वैचारिक सांस्कृतिक क्रांति- रैगर समाज का अधोगति का मुख्य कारण वैचारिक क्रांति का अभाव रहा है। जैसा खाये अन्न वैसा दाने बने मन वाली कहावत इस समाज के साथ लागू हो गई है। हमारे समाज की 95% जन मानसिकता रूढिवादी, परम्परावादी, प्रतिबद्ध विचारों की है। समाज नयापन, खुलापन चेतनामय विचारों का दुशमन है। परिवर्तन का साहस जुटाने में अक्षम है। इस समाज का तथाकथित साक्षर व्यक्ति चाहे वह वैज्ञानिक शिक्षित हो, इन्जीनियर हो, डाक्टर हो, न्यायिक, प्रशासन पुलिस अधिकारी हो व्यक्तिगत कार्यकारी, पाखण्डी विचारों का शिकार है। किसी भी प्रति स्थापित अंधि आस्था का खण्डन करना उसकी हिम्मत से परे है यहां तक कि अखिल भारतीय स्तर के पंचों व तथाकथित समाज सुधारकों का सोच भी परिवर्तन मान, गति मान नहीं रहा है। गंगा की गुमटी, रामदेव की गुमटी, धर्म शालाऍ बनाने में करोडों रूपये समाज ने खर्च कर दिये गये। देश की राजधानी दिल्ली या राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक भी कर्मशाला, उघोगशाला या श्रमशाला यहां तक की शिक्षाशाला व छात्रावास का निर्माण नहीं किया गया है पुष्कर मात्र कुण्डिया त्रिवेणी, करोल बाग, हरिद्वार में गंगा नदी के नाम से करीब तीन करोड़ रूपया की दिवारे चुनवायी गयी है। रामदेवजी की शिक्षाओं को ताक में रखकर लाखों रूपये रामदेव प्रसादी में खर्च करते है तथा रामदेवजी की आत्मा को दुख देते है। दूसरे दिन बकरा काटकर शराब पीते है। यह स्थिति गंगा प्रसादी के रूप में किये जाने वाले खर्चों की है। यह बर्बादी रैगर जाति की प्रतिष्ठा मानी जाती है। अकेली गंगा नदी के अंधविश्वासी संस्कारों पर रैगर समाज अब तक भारत सरकार के एक वर्ष के वार्षिक बजट की राशि के बराबर धन बर्बाद कर चुका है, इतने धन से एक भी रैगर ने पाप मुक्त होकर कल्पना गत स्वर्ग को प्राप्त किया हो बताना मुश्किल है रैगर समाज के शिक्षित व्यक्ति एवं समाज सुधारक मानते है कि व्रत, त्यौहार, पर्व, मेले, अंधी आत्मा के प्रतिको की पूजा एवं मान्यता ये सब पाखण्डी पुजारियों का फैलाया हुआ जाल है, ब्राह्मणों ने अपनी भोजन व्यवस्था, धन अर्जन, प्रतिष्ठा के स्वार्थ से इनकी रचना की है वे यह मानते है कि पाखण्डों में श्रम जीवी वर्ग की कठिन कमाई का धन न समझ बर्बाद होता है साथ ही उनके जाल मे फंस कर श्रम जीवी वर्ग चेतना मूल्य एवं मानसिकता दासता का शिकार हो गया है। उसका साच प्रतिबद्ध हो गया है घर जाकर ब्राह्मणों के रचे कर्मकाण्डों, पाखण्डों, अंधी आस्था के प्रति को ब्राह्मण वर्ग विभेदी शास्त्रों को देवी भेरूजी को मानते है यह बहरूपियेपन, दोपडावन, मानसिक विकृति अज्ञानता का प्रतीक है। रैगर समाज के एक लेखक ने लिखा है कि-
लीक लीक गाड़ी चले, लीक चले कपूत।
लीक छोड तीनों चले, शायर सिंह सपूत।।
