बात बड़ी अजीब है, हो सकता है कि, प्रथम दृष्टया यह आपको गलत लगे, लेकिन यह सच्चाई है । अब आप कहेगे की कैसे । इसके लिए हमे हमारे संवैधानिक अधिकारों के कानूनी पहलू को समझना होगा । चलिए आज इसी को टटोलते हैं ।
मूल बिन्दु की बात करने से पहले हमे यह समझना बहुत जरूरी है कि हमे जो प्राप्त है जिसमे सर्वप्रथम शिक्षा; जिससे एक बच्चा पढ़-लिखकर डॉक्टर, इन्जिनियर, वकील, राजपत्रित अधिकारी, आर.ए.एस., आई.ए.एस., आर.जे.एस. बनता है । जिससे उसकी दुनिया बदल जाती है । जो कभी लाईन मे सबसे पीछे खड़ा रहता था, तुरन्त उसकी लाईन अलग से बनने लग जाती है । जिससे उसका भी नम्बर बहुत जल्दी लगने की स्थिति मे आ जाती है ।
कोई बड़ा अफसर तो, कोई छोटा और कोई बाबू भी बन जाता है । फिर उसे मिलता है, पॉवर, पैसा, शोहरत, गाड़ी-बंगला, लोगों का हुजुम । जो व्यक्ति पहले, स्वंय भीड़ मे खो जाता था, आज-कल भीड़ उसके आगे-पीछे घुमती नजर आती है । सब कुछ बदला-बदला सा दिखायी देता है और यह दृश्य, उसे अपने 60 वर्ष की उम्र तक, वैसे ही दिखायी देता नजर आता है । जिसमे वह भूल जाता है कि, उसे कभी नोकरी, से रिटायर भी होना है । इस सारी दुनिया मे वह भी अपने आपको बहुत आगे बढ़ा हुआ महसुस करता है, और यह सच भी है । लेकिन पिछड़ो की बात करे तो, वे वही खड़े है, जहां कुछ दिन पहले, वो स्वयं खड़ा था । वर्तमान वस्तुस्थिति की बात करे तो, लगभग सभी दलित आदिवासी अफसरों की यही कहानी है ।
गम्भीरता से, जरा गौर कर तो, हम पायेंगे की, अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजाति मे विकास, केवल उन लोगों का हुआ है, जिन्हे सरकारी नोकरी, किसी न किसी वजह, से मिल चुकी है । सरकारी आंकड़ो के अनुसार सरकार कहती है कि, हम केवल 3 प्रतिशत लोगों को नोकरी देते है । शेष 97 प्रतिशत लोग अपनी आजीवीका की व्यवस्था, स्वयं करते हैं । चाहे व्यापार हो या मजदूरी या प्राइवेट नोकरी । जब अनुसुचित जाति-अनुसुचित जनजाति की बात करे तो, इनका सम्पूर्ण विकास सरकारी नोकरी की वजह, से ही, सम्भव हुआ है क्योंकि, इनके पास आजादी से पूर्व न तो शिक्षा थी, ना ही धन और ना जमीन-जायदाद ।
इनके विकास का मूल कारण नोकरीयों मे आरक्षण है । आज देश मे 22.5 प्रतिशत अनुसुचित जाति-जनजाति की जनसंख्या है । इसलिए केन्द्र सरकार कि नोकरीयों मे 22.5 प्रतिशत आरक्षण है । राजस्थान मे देखे तो, अनुसुचित जाति-जनजाति की जनसंख्या लगभग 16 व 12 कुल 28 प्रतिशत है । इनको संविधान मे दिये गये 28 प्रतिशत आरक्षण का आधार, इनकी 28 प्रतिशत जनसंख्या है । सरकार कहती है कि हम 3 प्रतिशत लोगों को नोकरी देते है, जो 28 प्रतिशत का लगभग 1 प्रतिशत है । अर्थात् 27 प्रतिशत जनसंख्या को नोकरी नही मिलती है । दलित-आदीवासीयो की 28 प्रतिशत जनसंख्या को 1 प्रतिशत नोकरी सरकार देती है । ऐसी स्थिति मे जिस 1 प्रतिशत को नोकरी मिलती है, वो 28 प्रतिशत जनसंख्या की देन है । वो 28 नही होते तो, उस 1 को नोकरी नही मिलती । जिस 1 को नोकरी मिलती है, उसे पैसा, पॉवर, शोहरत और नोकरी मे प्रमोशन भी मिलता है ।
