जीवन जीना भी एक कला है अगर हम इस जीवन को किसी Art-Work की तरह जिए तो बहुत सुन्दर जीवन जिया जा सकता है ! वर्तमान में जब चारों ओर अशांति और बेचैनी का माहौल नजर आता है । ऐसे में हर कोई शांति से जीवन जीने की कला सीखना चाहता है ।
जीवन अमूल्य है ! जीवन एक यात्रा है ! जीवन एक निरंतर कोशिश है ! इसे सफलता पूर्वक जीना भी एक कला है ! जीवन एक अनंत धडकन है ! जीवन बस एक जीवन है ! एक पाने-खोने-पाने के मायाजाल में जीने और उसमे से निकलने की बदिश है ! इसे किस तरह जिया जावे कि एक सुखद, शांत, सद्भावना पूर्ण जीवन जीते हुये, समय की रेत पर हम अपने अमिट पदचिन्ह छोड़ सकें ? यह सतत अन्वेषण का रोचक विषय रहा है ।
अक्सर देखने में आता है कि सुबह से लेकर साम तक बल्कि देर रात तक हमारे मित्र अनर्गल वार्तालाप, अनर्गल सोच विचार, करते रहते है, ऑफिस में सहकर्मियों से, दोस्तों से, बाजार में दुकानदार, घर में परिवार के सदस्यों से मनभेद करते है क्यों ? क्या आपने कभी यह सोचा है कि – जीवन का उद्देश्य क्या है ? क्या आपको पता है की आपका जन्म किस लिए हुआ है ? क्या है यह जीवन ? इस तरह के प्रश्न बहुत कीमती हैं । जब इस तरह के प्रश्न मन में जाग उठते हैं तभी सही मायने में जीवन शुरू होता है । ये प्रश्न आपकी जिंदगी की गुणवत्ता को बेहतर बनाते हैं । ये प्रश्न वे साधन हैं जिनसे आपके अंत:करण में और गहरी डुबकी लगा सकते हो और जवाब तुम्हारे अंदर अपने आप उभर आएंगे । जब एक बार ये प्रश्न आपके जीवन में उठने लगते हैं, तब आप सही मायने में जीवन जीने लग जाते है ……..
अगर आप जानना चाहते हो कि इस धरती पर आप किसलिए आए हो तो पहले यह पता लगाओ कि यहां किसलिए नहीं आए हो । आप यहां शिकायत करने नहीं आए हो, अपने दुखड़े रोने नहीं आए हो या किसी पर दोष लगाने के लिए नहीं आए हो । ना ही आप नफ़रत करने के लिए आए हो । ये बातें आपको जीवन में हर हाल में खुश रहना सिखाती हैं । उत्साह जीवन का स्वभाव है । दूसरों की प्रशंसा करने का और उनके उत्साह को प्रोत्साहन देने का मौका कभी मत छोड़ो । इससे जीवन रसीला हो जाता है । जो कुछ आप पकड़ कर बैठे हो उसे जब छोड़ देते हो, और स्वकेंद्र में स्थित शांत हो कर बैठ जाते हो तो समझ लो आप के जीवन में जो भी आनंद आता है, वह अंदर की गहराइयों से आएगा ।
सारा दिन यदि आप सिर्फ जानकारी इकट्ठा करने में लगे रहते हो, अपने बारे में सोचने और चिंतन के लिए समय नहीं निकालते तो आप जड़ता और थकान महसूस करने लगोगे । इससे जीवन की गुणवत्ता बदतर होती चली जाएगी । तो दिन में कुछ पल अपने लिए निकाल लिया करो । कुछ मिनटों के लिए आंखें बंद कर बैठो और दिल की गहराइयों में उतरो । जब आप खुद अंदर से शांत और आनंदित होंगे, तभी आप इनको बाहरी दुनिया के साथ बांट सकोगे । ज्यादा मुस्कुराना सीखो । हर रोज सुबह आईने में देखो और अपने आप को एक अच्छी-सी मुस्कान दो । जब आप मुस्कुराते हो तो आपके चेहरे की सभी मांस पेशियों को आराम मिलता है । दिमाग के तंतुओं को आराम मिलता है और इससे आपके जीवन में आगे बढ़ते रहने का आत्मविश्वास, हिम्मत और शक्ति मिलती है ।
