कराणा काण्ड

अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन दौसा एवं जयपुर में पारित प्रस्‍तावों के अनुसार कराणा निवासी रैगरों ने घृणित कार्यों को छोड़ने एवं बेगार न देने का निश्‍चय किया । जिसके फलस्‍वरूप स्‍थानीय ठाकुर एवं स्‍वर्ण जाति के लोगों ने स्‍थानीय रैगर बन्‍धुओं पर अत्‍याचार करना प्रारम्‍भ किया । रैगर भाईयों का जंगल जाना, मवेशी चराना, खेती बोना एवं खाने-पीने का सामान देना बिल्‍कुल बन्‍द कर दिया । इस सामाजिक एवं नागरिक बहिष्‍कार से रैगर महासभा के प्रधान कार्यालय दिल्‍ली में पहुँची । महासभा का एक प्रतिनिधि मण्‍डल घटना स्‍थल पर पहुँचा । वस्‍तुस्थिति से पर्णतया अवगत होने के उपरांत समझाने का भरसक प्रयत्‍न किया परन्‍तु सफलता प्राप्‍त नहीं हो सकी । बल्कि उनके अत्‍याचार निरन्‍तर बढ़ते रहे । यहाँ तक चरम सीमा तक पहुँच गये कि अपनी मौरुसी जमीन जोतने पर भी रैगरों को लाठियों द्वारा निर्दयतापूर्ण रूप से पीटा गया जिसमें दो आदमियों को संघातक चोटें आई । तत्‍पश्‍चात् महासभा ने यह मामला पूर्णतया अपने हाथ में लिया और मुकदमें दायर किये गये । महासभा का एक शिष्‍टमंडल अलवर राज्‍य के प्राइमिनिस्‍टर से मिला और वस्‍तुस्थिति से अवगत कराया कि किस प्रकार कानूनन बन्‍द बेगार प्रथा को दूसरा पक्ष प्रयोग में लाना चाहकर राज्‍य-नियमों की अवहेलना करते हुए रैगर बंधुओं पर अत्‍यधिक एवं मनमाने अत्‍याचार कर रहे हैं । इस सम्‍बंध में एक लिखित ज्ञापन भी दिया गया । इस पर अलवर राज्‍य के 40-50 राज्‍य कर्मचारी घटनास्‍थल पर जाँच के लिये पहुँचे और 27 आदमियों के मुचलके लिये । परिणाम स्‍वरूप पेशी पर ठाकुरों ने रैगरों की सभी शर्तें स्‍वीकार करते हुए भविष्‍य में ऐसा न करने का लिखित पत्र (इकरारनाम) दिया ।

दिनांक 14-08-1946 को गाँव कराणा के कुल ठाकरान की ओर से भंवरसिंह सुपुत्र अर्जुनसिंह, प्रतापसिंह सुपुत्र फूलसिंह ने जिम्‍मेदारी देते हुये तहरीर लिख दी । जो निम्‍न प्रकार से है –

”हम कि भंवरसिंह सुपुत्र अर्जुनसिंह, सरदारसिंह सुपुत्र दलेलसिंह, गोविन्‍दसिंह सुपुत्र सगरसिंह, भैरुसिंह सुपुत्र फूलसिंह, प्रतापसिंह पुत्र फूलासिंह, मकतूलसिंह पुत्र भंवरसिंह, बनेसिंह पुत्र हरनामसिंह ठाकुर कराणा, थाना गाजी के है, जो कि ग्राम कराणा, थाना गाजी में ठाकुरान व रैगरान के परस्‍पर झगड़ा चल रहा है । झगड़े की सूरत यहां तक बढ़ गई कि अदालत में मुकदमेबाजी हो गई । अब आइन्‍दा झगड़ा समाप्‍त करते है और शान्ति कायम रखने की गरज से आपस में निम्‍नलिखित रुरायते करा पाई-

1. रैगरान को ठाकरान मुर्दा मवेशियान उठाने के लिए मजबूर नहीं कर सकेंगे ।

2. रैगरान से बेगार नहीं ली जायेगी ।

3. रैगरान से कोई काम लिया जायेगा तो उसका वाजिब मुआवजा दिया जयेगा । जबरदस्‍ती काम नहीं कराया जायेगा ।

4. मवेशियान चराने के रैगरान को वही हक कायम होंगे जो औरों को गाँव में प्राप्‍त है ।

5. दरख्‍यात आबादी ठाकरान व रैगरान वक्‍त जरुरत काटेंगे, कोई बेच नहीं सकेंगे ।

6. बसुदा जमीन की काश्‍त में कोई रुकावट नहीं डाली जायेगी । जिन रैगरान मजकुरान ने मारुसियत हासिल नहीं की वह बजरिये पट्टकाश्‍त कर सकेंगे ।

7. रैगरान की मुर्दा मवेशी को वही शख्‍श उठायेगा जो कि गाँव की शेष मुर्दा मवेशी उठायेगा । यदि कोई मुर्दा, मवेशी ठाकरान के इन्‍तजाम से रैगरान के यहाँ पड़ी रही तो उसकी कानूनी जिम्‍मेदारी ठाकरन पर होगी । ”

अंगूठा निशानी गवाह

1. भंवरसिंह 1. रामलाल सुपुत्र मांगेलाल महाजन

2. प्रताप सिंह 2. रघुनाथसिंह ठाकुर बड़ीगांव ब0 मुशी कल्‍याण ब्राह्मण, थाना गाजी

3. भैरूसिंह

4. मकतूलसिंह

5. गोविन्‍दसिंह

6. बनेसिंह

7. समरसिंह

कराणा काण्‍ड की सफलता के लिये अलवर सरकार की निष्‍पक्ष जांच के लिये महासभा ने आभार प्रदर्शन किया । इस काण्‍ड में महासभा के दिल्‍ली स्थित सदस्‍यों का सहयोग विशेष सराहनीय रहा जिन्‍होंने समय-समय पर यथाशक्ति सर्वरुपेण सहयोग प्रदान किया । सर्व श्री चौ. कन्‍हैयालाल रातावाल, कंवरसेन मौर्य, गौतमसिंह सक्‍करवाल आदि महानुभावों का योगदान विशेष उल्‍लेखनीय हैं इस काराणा काण्‍ड में अखिल भारतीय रैगर महासभा का एक हजार सात रूपये व पन्‍द्रह आने ( 1007 रूपये, 15 आने) का खर्च हुआ ।

(साभार – रैगर कौन और क्‍या ?)

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