डॉ. अम्बेडकर के अनुसार संविधान शासन की सभी शाखाओं पर नियन्त्रण रखने के लिए सिर्फ यन्त्र रचना है । यह किसी सदस्य या दल को सत्ता में बैठाने की यन्त्र रचना नहीं है । शासन की क्या नीति होनी चाहिए ?, सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से समाज का क्या गठन होना चाहिए ?, ये वे मुद्दे है जो समय और परिस्थितियों को देखते हुए जनता को स्वयं तय करने हैं । यह प्रावधान संविधान में नही रखा जा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से लोकतन्त्र ध्वस्त हो जायेगा ।
किसी देश की व्यवस्था में संविधान की क्या भूमिका हो ?, यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है । भारतीय संविधान की श्रेष्ठता पर विचार करें, तो हमें उन देशों के संविधान को समझना होगा, जो अपनी शासन व्यवस्था व आर्थिक विकास के बल दुनिया मे सर्वश्रेष्ठ और महाशक्ति बने हुए है, इसमें निर्विरोध रूप से, यदि किसी देश का नाम सामने आता है तो, वह संयुक्त राज्य अमेरिका है ।
अमेरिका मे अध्यक्षीय शासन पद्धति प्रचलित हैं, जबकि हमारे भारत देश में पार्लियामेंट पद्धति है, दोनों पद्धतियां मूलतः भिन्न है । अमेरिकी पद्धति के अनुसार वहा का अध्यक्ष कार्यकारिणी का मुखिया होता है । शासन का केन्द्र बिन्दु होता है जबकि भारतीय संविधान के अनुसार अध्यक्ष ( राष्ट्रपति ) का वही स्थान है जो अंग्रेजी संविधान के अनुसार वहा के राजा को प्राप्त है । वह राज्य का मुख्य अधिकारी है, लेकिन कार्यकारिणी का मुख्य अधिकारी नही है । वह राष्ट्र का प्रतिनिधिव्व करता है परन्तु राष्ट्र पर शासन नही करता है । वह राष्ट्र का राजकीय प्रतीक है ।
अमेरिकी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के अधीन बहुत से मंत्री होते है, जिन्हे वह नियुक्त करता है, जिन पर भिन्न-भिन्न विभागों की जिम्मेदारी रहती है । अमेरिका मे राष्ट्रपति अपने किसी भी मंत्री की सलाह मानने या न मानने के लिये स्वतन्त्र है तथा उसे तुरन्त बिना किसी अनुमति के हटा सकता है ।
जबकि भारत में राष्ट्रपति के अधीन प्रधानमंत्री व बहुत से मंत्री होते है जिन पर भिन्न-भिन्न विभागों की जिम्मेवारी होती है । राष्ट्रपति संसद मे बहुमत को ध्यान मे रखते हुए अपने विवेक से प्रधानमंत्री की नियुक्त करता है, प्रधानमंत्री अपना मंत्रिमण्डल बनाता है जिसकी सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल को शपथ दिलाता है । राष्ट्रपति इन सभी की सलाह से कार्य करता है, वह न तो इनकी सहमति के विरूध कुछ कर सकता है, और न उसकी सहमति लिये बिना कुछ कर सकता है ।
अमेरिकी राष्ट्रपति जब चाहें किसी भी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है जबकि भारतीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही बर्खास्त कर सकता है । भारतीय राष्ट्रपति तब तक प्रधानमंत्री को बर्खास्त नही कर सकता जब तक उसका संसद मे बहुमत है ।
अमेरिकी संविधानिक व्यवस्था में शासन विभाग और कानून बनाने वाला विभाग, पृथक-पृथक है, इसलिये राष्ट्रपति और उसके मंत्री अमेरिकी पार्लियामेन्ट ( सीनेट ) के सदस्य नही बन सकते है । जबकि भारतीय संविधान में मंत्री संसद के सदस्य होते है। केवल संसद सदस्य ही मंत्री बन सकता है । संसद सदस्य, संसद में बैठ सकते है, बहस मे हिस्सा ले सकते है तथा अपना मत प्रदान कर सकते है । निःसन्देह दोनों शासन पद्धतियां प्रजातान्त्रिक है ।
