बदल रही आबो-हवा, नशे के दलदल मे फिसल रहा युवा ।
हर तरफ हो रहे सस्ते, सामाजिक सरसता भरे रिश्ते ।
नशा करने वाले समझते, शान सब मे खुद की दोगुनी ।
किंतु मायूसी के हालात, समाज मे व्यथा बढ़ रही सौगुनी ।
मलहम दु:ख-दर्द का और सही, किंतु ना कभी बने नशा विकल्प ।
आओ सब मिलजुल नशामुक्ति का, रे! संभल रेगर युवा करे संकल्प ।
लेखक
हरीश सुवासिया
एम. ए. [हिंदी] बी. एड. (दलित लेखक,संपादक)
देवली कला जिला- पाली मो॰ 09784403104