प्रश्न बड़ा विचित्र है लेकिन यह एक सच्चाई है, आज आप किसी भी बच्चे या युवा व्यक्ति से पूछे तो आपको इसका उत्तर तुरन्त ही मिल जायेगा । ऐसा क्यो हो रहा है कि चाहे कम पढ़ा लिखा व्यक्ति हो या बहुत विद्धान सभी को कोई ना कोई नोकरी ही चाहिये ।
प्रश्न बड़ा गम्भीर है क्योकि आज का हर शिक्षित छोटा या बड़ा सभी एक ही लाईन में खड़े है , वो है नोकरी मांगने की लाईन । यह कहा तक उचित है ।
एक ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता के पास कोई साधन नही है, ज्ञान नही है, पैसा नही है, ऐसा शिक्षित बच्चा, युवा यदि नोकरी करना चाहता है, तो बात समझ मे आती है ।
लेकिन, जब एक साधन सम्पन्न परिवार का उच्च शिक्षित बच्चा या बड़ा व्यक्ति भी सरकार की नोकरी करना चाहता है, तो एक गम्भीर प्रश्न है, क्योकि जब देश मे सभी बुद्धिजीवी वर्ग, नोकरी मांगने की लाईन मे खड़े होगे तो, हमे यह विचार अवश्य करना होगा, कि यह सारी नोकरियाँ कहा से आयेगी । यदि हमने इस बिंदु पर विचार नही किया, तो वह दिन दुर नही जब हम अपना भविष्य नोकरी मांगने की लाईन में खड़े-खड़े बर्बाद कर देगें और तब हमें कोई सफल नही बना सकता ।
आज समाज मे वह वर्ग जो अपने आपको उच्चशिक्षित समझता है, जैसे- डॉक्टर, इन्जिनियर, एडवोकेट, पी. एच. डी. होल्डर, अन्य विशेषज्ञ अनुभव रखने वाले व्यक्ति । उन्हें एकमात्र नोकरी मांगने की मानसिकता से बाहर निकलना होगा और अपने आप मे वो क्षमता पैदा करनी होगी जिससे की वे नोकरी देने वाला बन सके, और उन्हे हर हालत मे नोकरी देने वाला बनना होगा । तभी समाज का भला हो सकता है ।
प्रश्न यह भी महत्वपूर्ण है की क्या नोकरी देने की जिम्मेवारी केवल सरकार की ही बनती है, यह कहा तक सही है । मेरा मानना है कि पूर्ण रूप से गलत है, सरकार के पास अपने कार्यो को सम्पादीत करते समय उत्पन्न कार्यो के लिए, जो नोकरिया उत्पन्न होती है, वो तो वह देती ही है, लेकिन वो हर शिक्षित व्यक्ति को नोकरी दे, यह उसकी जिम्मेवारी मे नही आता है, सरकार ने आपको शिक्षा के लिए स्कूल, कॉलेज, अन्य व्यवस्था उपलब्ध कराई, यह भी बहुत है, क्योकि सरकार के लिए यह सम्भव नही है की वह प्रत्येक कम या अधिक शिक्षित व्यक्ति को नोकरी दे ।
आज के शिक्षित युवा, बुद्धिजीवी वर्ग, को यह समझना होगा, कि शिक्षा हमारी बुद्धि को विकसित करने का एक माध्यम है, जिससे हमारा किसी मद पर सोचने का दायरा बढ़ता है और हम उसके विभिन्न पहलुओं पर विभिन्न तरीके से विचार कर सकते है, आज ऐसी स्थिति है कि इस दुनिया मे हर काम को एक रोजगार का साधन बनाया जा सकता है । जिससे आप अपना जीवन यापन आराम से चला सकते है, और धीरे-धीरे वह आपका एक स्थायी साधन बन जाएगा । यदि हम शिक्षित होकर भी इस तरह अपना आय का साधन नही ढुंढ सकते है, तो हमे यह सोचना होगा की उस अशिक्षित व्यक्ति का क्या होगा, जो साधन विहिन है । हमें इस पर गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है ।
हमे यह समझना होगा की हमारी शिक्षा, ज्ञान, कला ऐसी नही है कि केवल सरकार कि दुकान पर ही चले, हमे उसे बाजार मे बेचने लायक भी बनाना होगा, अन्यथा केवल सेद्धान्तिक बनकर रह जायेगी । हमें इस बात पर विचार करना होगा की हमने कड़ी मेहनत से ज्ञान हासिल किया है, तो ऐसा स्थिति मे उसका उपयोग हर स्तर पर होना चाहिये चाहे वो सरकार की दुकान हो या हमारी निजी । क्योकि जब हमारी शिक्षा केवल सरकार की दुकान पर नोकरी मांगने के लिए ही चलती है, तो ऐसी स्थिति मे वो संदेह के घेरे मे आ जाती है ।
हमे हमारी शिक्षा को हर जगह चलने लायक बनाना होगा । तभी सही मायने मे हमारी शिक्षा सार्थक सिद्ध हो पायेगी अन्यथा ऐसा लगेगा कि एक हजार का नोट आपकी जेब मे है और वह केवल सरकार की दुकान पर ही चलता है, क्या वह नकली है, क्योकि असली नोट तो सरकार की दुकान हो या प्राइवेट दुकान सब जगह समान रूप से चलता है ।
आज हमारे समाज मे अनेक डॉक्टर, इन्जिनियर, PHD होल्डर, अन्य विशेषज्ञ व्यक्ति है लगभग सभी सरकार कि नोकरी करते है मेरा मानना है कि इन्हें अपने आपको पेशेवर ढंग से तैयार करना होगा तथा अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए आम जनता मे अपनी पेठ जमानी होगी, तथा अपने ज्ञान को अपनी आजीविका के साधन के तौर पर विकसित करना होगा तभी समाज का विकास और हमारी शिक्षा सार्थक होगी ।
लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)