उपरोक्त से स्पष्ट नजर आता है कि अमेरिकी शासक-मण्डली असंसदीय, शासक मण्डली है, संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस, वहा की शासक मण्डली को बर्खास्त नही कर सकती है जबकि भारत मे सरकार को उसी क्षण त्याग पत्र देना होता है, जिस क्षण वह संसद मे अपना बहुमत खों देती है ।
उतरदायित्व की दृष्टि से अमेरिकी शासक मण्डली असंसदीय व स्थिर है, इसलिये वह अपनी संसद ( सीनेट ) के प्रति उत्तरदायी नही है, जबकि भारत मे शासक मण्डली संसद मे बहुमत पर निर्भर है, जिसके कारण संसद के प्रति अधिक उत्तरदायी है । अमेरिकी शासन व्यवस्था में शासक मण्डली के उत्तरदायित्व का लेखा-जोखा समय विशेष जैसे चुनाव के समय, चार वर्ष में एक बार होता है, जबकि भारतीय संसदीय व्यवस्था मे शासक मण्डली के उत्तरदायित्व का लेखा-जोखा दिन-प्रतिदिन और समय विशेष तथा सरकार के प्रत्येक निर्णय पर होता है, जिसके लिये संसद सदस्यों द्वारा प्रश्न पुछकर, अविश्वास प्रस्ताव लाकर, काम रोको प्रस्ताव लाकर तथा अध्यक्षीय भाषणों पर विवाद करके किया जाता है ।
अमेरिकी शासन व्यवस्था मे दैनिक माप-जोख के लिये कोई स्थान नही है । ऐसा समय विशेष पर ही, चुनाव पर किया जाता है जबकि भारत मे सरकार के प्रत्येक नितिगत निर्णय पर नाप-जोख किया जा सकता है । यह भारत मे अधिक प्रभावशाली है । भारत जैसे देश में सरकार की स्थिरता की अपेक्षा उत्तरदायित्व को अधिक महत्व दिया गया है ।
जब किसी शासन व्यवस्था पर बात करते है, वह व्यवस्था सबसे अधिक, आम आदमी व जनता के लिए फायदेमंद होती है, जिसमें सरकार आम जनता के प्रति उत्तरदाही या जवाबदेही हो । अमेरिकी व्यवस्था स्थिर है, लेकिन जवाबदेहीता कम है, केवल चार साल मे एक बार मूल्याकन होता है, जबकि भारतीय शासन व्यवस्था इसलिए सर्वोत्तम है, क्योकि इसमें प्रतिदिन सरकार के कार्यो का मूल्यांकन आम जनता या संसद सदस्यों द्वारा किया जाता है, तथा उसकी जवाबदेहीता तय की जाती है । अनुत्तरदायी सरकार, संसद में विश्वास मत के खोने पर हटाया जाता जा सकता है । इसके लिए उसकी अवधि 5 वर्ष पूर्ण होना आवश्यक नही है ।
अमेरिकी सरकार या राष्ट्रपति की तानाशाही प्रवृति पर रोक लगाना आसान काम नही है, जबकि भारतीय शासन व्यवस्था मे तानाशाही प्रवृति को तुरन्त ही हटाया जा सकता है जैसे: – पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल लगाने के कारण उन्हे अपनी सरकार को गवांना पड़ा ।
जहा तक भष्ट्राचार का प्रश्न है, इसका देश की संवैधानिक व्यवस्था से कोई संबधं नही है । भष्ट्राचार सरकार द्वारा अपने कार्यो के निष्पादन मे लापरवाही, बेईमानी है जिसे संवैधानिक व्यवस्था पर नही डाला जा सकता है ।
किसी भी संविधान की श्रैष्ठता इस बात पर मूल्यांकीत है कि वह कितना लोगों व देश की समय व परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन, लचीलापन, आम जनता के प्रति जवाबदेहीता, व वर्तमान मे उसकी प्रासंगिकता कितनी है । भारतीय संविधान मे, वे सभी गुण उपलब्ध है, जो किसी संविधान को, दुनिया मे श्रैष्ठतम संविधान बनाते है ।
लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)
माबाईल नम्बर 9414244616