जीवन में हमेशा बांटने, सीखने और सिखाने के लिए कुछ न कुछ होता ही है । सीखने के लिए हमेशा तैयार रहो । अपने आप को सीमित मत करो । दूसरों के साथ बातचीत करो, अपने विचार, अपनी बातें उन्हें बताओ और उनसे कुछ जानो । हम सब यहां कुछ अद्भुत और विशष्टि करने के लिए पैदा हुए हैं । यह मौका गवां मत देना । तुम्हें अपने कम और लंबे समय के लक्ष्य तय कर लेने चाहिए । ऐसा करने से जीवन को बहने के लिए दिशा मिल जाती है । अपने आपको आजादी दो- सपने देखने और सचमुच कुछ बड़ा सोचने की । और वो सपने जो आपके दिल के करीब हैं, उन्हें साकार करने की हिम्मत और संकल्प करो । बिना उद्देश्य के जीवित रहने के बजाए जीवन को सही मायने में जीना शुरू करो । तब आपका जीवन मधुर सपने की तरह हो जाएगा ।
समाज में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है । माता- पिता के बाद शिक्षक ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं । माता-पिता बच्चे को चलना सिखाते है तो शिक्षक उनको जीवन जीने की कला सिखाते हैं । जिस व्यक्ति के जीवन में शिक्षक के चरण नहीं पड़ते, वह सदैव भटकता रहता है । हालाँकि समय के साथ ही शिक्षा और शिक्षक के स्वरूप में भी बदलाव आ गया है । पहले विद्यार्थी गुरुकुल में जाकर गुरु के सान्निाध्य में ज्ञानार्जन करते थे, लेकिन आज गुरुकुल का स्थान विद्यालयों ने ले लिया है ।
वर्तमान में हमारे परिवेश में यत्र-तत्र हमें कम्प्यूटर दिखता है । यद्यपि कम्प्यूटर का विकास हमने ही किया है किन्तु तार्किक (Logical) गणना में कम्प्यूटर हमसे बहुत आगे निकल चुका है । समय के साथ बने रहने के लिये बुजुर्ग लोग भी आज कम्प्यूटर सीखते दिखते हैं । मनुष्य में एक अच्छा गुण है कि हम सीखने के लिये पशु पक्षियों तक से प्रेरणा लेने में नहीं हिचकते । विद्यार्थियों के लिये काक चेष्टा, श्वान निद्रा, व बको ध्यानी बनने के प्रेरक श्लोक हमारे पुरातन ग्रंथों में हैं ।
अनेकानेक आध्यात्मिक गुरु यही आर्ट आफ लिविग सिखाने में लगे हुये हैं । आइये हम अपने कम्प्यूटर के समानान्तर सोचकर अपने जीवन को जीने की कला सीख सकते हैं – हमारा मन, शरीर, दिमाग भी तो ईश्वरीय सुपर कम्प्यूटर से जुड़ा हुआ एक पर्सनल कम्प्यूटर जैसा संस्करण ही तो है । शरीर को हार्डवेयर, आत्मा को सिस्टम साफ्टवेयर एवं मन को एप्लीकेशन साफ्टवेयर की संज्ञा दी जा सकती है । उस परम शक्ति के सम्मुख इंसानी लघुता की तुलना की जावे तो हम सुपर कम्प्यूटर के सामने एक बिट से अधिक भला क्या हैं ? अपना जीवन लक्ष्य पा सकें तो शायद एक बाइट बन सकें ।आज की व्यस्त जिंदगी ने हमें आत्म केंद्रित बना रखा है पर इसके विपरीत “इंटरनेट” वसुधैव कुटुम्बकम् के शाश्वत भाव की अविरल भारतीय आध्यात्मिक धारा का ही वर्तमान स्वरूप है । यह पारदर्शिता का श्रेष्ठतम उदाहरण है । स्व को समाज में समाहित कर पारस्परिक हित हेतु सदैव तत्पर रखने का परिचायक है ।
जिस तरह हम कम्प्यूटर का उपयोग प्रारंभ करते समय रिफ्रेश का बटन दबाते हैं, जीवन के दैननंदिनी व्यवहार में भी हमें एक नव स्फूर्ति के साथ ही प्रत्येक कार्य करने की शैली बनाना चाहिये । कम्प्यूटर हमारी किसी भी कमांड की अनसुनी नहीं करता किंतु हम पत्नी, बच्चों, अपने अधिकारी की कितनी ही बातें टाल जाने की कोशिश में लगे रहते हैं, जिनसे प्रत्यक्ष या परोक्ष, खिन्नता, कटुता पैदा होती है व हम अशांति को न्योता देते हैं । क्या हमें कम्प्यूटर से प्रत्येक को समुचित रिस्पांस देना नहीं सीखना चाहिये ?