दुनिया चन्द्रमा पर पहुचकर अब वृहस्पति पर पहुचने जा रही है क्या बात है कि रैगर जाति धरती पर चलने में शरमा रही है। रैगर समाज के समान कार्य करने वाले अन्य समाज परिवर्तन के कष्ट से गुजरने का दुख आजादी के साथ साथ झेल चुके है सभी क्षेत्रों में रैगर समाज से आगे निकल चुके है रैगर परिवर्तन से कतरा कायर बन गया है परिर्वतन से उबरने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।
रैगर समाज निराशा से कैसे उभरे इसके लिये व्यक्तिगत नहीं संस्थागत संगठनात्मक प्रयास होने आवश्यक है संस्थाओं में प्रगतिशील विचार वाले कर्मठ कार्यकर्ताओं को स्थान दिया जाए। राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर मासिक पत्र पत्रिका सतत् रूप से निकालना शुरू किया जाए जिससे प्रगतिशील, गतिमान विचारों एवं कार्यक्रमों का संचार रैगर समाज के जन-जन तक पहुच सके। रैगर समाज के जनतंत्र का विशाल प्रदर्शन दिल्ली व जयपुर में समय समय पर कराया जावे, जिससे प्रजातांत्रिक सरकारों व राजनीति में इस समाज की शक्ति का एहसास हो सके, बिना जन बल शक्ति के प्रजातंत्र में अचेत व सुसुप्त समाज का कोई महत्व नहीं है संस्थाओं द्वारा मृत प्राय हुई परम्पराओं फिजूल खर्चे वाले संक्कारों के विरूद्ध वातावरण तैयार किया जाना चाहिए मातृत्व भाव व सामाजिक सोच विचार प्रत्येक शिक्षत युवक युवतियों को करना पडे़गा आज समग्र सोच का अभाव है। व्यक्ति वादी सोच हावी है जनप्रतिनिधियों के चुनाव के समय हमारे मतों का प्रयोग सोच समझ कर होना चाहिए कुछ लोग इस समाज के मतों के ठेकेदार बन जाते है हमारे समाज के भोले भाले लोग उनकी इच्छा के शिकार हो जाते हमे अपना स्वामी स्वयं बनना होगा दूसरे हमारे स्वामी नहीं हो सकते है भगवान बुद्ध के आदेश पर खरा उतरना होगा कि अत: नाथों भव: अर्थात् स्वयं अपने स्वामी बनो। शिक्षित युवक युवतियों को स्वयं प्रकाशमान बनकर अंधकार को हटाने का प्रयास करना पडे़गा। अत: दीपों भव स्वयं प्रकाशमान प्रतापवान बनों, केवल शिक्षित व साक्षर होने से काम नहीं बनेगा। जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना पडेगा, यह हमारा संवैधानिक कर्त्तव्य है धारा 51 (क) भारतीय संविधान में नागरिकों के कर्त्तव्य दिये गये है जिसमें लिखा है कि प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अंधीआस्थाओं एवं कर्मकाण्डों से मुक्त होकर जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनावे। चूप बैठे रहने वाले की भी निन्दा होती है बहुत बोलने वाले की भी निन्दा होती है कम बोलने वाले वाले की भी निन्दा होती है दुनिया मे ऐसा कोई नहीं है जिसकी निन्दा न होती हो। ऐसा आदमी जिसकी प्रशंसा ही प्रशंसा होती हो या निन्दा नहीं होती हो, न हुआ है ओर ना कभी होगा। मैं डॉ. अम्बेडकर के इस आदर्श का भी अनुयायी हू कि मैं हिन्दू धर्म ग्रथों के असलियत की पोल खोलने में डाक्टर जानसन जैसी दृढ़ता रखूंगा। वर्तमान पीढ़ी यदि मेरी बात को नहीं समझेगी तो भावी पीढ़ी मेरी बात अवश्य मानेगी।
लेखक
पी.एम. जलुथरिया (पूर्व न्यायाधीश)
राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय रैगर महासभा (प्रगतिशील)
जयपुर, राजस्थान