रैगर जाति के महान क्रांतिकारी अमर शहीद त्यागमूर्ती स्वामी आत्माराम ”लक्ष्य” के बारे में आज भी कुछेक शिक्षित साहित्य इतिहास प्रेमी रैगर ही पूज्य स्वामी जी के बारे में जानते है। पूज्य स्वामी आत्माराम ”लक्ष्य” रैगर संस्कृति के साकार प्रतिक थे। स्वाभिमान साहस सच्चाई, निर्भिकता, सहनशीलता, कर्त्तव्य निष्ठा, संगठन शक्ति, अनुशासन एवं विनम्रता के गुण उनमें सहज रूप से विद्यमान थे। कायरता, कमजोरी, अन्याय के वे कटृर विरोधी थे। ऐसे महामानव के जीवन दर्शन एवं विचारों का प्रकाशन किया जाना परमावश्यक है, जिससे हम प्रेरणा प्राप्त कर सकें। सत्ताधिशों की सत्ता उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है जबकि महान् देश भक्तों की सत्ता उनके निर्वाण के पश्चात् भी हमें प्रेरणा प्रदान करती रहती है। पूज्य स्वामी आत्माराम ”लक्ष्य” उन्हीं महा मानवों में से एक थे, जिन्होंने इस देश जाति के लिए दिन रात संधर्ष कर अपना जीवन अर्पण करते हुए इस निर्जिव जाति में जीवन डालने का अनवरत प्रयास किया। कहते है कि महापुरूषों का जीवन संघर्षमय होता है जीवन के कई उतार चढ़ावों से गुजरता हुआ कठिन तपों से तपकर खरे सोने की तरह उनका जीवन निखर कर औरों को मार्गदर्शन प्रदान करता है। स्वामी जी ने जीवन की सारी कठिन परिस्थितियों से गुजरकर आगे बड हमारी निर्जीव रैगर जाति की दयनीय स्थिति को गहन अध्ययन कर जाति तें व्याप्त कुरितियों, रूढि़यों, अंधविश्वासों, भीरूता, गुलामी, दासता, अपृश्यता, अज्ञानता आदि बुराईयों को दख स्वामी जी का मनउद्धेलित हो उठा। वे दिन रात इन महा मारियों से रैगर जाति को कैसे मुक्त किया जाये, रैगर जाति में कैसे स्वाभिमान भर जीवन को जीना सिखाया जाय, इस बाबत् अपने समकालीन साथियों से विचार विमर्श करते रहते थे उनका कहना था कि हमारा यह सर्व हारा समाज सदियों से निष्कामभाव से अन्य समाजों की सेवा करता हुआ अपमान, अनादर, अशिक्षा, घृणा, प्रताड़ना, दुर्व्यवहार प्राप्त कर रहा है ने दिन रात सोचा करते थे कि कब तक हमारा समाज इन अत्याचारों का शिकार होता रहेगा उनका मानना था कि जब तक हमारे समाज में शिक्षा का प्रचार प्रसार, हो अन्धविश्वासों, अज्ञानता का विनाश होकर, घृणित कर्मों अलगांव शुद्ध खान-पान, आचार-विचार व्यवहार नहीं होगा, तब तक यह समाज विकास की ओर अग्रसर नहीं हो सकेगा। हमारा रैगर समाज भारत के अनेकों राज्यों में दूर दराज तक फेला हुआ है उन तक नवजागरण का यह संदेश कैसे फैले, इस विजय में अपने साथियों से हम विचार विमर्श कर अपने राज्य की राजधानी दिल्ली में रैगर समाज की राष्ट्रीय संस्था रैगर महासभा की स्थापना की अनवरत प्रयत्न कर प्रथम रैगर महासभा सम्मेलन का आयोजन दौसा में करा पाने में सफलता हासिल की। हजारों स्वजाति बंधुओं के सम्मेलन में उपस्थित होने पर समाज के विकास हेतु अनेक नियमों, प्रस्तावों का समाज द्वारा अनुमोदन करा, उन्हें समस्त राष्ट्र के रैगर समाज में लागू कराने का प्रयास अनेक ग्राम, नगरों में जाकर आपके द्वारा किया गया। परिणाम स्वरूप समाज ने जगह-जगह घृणित कार्यों को त्यागना शुरू कर दिया, बेगार देना बंद कर दिया, खान-पान, रहन-सहन में सुधार किया जाने लगा। हजारों वर्षों से सोई हुई रैगर जाति एक बार फिर जागृत होने लगी। रैगर जाति में इस प्रकार की क्रांति होते देख, सदियों से अत्याचारी स्वर्ण जातियों ने रैगरों के इस आन्दोलन का विरोध करते हुए उन पर तरह-तरह के जुल्म ढाऍ। स्वामी जी को भी कई बार लाठिया, डंडें, गालिया, जेल, यात्राऍ इस अभियान में करना पड़ी, फिर भी उन्होंने रैगर समाज में नवजागरण की लहर को शीतल नहीं होने दिया। स्वामी जी दिन-रात समाजोत्थान की चिंताओं करते रहते थे एवं निरंतर दौड़ भाग के कारण स्वामी जी का स्वास्थ गिरने लगा, उनके उपचार का भरसक प्रयत्न किया गया, किन्तु कोई सुधार नहीं हुआ। अंत में उन्होंने केवल 36 वर्ष की अल्पावस्था में अपने महान क्रांतिकारी शरीर को जयपुर में छोड़ 20 नवम्बर 1945 को स्वर्ग को प्रयाण कर लिया। स्वामीजी हमें छोड़कर चले गये किंतु उनके द्वारा चलाई गई जागृति की मशाल की लो धीमी होने लगी है। उनके द्वारा स्थापित अखिल भारतीय रैगर महासभा द्वारा उनके पूरे उद्देश्यों का सम्पूर्ण भारत में प्रचार-प्रसार किया जाना था। सभा द्वारा उनके सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया गया, किंतु यदि स्वामीजी और जीवित रहते तो रैगर समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन अवश्य होता, ऐसा विचारकों का मानना है। आज पुन: रैगर जाति में स्वामीजी जैसे दिव्य पुरूष के अवतरण की आवश्यकता है जो इस विसंघठित समाज को एकता के सूत्र में बांधकर विकास की दौड़ के अन्य जातियों के समकक्ष लाकर खड़ा कर सके, स्वामीजी अब नहीं है। हमें उनके उपकारों एवं विचारो को याद करते हुए, उनके जन्मदिवस जन्माष्टमी एवं निर्माण दिवस 20 नवम्बर, को धूमधाम से मनाकर उनकी शिक्षाओं को सच्चाई के साथ जीवन में उतार कर समाज को अग्रसर करने का प्रयत्न करते रहना होगा। ओर उनके नक्शे कदम पर चलकर समाजोत्थान के लिये कार्य करना होगा।
युग युग तक अमर रहेगी स्वामी ”लक्ष्य” की गाथा। रैगर आपको याद करेगा कहकर आपकी गाथा।।
लेखक : गणेशचन्द्र आर्य (जाबरोलिया) मन्दसौर (म.प्र.)