जिस व्यक्ति के जीवन में कोई ”लक्ष्य” नहीं होता है वह सदैव अज्ञान के बन्धनों में बन्धा रहता है । जीवन का ”लक्ष्य” आत्मज्ञान है । विनोवा भावे ने कहा है, ”चलना आरंभ कीजिए, लक्ष्य मिल ही जाएगा ।” इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो असंभव लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उन्हें प्राप्त करते हैं ।
जो समाज अपने इतिहास पुरूष को याद नहीं रखता, वह समाज कमजोर ही नहीं होता, बल्कि उसकी हस्ती मिटती चली जाती है । रैगर समाज के इतिहास पुरूष अमर शहीद त्यागमूर्ति स्वामी श्री 108 आत्माराम जी ‘लक्ष्य’ ने परम श्रद्धेय पूजनीय स्वामी श्री 108 ज्ञानस्वरूप जी महाराज (ब्यावर निवासी) के परम शिष्य बनकर उन्हीं की कृपा से काशी में व्याकरण भूषणाचार्य पद् को प्राप्त कर, अपने सतगुरू के आदेशानुसार जातिय उत्थान का ”लक्ष्य” लेकर रैगर समाज के उत्थान के लिए भारत देश के ग्राम-ग्राम में जाकर अपनी रैगर जाति में व्याप्त कुरीतियों के सुधार हेतु शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया । बेगार बहिष्कार, बाल-विवाह, मृतक भोज, फिजूल खर्ची पर पाबन्दियां लगाई और शिक्षा के लिए सन्तान को योग्य बनाने का संकल्प लोगों से करवाया । यही उनका ”लक्ष्य” था । इसी ‘लक्ष्य’ की प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन काल में जगह-जगह जाकर शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके समस्त रैगर बन्धुओं को जैसे दिल्ली, कराची, हैदराबद (सिंध), पंजाब, मीरपुर, टन्डे आदम, अहमदाबाद, गुजरात, ब्यावर, जौधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, छोटीसादड़ी, करजू, कराणा, कनगट्टी, फागी, इन्दौर, जयपुर, अलवर आदि व राजस्थान राज्य के अनेक ग्रामों से सभी सजातिय बन्धुओं को एक ब्रहत समाज का अखिल भारतीय रैगर समाज का महासम्मेलन दौसा ग्राम में अजमेर के श्री चान्द करण जी शारदा शेर राजस्थान की अध्यक्षता में 2, 3 व 4 नवम्बर, 1944 को सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष आप ही थे । वह दिन आज भी चिरस्मरणी है जिस चार छोड़ों की बग्गी में अपने गुरू स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज के चरणों में बैठकर चान्दकरण जी शारदा की अध्यक्षता में समाज के उत्थान के लिए कुरीतियों को मिटाने के प्रस्ताव पास किये जो आज तक समाज में लागू है । दुसरा सम्मेलन सन् 1946 में जयपुर घाट दरवाजे के साथ स्पील के साथ मैदान में दिल्ली निवासी चौधरी कन्हैयालाल जी रातावाल की अध्यक्षता में चौ. गौतम सिंह जी सक्करवाल स्वागताध्यक्ष बने ।
स्वामी जी रैगर समाज के सर्वांगीण उत्थान के कार्य में लगातार व्यस्त रहने के कारण कई वर्षों से अस्वस्थ थे, किन्तु उन्होंने अपने स्वास्थ्य की चिन्ता ना करते हुए, अपनी आत्मा की पुकार पर सदैव समाज हित में कार्यरत रहे । अत: वे विकट संग्रहणी-रोग के शिकार हो गए जो कि उनके जीवन में साथ छोड़कर नहीं गया, इस प्रकार समाज के उत्थान के लिए आपने अपने लक्ष्य को पूर किया और 20 नवम्बर 1946 को जयपुर में चान्दपोल गेट श्री लाला राम जी जलूथरिया जी के निवास स्थान, उस ‘त्याग’ मूर्ति के जिसने अपना सारा जीवन अपने ‘लक्ष्य’ की पूर्ति में लगा दिया प्राण पखेरु अनन्त गगन की ओर उठ गए और वे सदेव के लिए चिर निंद्रा में सो गये । रैगर जाति को प्रकाशित करने वाला वह सूर्य अस्त हो गया, उसके साथ ही रैगर जाति की सामाजिक क्रान्ति का स्वर्णिम अध्याय । वह लौ बुझ गई, जिससे रैगर समाज को प्रकाश मिला था । श्री कंवर सेन मौर्य व चौ. कन्हैया लाल रातावाल अन्त्येष्टि में कर्फ्य के समय में संस्कार में शामिल हुए ।
देखा जाए तो वस्तुत: स्वामी आत्मारामजी ‘लक्ष्य’ अपने जीवन पर के लक्ष्य की प्राप्ति में पूर्ण रूपेण सफल रहे । लेकिन फिर भी उन्होंने वसीयत के रुप में अपने जीवन को तीन अन्तिम अभिलाषा व्यक्त की जिन्हे स्वामीजी अपने जीवन काल में ही पूरा करना चाहते थे लेकिन कर नहीं सके थे । स्वामी जी ने श्री कंवरसेन मौर्य जी को रैगर समाज के उत्थान के लिए तीन बातें कही जो उनके ‘लक्ष्य’ के रूप में थी कि ये जल्द से जल्द पूर्ण हो वे इस प्रकार है :-
1. रैगर जाति का एक विस्तृत इतिहास लिखा जाना चाहिये ।
2. रैगर जाति में उच्च शिक्षा का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के लिए जगह-जगह पर रैगर छात्रावासों का निर्माण होना चाहिए ।
3. रैगर जाति के अपने एक समाचार पत्र प्रकाशन हो ।
स्वामी जी ने अपने परिवार को त्याग कर अपने जीवने के एक मात्र ‘लक्ष्य’ रैगर जाति के उत्थान की प्राप्ति के लिए न्योछावर कर दिया इस लिए उन्हे त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्य के नाम से भी जाना जाता है । रैगर समाज के ऐसे युग पुरूष को हम शत् शत् प्रणाम करते हैं ।
लेखक : ब्रजेश हंजावलिया – मन्दसौर (म.प्र.)