प्रश्न बहुत सीधा-साधा है कि क्या हम बेरोजगार है, हमे यह जानना बहुत जरूरी है कि बेरोजगार कौन है । क्या बेरोजगार वह व्यक्ति है, जिसे काम नही मिला, या वह व्यक्ति बेरोजगार है, जिसे सरकार की नोकरी नही मिली या वह व्यक्ति बेरोजगार है, जो कोई काम करना ही नही चाहता या वह व्यक्ति बेरोजगार है, जिसे अपनी पंसद की नोकरी या काम नही मिला है ।
मेरा मानना है कि, बेरोजगार वह व्यक्ति है जो कार्य करना चाहता हो, लेकिन कई प्रयास के बाद भी उसे काम नही मिला हो । परन्तु ऐसा व्यक्ति, जिसे अपनी पंसद का काम नही मिला हो, इसलिए वह काम नही करना चाहता या वह व्यक्ति जिसे सरकार कि नोकरी नही मिली, इसलिए वह अपने आपको बेरोजगार मानता हो या वह व्यक्ति जो कोई काम करना ही नही चाहता हो, ऐसे व्यक्ति बेरोजगार नही माना जा सकता ।
वर्तमान परिस्थितियों पर घोर करे तो आज 95 प्रतिशत युवा वर्ग नोकरी तो करना चाहता है । वह भी सरकारी, यदि उसे यह सरकारी नोकरी नही मिली, तो ऐसी स्थिति मे वह मानता है की, ‘मैं बेरोजगार हूँ ।’ तो यह गलत है ।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सरकार, देश के सभी लोगों को नोकरी देने मे सक्षम है । लेकिन कोई भी इस प्रश्न पर ध्यान नही देता है, सबको सरकारी नोकरी चाहिये । आमतोर पर, यहां तक देखने को मिलता है कि व्यक्ति, पी.एच.डी. डॉक्ट्रेरेट, इन्जिनियर, वकील, उच्च डिग्री प्राप्त करने के बाद भी सरकारी बाबू व अध्यापक बनने को तैयार है । कभी-कभी तो ऐसी हास्यापद स्थिति हो जाती है कि, सरकारी नोकरी के चक्कर मे बड़े-बड़े तथाकथित डिग्रीधारी सरकारी कार्यालय मे चपरासी तक को बनने को तैयार हो जाते हैं । ऐसी स्थिति मे, यह सरकारी नोकरी, किसी को क्या से क्या बना देती है । इसी नोकरी का इतना प्रभाव है कि, बेटियों के माँ-बाप कभी-कभी एक पढ़े लिखे विद्धान के मुकाबले, अपनी बेटी, किसी सरकारी कर्मचारी, चाहे वो चपरासी भी क्यो ना हो, उसे देना पंसद करते हैं । इसका मतलब यह हुआ कि ‘हमारी डिग्रीयॉ नकली है, नौकरी असली है, अर्थात डिग्री का कोई मोल नही है, मोल नौकरी का है, ऐसी हास्यास्पद मानसिकता में हमारे लोग जी रहे है, जबकि इतिहास गवाह है कि, नौकरी करने वाले कभी महान नही हुए है ।’ यह और कुछ नही, हमारे मानसिक दिवालियापन को दर्शाती है । ऐसी नोकरी के चक्कर मे इन्जिनियर डिग्रीधारी सरकारी बाबू व अध्यापक बनने को तैयार है, पी.एच.डी., एलएल.बी. वकील बनने के बाद बी.एड. कर अध्यापक बनने को तैयार है, और कही कही तो ऊची-नीची सरकारी नोकरी पाने के लिए किसी भी हद तक रिश्वत देने को तैयार है ।
देखिये हम अब कहा जा रहे है । इन सब में एक प्रश्न और खड़ा होता है कि क्या हमारी पढ़ाई नकली है, जो जगह-जगह बेइज्जत हो रही है । देखा जाये तो इसमे जितना दोष सरकार का है, उससे भी कही ज्यादा दोष हमारा है । हम इतना पढ़ने-लिखने के बाद भी, हम इस आधुनिक दुनिया मे अपने ज्ञान का उपयोग करना नही सीखे है । ऐसा लगता है कि, हम पढ़-लिख कर उल्टा स्वयं सवालों के घेरे मे आ गये है ।
तो ऐसी स्थिति मे हमे क्या करना चाहिये, मेरा मानना है कि, हमे सर्वप्रथम, हमारे दिमाग से सरकारी नोकरी करने के भूत को बाहर निकालना होगा । फिर हमे यह सोचना होगा कि, हम जो पढ़ रहे हैं, या पढ़ने जा रहे हैं, क्या यह हमारे जीवन मे नोकरी के सिवाय कितना उपयोगी है, और हमे, हमारी पढ़ाई-ज्ञान को बाजार मे बिकने लायक बनाना होगा ताकि हम, इसे अपनी आजीविका का एक साधन बना सके ।
वैसे मेरा सरकारी नोकरी के प्रति विरोद्ध नही है । विरोद्ध इस बात पर है कि क्या सरकारी नोकरी ही सब कुछ है, ऐसी स्थिति मे जिसे मिल जायेगी उसका तो उद्धार हो जायेगा और जिसे नही मिली, तो उसका क्या होगा । ऐसी स्थिती मे हमे अपनी शिक्षा के अनेक वैकल्पिक उपयोग पर विचार करना होगा और उसे गम्भीरपूर्वक क्रियान्वित करना होगा, क्योकि आज दलित आदिवासी समाज को नोकरी करने वाले डॉक्टर, इन्जिनियर, वकील, उच्च डिग्रीधारी व्यक्ति के अलावा पेशेवर डॉक्टर, इन्जिनियर, वकील व तकनीशीयन कि आवश्यकता है जो समाज को एक नयी दिशा दे सके, हमे यह नही भूलना चाहिये कि, सरकारी कर्मचारी चाहे वह चपरासी हो या कलेक्टर, सभी को सरकारी आदेशो के पालन के लिए नियुक्त किया जाता है और उसके कर्तव्य दायित्व पहले से ही निश्चित होते हैं । ऐसी स्थिति मे उससे बाहर आकर कार्य करने की उम्मीद करना बेमानी है । हमे यह कभी नही भूलना चाहिये उसकी पहली प्राथमिकता सरकार है, इसलिए एक सरकारी सेवक-नोकर से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है, क्योंकि वह सरकार का नोकर है मालिक नही, ऐसी स्थिति मे आप समझ सकते है कि नोकर कि क्या हेसियत है ।
बहुत सारी बाते है, फिर कभी इस बिन्दु पर गम्भीर मंथन करेगे । मेरी तो सलाह है कि, हमारी भावी पीढ़ी को, अपनी पढ़ाई के उद्देश्य मे सरकारी नोकरी के साथ-साथ पेशेवर, तकनीकी ज्ञान व व्यवसाय को भी शामिल करना चाहीये, तभी सबका भला हो सकता है, तथा उन क्षेत्रो मे प्रयास करे, जहा हमारे लोगों की संख्या नगण्य है, जिसमे न्यायपालिका, पत्रकारिता, पेशेवर इन्जिनियर, उच्च स्तरीय वकील, पेशेवर डॉक्टर जो हमारे बीच प्रेक्टीस करते हो, तभी हमारा विकास सम्भव है और इस बेरोजगारी से मुक्ती भी सम्भव है ।
लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)