समय-समय पर हम अपने पी.सी. की डिस्क क्लीन करना व्यर्थ की फाइलें व आइकन डिलीट करना नहीं भूलते, उसे डिफ्रिगमेंट भी करते हैं । यदि हम रोजमर्रा के जीवन में भी यह साधारण सी बात अपना लेंवे और अपने मानस पटल से व्यर्थ की घटनायें हटाते रहें तो हम सदैव सबके प्रति सदाशयी व्यवहार कर पायेंगे, इसका प्रतिबिम्ब हमारे चेहरे के कोमल भावों के रूप में परिलक्षित होगा, जैसे हमारे पी.सी. का मनोहर वालपेपर ।
कम्प्यूटर पर ढ़ेर सारी फाइलें खोल दें तो वे परस्पर उलझ जाती हैं, इसी तरह हमें जीवन में भी रिशतों की घालमेल नहीं करना चाहिये, घर की समस्यायें घर में एवं कार्यालय की उलझने कार्यालय में ही निपटाने की आदत डालकर देखिये, आपकी लोकप्रियता में निश्चित ही वृद्धि होगी ।
हाँ एक बात है जिसे हमें जीवन में कभी नहीं अपनाना चाहिये, वह है किसी भी उपलब्धि को पाने का शार्ट कट । कापी, कट, पेस्ट जैसी सुविधायें कम्प्यूटर की अपनी विशेषतायें हैं । जीवन में ये शार्ट कट भले ही त्वरित क्षुद्र सफलतायें दिला दें पर स्थाई उपलब्धियां सच्ची मेहनत से ही मिलती हैं । कहना तो बड़ा आसान है, लेकिन करना बड़ा कठिन । हमारा छोटे से छोटा कृत्य भी अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहता है । इसलिए हर कार्य को सोच समझ कर करें ।
आज से एक सीधी सी बात कहूँगा कि- जीवन में छोटी छोटी बातो में खुशियाँ ढूंढें ! क्योंकि अक्सर बड़ी बड़ी चीजे हमें दुःख देती है ! इसलिए बस छोटी छोटी बाते, जैसे बच्चो का हँसना और मुस्कराना, अपने घर के पौधों में फूलो के रंगों को देखना, आकाश में छाए बादलो को देखना, बारिश की बूंदों में नहाना, सुबह की हवा में पूरे फेफड़ो में जी भर कर सांस लेना, किसी सुनसान जगहो पर किसी मंदिर के आगे झुक जाना, हर किसी को माफ़ कर देना, किसी बूढ़े से पेड़ को अपनी बांहों में भर लेना, सड़क पर रुक कर दुनिया को देखना… और वो सारी चीजो में जीवन को ढूंढ कर मस्त होना जो हमें ईश्वर ने मुफ्त में दी है… जीवन खुश होने का नाम है । आप तो बस हर बात में खुश होना सीख लीजिये, याद रखे । ख़ुशी और खुश होना आपका अधिकार है । जो की ईश्वर से आपको मिला है ।
भगवान बुद्ध ने यही सिखाया :— जीवन जीने की कला । उन्होंने किसी संप्रदाय की स्थापना नहीं की । उन्होंने अपने शिष्यों को मिथ्या कर्म-कांड नहीं सिखाये । बल्कि, उन्होंने भीतर की नैसर्गिक सच्चाई को देखना सिखाया । हम अज्ञानवश प्रतिक्रिया करते रहते हैं, अपनी हानि करते हैं औरों की भी हानि करते हैं । जब सच्चाई को जैसी-है-वैसी देखने की प्रज्ञा जागृत होती है तो यह अंध प्रतिक्रिया का स्वभाव दूर होता है । तब हम सही क्रिया करते हैं—ऐसा काम जिसका उगम सच्चाई को देखने और समझने वाले संतुलित चित्त में होता है । ऐसा काम सकारात्मक एवं सृजनात्मक होता है, आत्महितकारी एवं परहितकारी ।
