रैगर समाज के समग्र विकास और सुधार पर नजर डालें तो हमने शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में अच्छी प्रगति की है । राजनीति में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं जिनमें ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं, नगर परिषदों तथा नगर निगम में रैगर समाज के प्रतिनिधि पहले से कई गुना अधिक संख्या में चुन कर आए है । इसलिए रैगर समाज की राजनीतिक जड़े मजबूत हुई है। राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय स्तर पर हमारे सांसदों और विधायकों की संख्या निरन्तर घटी है । इसलिए सामाजिक सम्मेलनों, विचार गोष्ठियों तथा आपसी विचार विमर्श में रैगर समाज का हर आदमी निराशा का भाव लिए एक ही बात कहता है । कि रैगर समाज राजनीतिक रूप से कमजोर हुआ है । राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर पर ऐसा लगता है कि जैसे रैगर समाज में राजनीतिक शून्यता आ गई है । प्रथम राजस्थान विधान सभा 1952-57 में 3, द्वितीय विधान सभा 1957-62 में 4 तथा तृतीय विधान सभा में 4 विधायक रहे है। चतुर्थ विधान सभा में 1967-72 में सर्वाधिक 5 विधायक रहे हैं । इससे पहले या बाद में आज तक रैगर समाज के इतने विधायक चुन कर राजस्थान विधान सभा में नही आए है । पंचम विधान सभा 1972-77 में 2, षष्ठम में विधान सभा में 1977-80 में 3, सप्तम विधान सभा 1980-85 में 4, अष्ठम विधान सभा में 4, नवम विधान सभा में 1990-93 में रैगर समाज के 2 विधायक निर्वाचित हुए । सबसे दुखद स्थिति दशम विधान सभा 1993-98 में रही जिसमें रैगर समाज का कोई प्रतिनिधि नहीं चुना गया । ग्यारहवीं विधान सभा 1998-2003 में 3 रैगर विधायक थे। बारहवीं विधान सभा 2003-08 में एक मात्र हीरालाल रैगर निवाई से भाजपा से विधायक चुने गये । वर्तमान में तेरहवी विधान सभा श्रीमति गंगादेवी बगरू से कांग्रेस पार्टी से चुनी गई है। संसद में रैगर समाज के प्रतिनिधित्व की स्थिति इससे भी बुरी है । वर्ष 1980 में रैगर समाज के दो सांसद श्री धर्मदास शास्त्री तथा श्री विरदाराम फुलवारिया चुनकर लोकसभा में गये थे । आज संसद में रैगर समाज का कोई नुमाइंदा नहीं है। यह स्थिति निराशाजनक हैं।
राजनीतिक स्थिति कैसे सुधरे – हमारे समाज के लोग चिल्लाना और हायतौबा मचाना तो जानते है मगर समाज के प्रति अपना फर्ज निभाने का सवाल आता है । तब किनारा कर लेते है । रैगर समाज को राजनितिक पतन की तरफ ले जाने वाले है जिनकी कथनी और करनी में अन्तर है । यह स्थिति यह स्थिति तभ सुधर सकती है जब रैगर समाज का हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे और रचनात्मक भूमिका निभाए । रैगर समाज की राजनीतिक स्थिति को सुधारने के लिए निम्नांकित महत्वपूर्ण सुझाव दि जा रहे है ।
1. रैगर अपना वोट रैगर प्रत्याशी को ही दें ।
आजादी के 64 वर्षों बाद भी रैगर समाज के लोग यह नहीं समझ पाए है कि अपना वोट अपनी जाति के प्रत्याशी को दिए अपनी जाति का उम्मीदवार कैसे जीतेगा और हमारा प्रतिनिधित्व कैसे बढेगा । जब हम ही हमारी जाति के उम्मीदवार को अपना वोट नहीं देंगे तो दुसरी जाति या समाज के लोग हमारे उम्मदीवार को क्यों वोट देंगे । हमें समझना चाहिए कि जाट-जाट को वोट देता हैं, ब्राह्मण-ब्राह्मण को वोट देता है , बनिया-बनिया को वोट देता है तो रैगर को वोट क्यो नहीं देते है । जाटों का नारा है कि जाट की बेटी और जाट का वोट जाट को ही जायेगा ।
