन हमारा बुद्धिजीवी वर्ग हमेशा समाज में अच्छी सोच रखने वाले व समाज उत्थान के कार्य में योगदान करने वाले व्यक्ति जो सम्पन्न परिवार से नहीं है वो व्यक्ति अगर समाज में अच्छा कार्य करना चाहता है तो यह बुद्धिजीवी वर्ग उस पर प्रशन चिन्ह लगाना शुरू कर देते है तथा उसे मामूली इंसान व बुद्धिहीन समझने लगते है । अगर बुद्धिजीवी वर्ग किसी भी कार्य के लिए चन्दा इकठा करले तो उसे कोई पुछने वाला नहीं है क्योंकि वो पढ़ा लिखा व उच्च पदों का व्यक्ति है अगर सामान्य व्यक्ति अच्छे कार्य के लिए चंदा इकठा करता है तो यही पढ़ा लिखा वर्ग कहता है कि अपने लिए कर रहा है और उसको कोई सहयोग नहीं करता है यह कहा तक उचित है ?
मैंने यह महसूस किया है कि बहुत लोग समाज हित में अच्छा कार्य करना चाहते है लेकिन हमारे समाज के चन्द लोग ऐसे भी है जो स्वयं तो आगे नहीं आते पर अपने पिछलगु लोगों को आगे कर समाज में फुट डालने व अच्छे कार्यों में बांधा उत्पन्न कर अपनी मनमानी करने से नहीं चुकते है । ऐसा कई बार हुआ है और हो रहा है । यही कारण है कि हमारा समाज सामाजिक निर्माण रूपी नाव, नदी रूपी भूल-भूलैया में फंस जाती है और आगे बढने का कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है । यह कहा तक न्याय संगत है ? मेरे कहने मतलब यही है कि अगर व्यक्ति ज्यादा पढा लिखा नहीं व सम्पन्न परिवार से भी नहीं लेकिन अगर समाज हीत तें उसकी सोच सही है व अच्छा कार्य कर रहा है तो हमे हर संभव उस व्यक्ति के कार्यो की प्रशंसा करनी चाहिए न की उसका मनोबल गिराना चाहिए । यह वर्ग रूपी भेदभाव जब तक नहीं मिटेगा तब तक हमारा समाज आगे नहीं बढेगा । आये दिन राजनैतिक पार्टियों या अन्य सामाजिक संगठनों से यह सुनने को मिलता है कि आपके समाज में कितने सामाजिक संगठन है और कौन सा संगठन समाज हीत के लिए कार्य कर रहा है । हम किस पर विश्वास करे हर आदमी अध्यक्ष का लेबल लेकर पार्टियों के पास जाता है और कहता है कि में रैगर समाज का अध्यक्ष हूँ उस स्थिति में हमें केसे राजनीति में आगे बढ सकते है या हमारे समाज की समस्या को लेकर कैसे निपटारा कर सकते है क्योंकि हम एक नहीं है और हमारी फुट लोगों के सामने आने लगती है तथा हमारा बनता काम भी बिगड़ने लगता है । क्या यह विचारनीय प्रशन है । समय रहते हमे रैगर समाज के एक मंच पर आकर हमारी राजनैतिक ताकत को दिखानी होगी तीभी जाकर हमें कुछ हासिल होगा । अन्यथा आने वाले समय में हमारी और दुर्गति हो सकती है ।
लेखक : गोविन्द जाटोलिया