जयपुर। रैगर समाज में लोगों कि दिन-ब-दिन बढ़ रही हैसियत के साथ ही शादी-विवाह में भारी भरकम खर्चों का भी चलन खूब बढ़ गया है। शादी में फिजूलखर्ची और ज्यादा से ज्यादा दहेज देना एक फैशन बन गया है। दहेज़ प्रथा रूपी दानव किसी भी समाज के लिए अच्छी प्रथा नहीं है इसलिए इस प्रथा को ख़त्म करने के लिए हर किसी को आगे आना चाहिए। दहेज प्रथा का बहिष्कार करते हुए अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलवाएं और उनके शादी-ब्याह सादगीपूर्वक करके इस प्रचलन को बढ़ावा दें।
रैगर समाज के एक युवक ने शादी में दहेज लेने की परंपरा को दर किनार करते हुए किशन कुमार पुत्र फूलचंद बाँसीवाल निवासी ख़ोरा बिसल, झोटवारा, जयपुर, राजस्थान ने शनिवार 24 फ़रवरी 2018 को बिना कोई दहेज लिए मात्र एक रुपए का शगुन लेकर ममता कुमारी पुत्री गोपाल लाल बॉकोलिया निवासी सिंगोद खुर्द, तहसील चोमू, जयपुर, राजस्थान के साथ विवाह सम्पन्न किया। युवक किशन कुमार ने बिना दहेज के शादी रचाकर रैगर समाज के सामने अनूठी मिसाल पेश की है। बिना दहेज की यह शादी रैगर समाज में बदलाव, के साथ-साथ बेटी को पढ़ाने और समाज को बेहतर बनाने में नई दिशा की ओर ले जाने का संदेश देती है।
दहेज प्रथा की कुरीति समाज को खोखला कर रहा है, ऐसी कुरीति के चलते गरीब परिवार के लोग अपनी बेटियों की शादी में कर्ज लेने के लिए साहूकारों के चक्कर में पड़ जाते हैं। अपनी वर्षो की मेहनत से बनाई सम्पति गिरवी रख कर बर्बाद हो जाते है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक देश में 2007 से 2011 के बीच दहेज संबंधी अपराध बढ़े हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार दहेज की वजह से हर साल करीब 8000 मौत होती है, हर दिन करीब 21 मौत, इनमें हत्यायें और देहज के दबाव में हुई आत्महत्या भी शामिल है।
समाजहित में आज अगर समाज में सब लोग मन बना लें कि समाज में कोई दहेज लेता है तो उस शादी में कोई भी शरीक नहीं होगा। इससे दहेज लेनेवाला खुद अलग थलग पड़ जायेगा। लोगों में दहेज लेने की प्रवृत्ति स्वत: ही बंद हो जायेगी। इसके अलावा शादी का आयोजन दिन में किया जाय, ताकि बिजली, लाइटिंग और लोगों को ठहराने की व्यवस्था करने में फिजूल खर्च नहीं करना पड़ेगा। दिन में प्रतिभाग करने वाला शाम या रात तक वापस अपने घर जा सकता है, इस बात का विशेष ख्याल रखा जाय। शादी मात्र दो घंटे में दोपहर तीन से शाम पांच बजे तक संपन्न हो जानी चाहिए।