रैगरों को अपनी राजनीतिक स्थिति सुधारना है तो उम्मदीवार की योग्यता और राजनीतिक पार्टी को देखे बिना केवल ‘अपनी जाति का उम्मीदवार है’ यही देख कर वोट देना चाहिए । यह हकीकत है कि यदि कोई रैगर भाजपा या बसपा से खड़ा हो जाता है तो रैगर मतदाता अपना वोट उसे नहीं देता है वह कांग्रेस पार्टी के उस उम्मीदवार का वोट देता है जो रैगर समाज का नहीं है । हमें सोचना चाहिए कि कोई भी राजनीतिक पार्टी काबिलियत देखकर उम्मदीवार खड़ा नहीं करती है । राजनीतिक पार्टिया अंगूठा छाप और उनके कहे अनुसार चलने वरले दलित वर्ग के नाकाबिल व्यक्ति को टिकट देती है । फिर हम उम्मीदवार की योग्यता और पार्टी को देखकर वोट क्यो दे रहे हैं । जिस दिन रैगर समाज समझ जाएगा कि मुझे मेरी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देना है चाहे व योग्य हो या नहीं हो, चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी का का हो और चाहे व जीते या हारे । रैगर समाज इस मंत्र को अपना लगा उस दिन संसद और विधानसभाओं में रैगर समाज के प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ जाएगी । दुख इस बात का है कि चुनावों में रैगर समाज के वे लोग समाज को धोखा देते जो बढचढकर बोलते है और हल्ला मचाते है । रैगर को रैगर ही हराते है । धर्मदासजी शास्त्री का 1985 के बाद लोकसभा चुनाव हारने का यही एक मात्र कारण था । करोल बाग के रैगरों ने धर्मदास शास्त्री को हराया । उसी सदमें से उनकी मौत हुई । फिर भी हम सबक नहीं ले रहे हैं ।
2. रैगर विभिन्न राजनीतिक दलों में जाए –
रैगर समाज के लोगों को किसी एक पार्टी में नहीं जाकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में जाना चाहिए । दुर्भाग्य से रैगर समाज कांग्रेस पाटी का वोट बैंक है । वह किसी दुसरी राजनीतिक पार्टी को वोट नहीं देता है । कांग्रेस का वोट बैंक होने से ही कांग्रेस रैगरों की परवाह नहीं नही करती है । हाल ही में प्रदेश कांग्रेस संगठानात्मक नियुक्तियों में एक भी रैगर को स्थान नहीं किया गया है । रैगरों को भाजपा, बसपा, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों में भाग लेना चाहिए । इससे सभी राजनीतिक पार्टिया रैगरों की बात सुनेगी, उनके हितो को ध्यान में रखेगी ओर उन्हे टिकट देगी । मै कांग्रेस विरोधी नहीं हॅू मगर मेरा सुझाव है कि रैगर समाज किसी भी पार्टी का बन्धक नहीं है ।
3. रैगर राजनीति में सक्रिय एवं नियमित रूप से भाग ले-
रैगर एक व्यवसायी कौम है । इसलिए रैगर राजनीति में बहुत कम समय दे पाता है । रैगरों को राजनीति में आगे बढना है और सफलता हासिल करनी है तो जिस पार्टी से वे सम्बद्ध है उस राजनीतिक पार्टी की बैठको तथा कार्यक्रमों में सक्रिय और नियमित रूप से भाग लेना चाहिए । पार्टी के बडे नेता जब भी क्षेत्र में आते उनसे मुलाकात करनी चाहिए । अपनी पहचान व नजदीकियां बढानी चाहिए । कस्बों तथा शहरों के डाक बंगलों और सर्किट हाऊस में जब पार्टी के नेता आते है, रैगर समाज के बहुत कम लोग वहां दिखाई देते हैं । वर्षों तक पार्टी की सेवा करते रहने से पार्टी में जगह बन पाती है । हम सांसद और विधायक का टिकट पैराशूट से ऊतर कर लेने की कोशिश करेंगे तो उसमें सफलता की सम्भावना कम है । इसलिए पार्टी के प्रति वफादारी और नेताओं से विश्वास प्राप्त करने के लिए पार्टी के सभी कार्यक्रमों में भाग ले, पार्टी से लगातार जुड़े रहे । पार्टी के प्रति वफादारी का फल कभी न कभी जरूर मिलेगा ।
सुझाव और भी बहुत सारे दिेये जा सकते है । जरूरत है सुझावों पर अमल करने की, सुझावों को व्यवहार में लाने की । अगर उपरोक्त सुझावों को अपना लिया तो आशातीत सफलता मिलेगी । लोकसभा तथा विधान सभा में रैगर समाज का प्रतिनिधित्व निश्चित रूप से बढेगा ।
लेखक : चन्दनमल नवल, जोधपुर