आवश्यक है, खुद को जानना, जो कि हर संत पुरुष की शिक्षा है । केवल कल्पना, विचार या अनुमान के बौद्धिक स्तर पर नहीं, भावुक होकर या भक्तिभाव के कारण नहीं, जो सुना या पढा उसके प्रति अंधमान्यता के कारण नहीं । ऐसा ज्ञान किसी काम का नहीं है । हमें सच्चाई को अनुभव के स्तर पर जानना चाहिए । शरीर एवं मन के परस्पर संबंध का प्रत्यक्ष अनुभव होना चाहिए । इसी से हम दुख से मुक्ति पा सकते हैं ।
अगर अच्छे से अच्छे कागज पर कीमती रंग भी यदि बेतरतीब फैला दिया जाए तो कागज और रंग दौनों ही व्यर्थ हो जाएँगें, किंतु उसी कागज पर वही रंग जब कोई चित्रकार तूलिका से लगाता है तो सुन्दर छवि बन जाती है । वह छवि हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकृषित करती है । देखने वालों को भी प्रसन्नता होती है और चित्रकार को भी आत्म संतोष मिलता है । अपने व्यक्तित्व को भी यदि इस प्रकार की सुन्दर छवि प्रदान की जा सके तो स्वयं आत्मसंतोष प्राप्त किया ही जा सकता है और दूसरों को भी उससे प्रफुल्लता-प्रेरणा प्रदान की जा सकती है । जीवन जीने की कला व्यक्तित्व को इसी प्रकार गठित करने की प्रक्रिया का नाम है ।
* जीवन एक पहेली के समान है । हम इसे जितना सुलझाते हैं, उतना ही उलझते जाते हैं ।
* देने वाले ने कमी न की, अब ये मुकद्दर की बात है कि किसको क्या मिला । प्रकृति ने हम सबको बराबर संभावनाओं से नवाजा है । अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से, कैसा जीवन जीते हैं ।
* हमारे जीवन में एक समय ऐसी स्थिति आती है, जब हम दूसरों की हां में हां नहीं मिला सकते हैं । उस वक्त हमें साहसपूर्वक नहीं कहने की कला आना जरूरी है ।
* बिस्तर पर जाने के बाद यदि नींद नहीं आ रही है, तो कुछ मानसिक श्रम (लिखना, पढना, चिंतन- मनन) किया जा सकता है ।
* दूसरों को देने के लिए अमीर (धन का) होना कतई आवश्यक नहीं है, क्योंकि गरीब से गरीब व्यक्ति भी दूसरों को अमूल्य भेंट (प्रेम, नेक सलाह, शुभकामनाएं, सौहार्द, आशीर्वाद आदि) जी भरकर दे सकता है ।
* हमें अपने कार्यो में पूर्णता लाने का प्रयास करना चाहिए । उदाहरण के लिए यदि झाडू लगाएं, तो कहीं गंदगी नहीं रहनी चाहिए । यदि भोजन करें, तो बैठकर इत्मीनान के साथ करें । यदि बात कहें, तो पूरी स्पष्टता के साथ कहें । नींद लें, तो चिंतामुक्त होकर गहरी नींद लें । ऐसा करने पर आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होगा ।
मेरी आप सभी से ये उन्मुक्त प्रार्थना है कि, आप अब से अपने जीवन के हर क्षण को किसी कला को अंजाम देने की तरह जिए, फिर देखिये आपका जीवन कितना सुन्दर हो जायेंगा ।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे स्वभाव ।
मन के जीते जीत है, और मन के हारे हार ।
मन चंगा, तो कठौती में गंगा ।
सभी उस परमसत्य का साक्षात्कार करें ! सभी प्राणी दुखों से मुक्त हों ! सभी प्राणी शांत हो, सुखी हो ! सबका मंगल हो !
प्रेम भरे जीवन के आलिंगनो के साथ
आपका ब्रजेश हंजावलिया – मन्दसौर (म.प्र.)