अब शुरूआत होती है, उस बीमारी की, जिससे आज यह समाज पिछड़ा हुआ है । जिसे नोकरी मिली, वो तो विकसित हो गये, पीछे वाले सारे वही खडे़ है, जहॅा कुछ दिन पहले वो खड़ा रहता था । जिसे नोकरी मिली, वो उसे अपनी, कड़ी मेहनत, कठीन परिश्रम, अपनी बुद्विमता का परिणाम मानता है । जिसमे वो कभी-कभी तो अपने माता-पिता के योगदान को ही नकार देता है ।
जिस आरक्षण कोटे से, उसे नोकरी मिली, वह उस कोटे व कोटे के लोगो को बहुत, जल्दी नोकरी का वेतन मिलते ही, भूल जाता है और साथ ही, अपने ही, लोगो को, भी गरीब असहाय पिछडे़ समझने लगता है और अपनी सफलता का श्रैय भगवान को देता है । जिसे उसने कभी देखा नही ।
छोटी सी बात है कि, 26 जनवरी 1950 से पूर्व जब, इस देश मे बाबा साहेब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का संविधान नही था, तब यह भगवान कहा थे । तब तो, उनके माता-पिता, दादा-दादी, अफसर नही बने, क्यो न, उसे यह भगवान से पुछना चाहिये । कोई कहता है कि, मेरा तो चयन सामान्य वर्ग मे हुआ है तो, मै उससे, कहना चाहुँगा कि, वे अपने नींव मे लगे, पत्थरों को खोदे और देखे की जिस साधनो की वजह से, वे बड़े-बड़े (महंगे-मंहगे) संस्थाओ मे पढे है, वो पैसा कहा से आया । उन्हे अपना उत्तर मिल जायेगा । इसलिये जितने भी सरकारी कर्मचारी है, उन्हे यह गलत फहमी नही पालनी चाहिये कि, चाहे सरकारी नोकरी हो या नोकरी मे प्रमोशन, उसे अपनी मेहनत, अक्ल होशियारी से मिला है । उसे यह मिला है, आरक्षण कोटे की वजह से और आरक्षण कोटे मे, मैं भी आता हूँ, मेरा परिवार भी आता है और वे सभी लोग आते है, जिन्हे नोकरी नही मिली या जो नोकरी नही करते हैं । उन सबका हक आप, सरकार मे रहकर, ले रहे हैं । इसलिये आप इस समाज के कर्जदार है ओर सरकार मे इस समाज के प्रतिनिधी । सरकार मे समाज के प्रतिनिधी होने के कारण, आपकी जबावदेहीता ओर बढ़ जाती है कि, आज समाज के विकास के लिये क्या करते है, क्योकि आप समाज का हक तो खा रहे है, बदले मे समाज को क्या दे रहे है । यह सोचने की जरूरत है ।
क्योंकि इसी समाज की जनसंख्या के कारण, आपका कोटे मे चयन हुआ है । आपकी काबिलियत से नही । इसलिये यह जरूरी है कि, समाज हीत मे, आपका योगदान सर्वोत्तम होना चाहिये, क्योंकि समाज का सर्वाधिक दोहन, आप कर रहे हैं । इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेवारी भी, आपकी ही बनती है । जो सनद रहे, क्योंकि आज समाज का, जो भी विकास हुआ है, वो सरकारी कर्मचारी के कारण हुआ है और यदि आज समाज पिछड़ा हुआ भी है, तो उसके लिये भी सर्वाधिक, वे ही जिम्मेदार है ।
लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)